रैगिंग क्यों होती है, कैसे बचें, कहां चूक रहा कानून? विस्तार से समझिए
रैगिंग पर कॉलेज और विश्वविद्यालयों में सख्त नियम बनाए गए हैं फिर भी ये कुप्रथा थमी नहीं है। गुजरात और तेलंगाना की खबरें हैरान करने वाली हैं। आखिर चूक कहां हो रही, आइए समझते हैं।

देश में कई कॉलेज एंटी रैगिंग अवेयरनेस प्रोग्राम भी चलाते हैं। (इमेज क्रेडिट- hindustanuniv.ac.in)
गुजरात के GMERS मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल, धारपुर पाटण में MBBS प्रथम वर्ष के एक छात्र की मौत हो गई है। छात्र के घरवालों का कहना है कि उसे रैगिंग के लिए 3 घंटे तक लगातार खड़ा रखा। छात्र का नाम अनिल मेथानिया था। कॉलेज हॉस्टल में सीनियर छात्र, दूसरे छात्रों का इंट्रोडक्शन ले रहे थे। रैगिंग प्रतिबंधित है लेकिन परिचय पूछने के नाम पर सीनियर, जूनियर छात्रों का उत्पीड़न करते हैं। ऐसे कई छात्र दावा कर चुके हैं। यह रैगिंग तो नहीं होती, लेकिन रैगिंग जैसी ही होती है।
लगातार खड़ा रहने की वजह से अनिल मेथानिया बेहोश हो गए थे। उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया, पुलिस के सामने उन्होंने बयान दर्ज कराया, जिसके बाद उनकी तत्काल मौत हो गई। महज 18 साल की उम्र में उन्होंने दुनिया छोड़ दी। उनकी लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेजा गया है। सीनियर पुलिस अधिकारी केके पांड्या का कहना है कि छात्र के पिता ने शिकायत दर्ज कराई है। शव का परीक्षण किया गया है और मेडिकल रिपोर्ट मांगी गई है। पुलिस उन्हें जांचने के बाद ही आगे की कार्रवाई करेगी। 15 छात्रों के खिलाफ FIR दर्ज कराई गई है।
क्या ये पहला मामला है?
नहीं। तेलंगाना में एक सरकारी मेडिकल कॉलेज के 4 छात्रों को जूनियरों की रैगिंग के आरोप में निलंबित कर दिया गया है। 11 नवंबर को केरल के 5 छात्रों से रैगिंग की गई थी। एंटी रैगिंग कमेटी में छात्रों ने शिकायत दी और उसके बाद यह एक्शन हुआ।
प्रतिबंधित है, फिर क्यों होती है रैगिंग?
देश में रैगिंग प्रतिबंधित है। साल 2001 में रैगिंग पर बैन लगाया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने इस पर एक गाइडलाइन जारी की थी, जिसमें छात्रों को चिढ़ाने, उनके साथ बुरा बर्ताव, उन्हें परेशान करना, छेड़ना, गलत काम करने के लिए बाध्य करना, सीनियर होने के नाते उनसे अनुचित काम कराना, अपराध है। कॉलेज या यूनिवर्सिटी कैंपस में उनके साथ कुछ भी ऐसा करना, जिससे उन्हें शर्मिंदगी महसूस हो, परेशानी हो या उनकी मानसिक सेहत प्रभावित हो, इसे अनुशासनहीनता माना जाता है। साल 2009 में हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में एक शराबी सीनियर ने अपने जूनियर छात्र पर हमला किया था। अमन नाम के इस स्टूडेंट की मौत हो गई थी, इस घटना के बाद सुप्रीम कोर्ट ने रैगिंग से निपटने के लिए CBI के तत्कालीन निदेशक आरके राघवन की अध्यक्षता में एक समिति बनाई थी। उनकी सिफारिशों के आधार पर UGC ने रैगिंग से निपटने के लिए कॉलेजों में दिशा निर्देश तैयार किए।
कहां से आया है ये शब्द?
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के मुताबिक रैगिंग शब्द, साल 1850 में पहली बार संज्ञा (Noun) के तौर पर इस्तेमाल हुआ। साल 1850 में मैकेनिकल इंजीनियर और टेक राइटर चार्ल्स होल्ट्जाफेल ने अपनी किताब में इस शब्द का इस्तेमाल किया था। ऑक्सफोर्ड इस शब्द का अर्थ बताता है कि कॉलेज में स्लैंग के तौर पर इसका इस्तेमाल लोग करते हैं।
क्या है रैगिंग?
