सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को केंद्र सरकार की एक अर्जी को सख्ती से खारिज कर दिया है। सरकार ने सुनवाई के बीच में ही मामले को पांच जजों की बड़ी बेंच को भेजने की मांग की थी। चीफ जस्टिस बीआर गवई की अगुवाई वाली बेंच ने इसे 'कोर्ट के साथ खेल' बताया और कहा कि यूनियन ऑफ इंडिया से ऐसी हरकत की उम्मीद नहीं थी।
याचिकाकर्ता 'ट्रिब्यूनल रिफॉर्म्स ऐक्ट' की वैधता को चुनौती दे रहे हैं। यह कानून देशभर के ट्रिब्यूनल्स के चेयरपर्सन और मेंबर्स के लिए एकसमान सेवा शर्तें तय करता है। याचिकाकर्ताओं की दलीलें पूरी हो चुकी थीं। अटॉर्नी जनरल (AG) आर वेंकटरमणि अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता में व्यस्त थे, इसलिए सुनवाई टाली गई थी।
अगली तारीख से एक रात पहले आधीर रात में  सरकार ने अर्जी दाखिल कर दी कि मामला संविधान की व्याख्या से जुड़ा है, इसलिए आर्टिकल 145(3) के तहत 5 जजों की बेंच को भेजा जाए। जस्टिस बीआर गवई इस फैसले से नाराज हो गए। 
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CJI गवई ने नाराज क्यों हुए?
जस्टिस बीआर गवई:-
हमें उम्मीद नहीं है कि भारत सरकार ऐसा रुख अपनाएगी और अदालत के साथ चालें चलेगी। हमने याचिकाकर्ताओं के वकील और अन्य पक्षों को पूरी तरह से योग्यता के आधार पर सुना। अटॉर्नी जनरल ने एक बार भी यह नहीं बताया कि केंद्र इस मुद्दे को 5 जजों की बेंच को भेजने का अनुरोध करेगा। हम इस आवेदन को खारिज करते हैं। केंद्र सरकार बेंच से बचने का प्रयास कर रही है, क्योंकि 20 दिन बाद मैं रिटायर हो रहा हूं।'
CJI गवई ने यह भी कहा, 'मिडनाइट में अर्जी दाखिल करना शॉकिंग है। अगर हमें लगेगा कि बड़ा सवाल है तो खुद ही रेफर करेंगे।'
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केंद्र सरकार ने क्या तर्क दिया?
अटॉर्नी जनरल ने कहा, 'हमारा इरादा ऐसा नहीं था। कानून में बड़े सवाल हैं। क्या कोर्ट संसद को कानून बनाने का तरीका बता सकती है? क्या ये सेपरेशन ऑफ पावर्स का उल्लंघन नहीं?' सरकार ने ट्रिब्यूनल्स में एकसमान नियमों का बचाव किया है। अब जस्टिस बीआर गवई की अगुवाई वाली बेंच ने इस केस की सुनवाई 7 नवंबर तक के लिए स्थगित कर दी है।
केंद्र सरकार का तर्क क्या है?
केंद्र सरकार ने कहा था, 'यह मामला संविधान की व्याख्या से संबंधित कानून के गंभीर प्रश्न उठाता है। संविधान के अनुच्छेद 145(3) के अनुसार मामले को कम से कम पांच न्यायाधीशों की पीठ को भेजना जरूरी होगा।'
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केंद्र को किन बातों पर ऐतराज है?
केंद्र सरकार ने कहा है कि संसद को कानून बनाने के अधिकार के संबंध में परमादेश जारी करने का अधिकार क्या सुप्रीम कोर्ट के पास है। क्या ऐसे आदेश संविधान के शक्ति पृथक्करण सिद्धांत का उल्लंघन नहीं हैं? केंद्र सरकार के आवेदन में सवाल पूछा गया है कि क्या संसद की कानून बनाने की पूर्ण शक्ति को न्यायालय के जरिए पिछले मामले में जारी निर्देशों के तर्क पर सीमित किया जा सकता है।