3 देश, चिकन नेक और एयरफील्ड, युनुस के चीन प्लान की पूरी कहानी
सिलीगुड़ी कॉरिडोर को भारत का चिकन नेक कहते हैं। भारत इस कॉरिडोर के जरिए पूर्वोत्तर के राज्यों से जुड़ता है। इसी कॉरिडोर के पास बांग्लादेश के लालमुनीरहट जिले में चीन अब एयरफील्ड बनाने की कवायद में है।

भारत-बांग्लादेश बॉर्डर पर तैनात भारतीय सुरक्षाबल। (Photo Credit: PTI)
बांग्लादेश के अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार मोहम्मद युनुस के चीन दौरे के बाद की गतिविधियां, भारत के लिए चिंताजनक हैं। चीन, सिलिगुड़ी कॉरिडोर के पास बांग्लादेश के हिस्से में कुछ ऐसा करने वाला है, जिसका असर, भारत की सामरिक सुरक्षा पर पड़ सकता है। खबरें हैं कि चीन बांग्लादेश के लालमुनीरहट जिले में एयरफील्ड बनाने की तैयारी कर रहा है, जहां से भारतीय सीमाएं बेहद नजदीक हैं। भारत, चिकन नेक कॉरिडोर पर हमेशा कड़ी सुरक्षा व्यवस्था रखता है लेकिन अब नई चुनौतियां पेश हो रही हैं।
असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्व सरमा ने चिकन नेक कॉरिडोर पर मोहम्मद युनुस और शी जिनपिंग की नीतियों को लेकर पहले ही आगाह किया था। उन्होंने कहा था कि दोनों की मुलाकात को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए और सरकार को अब वैकल्पिक रास्ते भी तलाशने होंगे। सिलीगुड़ी कॉरिडोर के जरिए ही भारत और पूर्वोत्तर के राज्य एक-दूसरे से जुड़े हैं। यह बारीक का इलाका है, जो भारत के लिए रणनीति के लिए बेहद अहम है।
कहां एयरफील्ड बना रहा है चीन?
बांग्लादेश का लालमोनिरहाट इलाका, उत्तर-पश्चिमी बांग्लादेश में है। यह इलाका पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी और कूचबिहार के करीब है। भारत के भौगोलिक नक्शे में यह एक बारीक गली जैसा नजर आता है, जिससे पूर्वोत्तर के 7 राज्य, देश के बाकी हिस्सों से जुड़े हैं। इस कॉरिडोर के आसपास नेपाल, बांग्लादेश, भूटान और चीन की सीमाएं पड़ती हैं। भारतीय वायुसेना की इस इलाके में मजबूत उपस्थिति है लेकिन तब भी यहां अवैध घुसपैठ एक बड़ी समस्या बनी हुई है। कुछ मीडिया रिपोर्ट् में दावा किया गया है कि इसी इलाके में चीन हवाई क्षेत्र बनाना चाहता है, जिसकी मंजरी बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने दे दी है।
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भारत के लिए खतरा क्यों है?
चिकन नेक कॉरिडोर की कमजोरी और मजबूती एक साथ है। 5 अगस्त 2024 तक भारत और बांग्लादेश के संबंध मधुर थे लेकिन नई अंतरिम सरकार के साथ भारत के रिश्ते सामान्य नहीं हैं। मोहम्मद युनुस सरकार में बांग्लादेश में भारत विरोधी गतिविधियां बढ़ी हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मोहम्मद युनुस के बीच थाईलैंड की राजधानी बैंकॉक में BIMSTEC शिखर सम्मेलन के दौरान मुलाकात हुई थी। प्रधानमंत्री मोदी ने उनके सामने सामरिक सुरक्षा का मुद्दा भी उठाया था।
अभी तक इस क्षेत्र के आसपास चीन भारत जितने व्यापक स्तर पर सैन्य तैनाती नहीं की है लेकिन अब कर सकता है। अब अगर एयरफील्ड बनने के बाद बांग्लादेश अपनी सुरक्षा का हवाला देकर चीनी विमानों को यहां तैनात कराता है तो भारत के लिए यह खतरे की तरह है। यहां चीन की मौजूदगी, पूर्वोत्तर के राज्यों पर असर डाल सकती हैं। सिक्किम और पश्चिम बंगाल की स्थिति ज्यादा संवेदनशील हो सकती है।
एक तरफ चीन, दूसरी तरफ पाकिस्तान से बैठक कर रहा बांग्लादेश
एक तरफ जहां मोहम्मद युनुस, चीन दौरे से वापस आए हैं, अब वह पाकिस्तानी के विदेश मंत्री इशक डार से मुलाकात करने वाले हैं। पाकिस्तानियों का एक डेलिगेशन 24 अप्रैल को बांग्लादेश पहुंच रहा है। विदेश सचिव अमना बलूच 17 अप्रैल को बांग्लादेश पहुंच रहे हैं। पाकिस्तान और बांग्लादेश के बीच साल 2012 से ही कोई मुलाकात नहीं हुई थी, अब करीब एक दशक बाद पाकिस्तानी नेता मुलाकात करने पहुंच रहे हैं। दोनों देशों के बीच कई समझौतों पर हस्ताक्षर होने वाले हैं।
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भारत के लिए अहम क्यों चिकन नेक?