- जूनियर छात्र को चिढ़ाना, उसके साथ अभद्र व्यवहार करना, उसे शारीरिक या मानसिक क्षति पहुंचाना
- उसे सार्वजनिक सभा में शर्मिंदा करना
- उसे कॉलेज आने से रोकना, बेइज्जत करना
- अनुचित काम करने के लिए दबाव बनाना
- पैसे खर्च कराना, भद्दे इशारे करना, शारीरिक शोषण
- अश्लील और कामुक हरकतें करना
- रंगभेद, क्षेत्रवाद, पारिवारिक पृष्ठ भूमि को लेकर तंज कसना
- यौनिकता को लेकर सवाल खड़े करेना
- पढ़ाई में बाधा पहुंचाना
रैगिंग से जुड़े नियम-कानून क्या हैं?
- UGC के मुताबिक एडमिशन से पहले छात्रों को हलफनामा देना होता है कि वे रैगिंग में शामिल नहीं होंगे।
- कॉलेज प्रशासन, एंटी रैगिंग कमेटी के जरिए ऐसी घटनाओं पर नजर रखता है।
- जैसे ही कोई छात्र रैगिंग की शिकायत करे, 24 घंटे के भीतर कॉलेज-विश्वविद्यालय पुलिस को लिखित शिकायत दर्ज करानी होगी।
- रैगिंग को अपराध, IPC या भारतीय न्याय संहिता में अलग से नहीं माना जाता। यह अपराध की प्रकृति पर निर्भर करता है।
- AICTE के दिशा निर्देशों के मुताबिक संस्थागत अधिकारियों को रैंगिंग की सूचना, स्थानीय पुलिस को देनी चाहिए।
- केरल, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और दूसरे कई राज्यों के पास एंटी रैगिंग कानून हैं।
अब भी क्यों होती है रैगिंग?
श्यामेश्वर महाविद्यालय, गोरखपुर में मनोविज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष रहे डॉ. विनय कुमार मिश्र बताते हैं कि रैगिंग लेने वाले छात्रों की मनोवृत्ति बहुत हद तक, उनके परिवेश पर निर्भर करती है। वे कहां से आते हैं, कैसे उनके माता-पिता का व्यवहार है, किस सामाजिक पृष्ठभूमि से वे हैं। कुछ युवा जब स्कूलों में पहुंचते हैं और अपने सामाजिक पहुंच या ताकत की वजह से कुछ और छात्रों का संरक्षण उन्हें मिलता है तो वे अपनी मनोवृत्ति दिखानी शुरू करते हैं।
डॉ. विनय कुमार बताते हैं कि उन्हीं छात्रों को ज्यादा निशाना बनाया जाता है, जो थोड़े डरे-सहमे से रहते हैं। कुछ छात्र सीधे गांव या एकाकी परिवारों से निकलकर चमक-दमक वाले कॉलेज में आते हैं। वे कुछ दिन असहज होते हैं और ऐसे में जब उन्हें रैगिंग या किसी सीनियर साथी के उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है तो वे मनोवैज्ञानिक तौर पर टूट जाते हैं। ये छात्र अपने परिवार से भी दूर होते हैं और वे समूह के सामने अपमानित होने की वजह से आत्मघाती कदम तक उठा लेते हैं।
किस हद तक खतरनाक होती है रैगिंग?
रैगिंग से छात्र मनोवैज्ञानिक तौर पर टूट जाते हैं। यश त्रिपाठी (बदला हुआ नाम) का एडमिशन यूपी के ही एक बड़े मेडिकल कॉलेज में हुआ था। उनकी NEET में रैंकिंग अच्छी आई थी। कुछ छात्रों के व्यवहार की वजह से वे परेशान हो गए। उन्हें बाल उतारने पड़े थे। सीधे-सादे सहज व्यक्तित्व के जय, को राहत अपने गृह नगर में मिली। अच्छी रैंकिंग के बाद भी उन्होंने एक अति पिछड़े जिले में बने मेडिकल कॉलेज में दोबारा काउंसलिंग के जरिए एडमिशन लिया। यश बताते हैं कि वे मानसिक तौर पर बेहद परेशान रहे। उनका पढ़ाई में मन लगना बंद हो गया था, वे डिप्रेशन में चले गए थे।
डॉ. विनय कुमार मिश्र बताते हैं कि कुछ मामलों में छात्र इतने परेशान हो जाते हैं कि सुसाइड तक कर बैठते हैं। छात्रों को इससे बचाने के लिए छात्र, हॉस्टल वार्डन, विभागाध्यक्ष से लेकर प्रधानाचार्य और कुलपति तक एक कतार में रहें तो यह रुके। यह सबकी सामूहिक जिम्मेदारी है। रैगिंग अपराध है और इसे हतोत्साहित करने की जरूरत है। एक बेहतर कानून, इससे निपटने में मददगार साबित हो सकता है।
आखिर छात्र बचें कैसे?
