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दिल्ली में अगर पटाखे बैन नहीं हुए तो क्या होगा? एक्सपर्ट से समझिए

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि पटाखों पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाना मुश्किल है। राज्यों की दलील है कि पटाखे फोड़ने की इजाजत दी जाए। इसके जोखिम क्या हो सकते हैं, आइए समझते हैं।

Green Patakha

दिल्ली में दीपावली पर हट सकता है ग्रीन पटाखों से बैन। AI Generated Image. (Photo Credit: Sora)

दिल्ली-एनसीआर के लोगों को उम्मीद है कि इस दीपावली उन्हें वैध तरीके से पटाखा फोड़ने की इजाजत दी जा सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि दिल्ली-एनसीआर में पटाखे पर बैन लगाना असंभव जैसा है,इसे व्यवहारिक नहीं कहा जा सकता। एक बड़ा तबका ऐसा है, जो अपील कर रहा है कि दिल्ली में पटाखे फोड़ने की इजाजत दी जाए। चीफ जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस विनोद चंद्रन की बेंच ने कहा है कि इन प्रतिबंधों का उल्लंघन होता है। 

केंद्र सरकार और दिल्ली-एनसीआर के राज्यों का कहना है कि बच्चों को त्योहार मनाने की इजाजत दी जानी चाहिए। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा,'दीपावली, गुरु परब, क्रिसमस और नए साल पर दिल्ली-एनसीआर में ग्रीन पटाखे फोडने की इजाजत दी जानी चाहिए।'

अब दीपावली पर दिल्ली-एनसीआर में कई साल बाद ग्रीन पटाखों की आतिशबाजी देखने को मिल सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने संकेत दिया है कि वह दिल्ली-एनसीआर में पटाखों पर लगे पूर्ण प्रतिबंध पर अस्थाई छूट दे सकता है। दिल्ली में 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने पटाखों पर बैन लगाया था। 

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क्या हैं ग्रीन पटाखे?

ग्रीन पटाखे पर्यावरण के लिए कम हानिकारक माने जाते हैं। इन्हें CSIR-NEERI ने 2018 में विकसित किया था। इनमें बेरियम नाइट्रेट, आर्सेनिक और लेड जैसे हानिकारिक रसायनों का इस्तेमाल नहीं होता है। ये पटाखे पारंपरिक पटाखों की तुलना में 30 से 40 फीसदी कम प्रदूषण फैलाते हैं।

कितने तरह के होते हैं ग्रीन पटाखे?

  • सेफ वाटर रिलीजर: इसे SWAS के तौर पर लोग जानते हैं। यह पटाखा फूटने पर पानी रिलीज करता है, जिसकी वजह से धूल के कण हवा में फैले नहीं पाते हैं। 
  • सेफ थर्माइट क्रैकर: इसे STAR भी कहते हैं। इसमें सल्फर या पोटेशियम नाइट्रेट नहीं होता। इससे बहुत कम धुआं निकलता है और कम प्रदूषण होता है।
  • सेफ मिनिमल एल्यूमिनियम: इसे SAFAL के तौर पर लोग जानते हैं। इसमें कम मात्रा में एलुमिनियम होता है और यह कम धमाका करता है। ​

कैसे काम करते हैं ग्रीन पटाखे?

ग्रीन पटाखों में हानिकारक केमिकल की मात्रा कम होती है। धूल कम करने वाले यौगिकों का इस्तेमाल किया जाता है। ये नाइट्रस ऑक्साइड और सल्फर डाइऑक्साइड जैसे प्रदूषकों को कम करते हैं। 

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ग्रीन पटाखों के जोखिम क्या हैं?

स्वास्थ्य विशेषज्ञ और पर्यावरणविद् इसे कम प्रदूषक नहीं मानते हैं। दिल्ली टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी की एक स्टडी बताती है कि ग्रीन पटाखे छोटे-छोटे अल्ट्रा-फाइन पार्टिकल छोड़ते हैं। ये पार्टिकल PM2.5 और PM10 से ज्यादा हानिकारक होते हैं। दिल्ली में अभी ग्रीन पटाखों की जांच के लिए टेस्टिंग लैब या सर्टिफिकेशन सिस्टम नहीं है। नकली ग्रीन पटाखों भी धड़ल्ले से बिकते हैं। कई इलाके ऐसे हैं, जहां बड़ी संख्या में लोग इसका काला कारोबार करते हैं। बिना लाइसेंस वाले निर्माता इसे बना रहे हैं, नकली QR कोड का इस्तेमाल करते हैं। 

स्वास्थ्य विशेषज्ञों को क्या डर है?

दीपावली के वक्त तक दिल्ली की हवा में धुंध बैठ जाता है। पहले से खराब हवा, दीपावली के बाद और खराब हो जाती है। PM2.5 का स्तर WHO के मानकों से कई गुना ज्यादा हो जाता है। कम हानिकारक होने का मतलब यह नहीं है कि वह सेहत के लिए लाभदायक है। 

सरकार का सुझाव क्या है?

सुप्रीम कोर्ट में सरकार ने कहा है कि NEERI और पेट्रोलियम एंड एक्सप्लोसिव्स सेफ्टी ऑर्गनाइजेशन (PESO) की ओर से प्रमाणित कंपनियां ही ग्रीन पटाखे बना सकती हैं। इन्हें लाइसेंसी दुकानों पर ही बेचा जाएगा। हर पैकेट पर CSIR-NEERI का लोगो और QR कोड होगा। इसके बाद भी दीपावली के बाद प्रदूषण की स्थिति को लेकर लोगों में डर बना हुआ है। 

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