चिकन नेक कॉरिडोर की लंबाई 60 किलोमीटर है, वहीं चौड़ाई सबसे संकरे हिस्से में 20 से 22 किलोमीटर तक सीमित है। इसी कॉरिडोर के जरिए ही भारत, पूर्वोत्तर के सात राज्यों से जुड़ा है। भारत के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि नेपाल, भूटान, बांग्लादेश और चीन की मौजूदगी इस इलाके में है। भूटान और नेपाल के साथ भारत के संबंध मधुर हैं लेकिन चीन और बांग्लादेश के साथ तल्ख रिश्ते हो गए हैं। इस क्षेत्र में चीन की मौजूदगी भारत के लिए बड़े खतरे की तरह है। लद्दाख से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक, चीन भारतीय सीमाओं को अपना बता रहा है। भारत के इस क्षेत्र में दबदबे का मतलब है कि भारत अपने अहम हिस्से में रणनीतिक तौर पर कमजोर हो सकता है। यही वजह है कि सिलीगुड़ी कॉरिडोर पर भारतीय सेना की मजबूत उपस्थिति है।
संवेदनशील क्यों है यह इलाका?
भारत ने चिकन नेक कॉरिडोर की सुरक्षा की जिम्मेदारी सेना और सुरक्षाबलों को दी है। असम राइफल्स के जवान, सीमा सुरक्षा बल, सेना और पश्चिम बंगाल पुलिस इस कॉरिडोर की गतिविधियों पर नजर रखते हैं। सघन सुरक्षा के बाद भी इस इलाके में घुसपैठ बड़ी समस्या है। बांग्लादेश की ओर से अवैध प्रवासी यहां आते रहे हैं। ड्रग और हथियारों की तस्करी भी इस इलाके में बड़ी समस्या बनी है।
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किन खतरों को लेकर अलर्ट है भारत?
यह कॉरिडोर भारत के लिए इतना अहम है कि अगर यहां जरा सी भी बाधा आए तो पूर्वोत्तर के राज्य संकट में आ जाएंगे। भारत सरकार इसी क्षेत्र पर निर्भरता के लिए वैकल्पिक रास्ते भी तलाश रहा है। भारत नेपाल के जरिए रेल नेटवर्क पर भी जोर देना चाहता है, जिससे केवल इस रूट पर निर्भरता कम हो सके।
कौन से वैकल्पिक रास्ते तलाश रहा भारत?
भारत नेपाल के जरिए रेलवे ट्रैक बनाकर बिहार को बंगाल को बंगाल से जोड़ने का प्लान पर विचार कर रहा है। मकसद यह है कि बिहार के जोबगनी को बंगाल के न्यू माल जंक्शन से जोड़ना जाए। इसके लिए नेपाल के विराटनगर के रास्ते रेलवे लाइन बिछाने का प्रस्ताव दिया गया है। इस रेलवे लाइन के जरिए पूर्वोत्तर को भारत से जोड़ने वाले सिलिगुड़ी कॉरिडोर पर ही निर्भरता को कम करना है। भारत बांग्लादेश में रेलवे ट्रैक बिछाने के लिए भी भारत पहल की थी लेकिन अभी संबंध तनावपूर्ण हैं।
चीन की आमद से डर क्यों?
1980 के भारत-बांग्लादेश व्यापार समझौते के अनुच्छेद VIII के तहत, भारत बांग्लादेश के ट्रांजिट रूट का इस्तेमाल करता है, जिससे पूर्वोत्तर के राज्यों के साथ कनेक्टिविटी बेहतर हो सके। साल 1992 में भारत ने बांग्लादेश को तिन बिघा कॉरिडोर का इस्तेमाल करने की अनुमति दी थी, जिससे बांग्लादेश अपनेदहाग्राम-अंगारपोटा एन्क्लेव तक पहुंच सका। इस तरह के सहयोग भारत पड़ोसी देशों से लेता रहा है। शेख हसीना के नेतृत्व में बांग्लादेश ने भारत को चटगांव बंदरगाह के इस्तेमाल की इजाजत दी थी। यह दक्षिण त्रिपुरा के सबरूम क्षेत्र से जुड़ा है। यह कनेक्शन फेनी नदी पर बने मैत्री सेतु के जरिए संभव हुआ था। अब मोहम्मद युनुस की नीतियों ने भारत की मुश्किलें बढ़ाई हैं।
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