डॉ. विनय कुमार मिश्र बताते हैं कि हर कॉलेज या विश्वविद्यालय स्तर के शैक्षणिक संस्थानों में एंटी रैगिंग समितियां होती हैं। कॉलेज में ही छात्र कल्याण विभाग होता है, एडमिन विभाग होता है। छात्र कहीं भी जाकर अपनी शिकायत दर्ज कर सकते हैं। ऐसे मामलों में अगर लगातार छात्र सहने लगें तो मनबढ़ छात्रों का हौसला बढ़ता है। अपने साथियों से बात करें और तत्काल शिकायत दर्ज कराएं। घरवालों को सूचित करें। पीड़ित छात्र अगर मुखर होंगे तभी उनकी मुश्किलें हल हो सकेंगी।
क्या मौजूदा कानून काफी हैं?
रैगिंग आज भी मेडिकल और इंजीनियरिंग कॉलेजों में समस्या बनी हुई है। फ्री प्रेस जर्नल की एक रिपोर्ट में UGC के हवाले से कहा गया था कि साल 2022 से लेकर 2023 के बीच में एंटी-रैगिंग हेल्पलाइन नंबर 1800-180-5522 पर रैगिंग की 858 शिकायतें मिली थीं। यह संख्या साल 2021-22 में 582 थी। 1 जनवरी, 2023 से 28 अप्रैल, 2024 के बीच शिक्षण संस्थानों में रैगिंग की 1,240 घटनाएं दर्ज की गईं। इनमें से 82.18 प्रतिशत शिकायतें छात्रों ने दर्ज कराईं, 17.74 प्रतिशत छात्राओं ने और 0.08 प्रतिशत ट्रांसजेंडर वर्ग के स्टूडेंट ने शिकायत की। UGC ने एक RTI में कहा था कि जनवरी 2018 से अगस्त 2023 के बीच रैगिंग के कारण कम से कम 25 छात्रों ने आत्महत्या कर ली।
क्यों होती है रैंगिंग?
डॉ. विनय कुमार मिश्र बताते हैं कि सीनियर छात्र, अपना दबदबा दिखाने के लिए रैगिंग करते हैं। डर की वजह से जूनियर छात्र, अपनी शिकायतें नहीं दर्ज करा पाते हैं। जो छात्र बड़े राजनीतिक पकड़ वाले होते हैं वे इसकी धौंस दिखाकर छात्रों को डराते हैं। कुछ लोग गुंडों के समर्थन की वजह से अपना दबदबा दिखाते हैं। रैगिंग के दर्ज मामले बेहद कम होते हैं, पुलिस जांच और गिरफ्तारी की नौबत कई मामलों में कभी नहीं आती।
चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय की छात्र राजनीति में सक्रिय रहे कुमार श्रुतिधर बताते हैं कि नए छात्रों को 5 साल 6 साल उस कैंपस में गुजारने होते हैं। अगर वे शिकायत करेंगे तो सीनियर छात्र उन्हें और परेशान करेंगे। लगातार लंबे वक्त तक उन्हें वहीं रहना है, ऐसे में इतनी लंबी दुश्मनी सोचकर छात्र या तो डर जाते हैं, या शिकायत वापस ले लेते हैं। कुछ मामलों में कॉलेज तक छोड़ देते हैं। हॉस्टल में रहने वाले छात्र सबसे ज्यादा रैगिंग से प्रभावित होते हैं।
रैगिंग पर सरकार को क्या करना चाहिए?
मानवाधिकारों मामलों पर नजर रखने वाले सुप्रीम कोर्ट के वकील सौरभ शर्मा बताते हैं कि कॉलेज और विश्वविद्यालों के पास एंटी रैगिंग समितियां नाम की होती हैं। जब तक भारतीय न्याय संहिता में इसे संज्ञेय और गंभीर अपराध नहीं माना जाएगा, ऐसी घटनाएं थमेंगी नहीं। बिना कठोर कानूनी नियमों के यह सोचना भी कि रैगिंग खत्म हो जाएगी, कोरी कल्पना है। इसे खत्म करना है तो पहले इसे अपराध मानना अनिवार्य है।
एंटी रैगिंग हेल्पलाइन नंबर्स पर छात्र कर सकते हैं कॉल
- नेशनल एंटी रैगिंग हेल्पलाइन 18001805522
- यूजीसी एंटी रैगिंग हेल्पलाइन नंबर- 011-2323-3000
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