क्या है कॉलेजियम सिस्टम, जिससे तय होते हैं सुप्रीम कोर्ट-HC के जज?
सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जजों की नियुक्ति कॉलेजियम के द्वारा होती है। यह प्रक्रिया, हमेशा सवालों के घेरे में रही है। सरकार ने इसके विकल्प में नियम बनाने की कोशिश की थी लेकिन वह सफल नहीं हो सका था।

सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी। (क्रिएटिव इमेज)
सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में जजों की नियुक्ति को लेकर सरकार और जजों की अनबन, दशकों पुरानी है। केंद्र सरकार ने कॉलेजियम सिस्टम को दुरुस्त करने के लिए नेशनल ज्यूडिशियल अपॉइंटमेंट कमीशन (NJAC) एक्ट 2014 पास किया था, जिसे सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने खारिज कर दिया था। संवैधानिक पीठ का कहना था कि इससे न्यायपालिका में सरकारी दखल बढ़ेगी। सुप्रीम कोर्ट में एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड (AoR) विशाल अरुण मिश्र बताते हैं कि सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में कॉलेजियम सिस्टम के तहत जजों की नियुक्ति उतनी पारदर्शी नहीं है, जितनी होनी चाहिए। अगर सुप्रीम जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ से लेकर संजीव खन्ना तक के पिता भी जज रहे हैं। न्यायपालिका में वंशवाद सुप्रीम कोर्ट से लेकर हाई कोर्ट तक में देखने को मिलता है। कॉलेजियम सिस्टम की सबसे बड़ी खामी ये है कि कई योग्य लोग, जज बनने की रेस से बहुत बाहर हो जाते हैं, जिनकी पहुंच कम होती है, या जिनके रिश्तेदार जज नहीं होते। यह प्रक्रिया, थोड़ी पारदर्शी होनी चाहिए।
कॉलेजियम सिस्टम है क्या?
सुप्रीम कोर्ट की एडवोकेट रुपाली पंवार बताती हैं कॉलेजियम वह तंत्र है, जिसके जरिए देश के सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में जजों की नियुक्ति, चयन और ट्रांसफर होता है। एक कॉलेजियम में भारत के मुख्य न्यायाधीश और 4 अन्य जज शामिल होते हैं। ये लोग ही मिलकर तय करते हैं कि सुप्रीम कोर्ट में जज कौन बनेगा। यही हाल, हाई कोर्ट में भी है। हाई कोर्ट में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस, हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस और राज्य के राज्यपाल मिलकर तय करते हैं कि कौन जज बनेगा। कॉलेजियम का जिक्र संविधान में नहीं है, यह अब एक कोर्ट प्रोटोकॉल की तरह हो गया है, जिसे इस तर्क पर बरकरार रखा गया है कि यह शक्ति पृथक्करण के सिद्धांत के लिए जरूरी है। कोई भी लोकतांत्रिक देश, तीन स्तंभों पर टिका होता है, न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका।
एडवोकेट रुपाली बताती हैं भारतीय लोकतंत्र में कॉलेजियम सिस्टम का सीधा टकराव, न्यायपालिका बनाम विधायिका से ही है। कॉलेजियम सिस्टम के आलोचकों का कहना है कि यह प्रक्रिया असंवैधानिक है, इसमें भाई-भतीजावाद हद से ज्यादा है। किसी भी ऊंची पहुंच वाले जज को पदोन्नत कर दिया जाता है, उसे जज बना दिया जाता है। ऊंची पहुंच वाले लोग, आसानी से जज बन जाते हैं। केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार का रुख भी कॉलेजियम सिस्टम के खिलाफ है, जिसे बदलने के लिए नरेंद्र मोदी सरकार ने अपने पिछले कार्यकाल में जमकर कोशिशें की थीं।
कैसे पड़ी है कॉलेजियम सिस्टम की नींव?
सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता सौरभ शर्मा बताते हैं, 'सुप्रीम कोर्ट ने साल 1981 के बाद से कॉलेजियम सिस्टम को रिडिजाइन किया है। सुप्रीम कोर्ट के 3 फैसलों की वजह से आज का मौजूदा कॉलेजियम सिस्टम है। इन फैसलों को जजेस केस भी कहते हैं। एसपी गुप्ता बनाम भारत सरकार (साल 1981) में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया था कि जजों की नियुक्ति के लिए मुख्य न्यायाधीश के पास एकाधिकार नहीं होना चाहिए। साल 1993 में दूसरा फैसला आया। यह केस, सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स ऑन रिकॉर्ड एसोसिएशन बनाम भारत सरकार 1993 था। इस केस में कहा गया है कि जजों की नियुक्ति में मुख्य न्यायाधीश की सलाह राष्ट्रपति के लिए बाध्यकारी होगी। मुख्य न्यायाधीश को जजों की नियुक्ति के संबंध में अपने दो सीनियर मोस्ट कॉलीग की सलाह लेनी होगी।'
नियुक्ति की संवैधानिक प्रक्रिया क्या कहती है?
सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता शुभम गुप्ता बताते हैं कि सुप्रीम कोर्ट का अनुच्छेद 124 कहता है कि सुप्रीम कोर्ट के जजों की नियुक्ति राष्ट्रपति के द्वारा होना चाहिए। उन्हें हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों की सलाह के बाद ही नियुक्त करना चाहिए। भारत के मुख्य न्यायाधीश की हर नियुक्ति से पहले राज लेनी जरूरी है, सिवाय मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति को छोड़कर। अनुच्छेद 217 कहता है कि हाई कोर्ट के जजों की नियुक्ति भी राष्ट्रपति करते हैं लेकिन इसके लिए उन्हें देश के मुख्य न्यायाधीश और राज्यपाल की राय लेनी चाहिए। हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की भी सलाह लेनी जरूरी है। तीसरे जज केस 1998 में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि मुख्य न्यायाधीश अपने 4 वरिष्ठतम सहयोगी जजों की राय लेनी चाहिए। अगर दो जज भी किसी की नियुक्ति पर सहमत नहीं हैं तो इसे फैसले को सरकार के पास नहीं भेजना चाहिए। यहीं से कॉलेजियम सिस्टम की आधिकारिक नींव भी पड़ गई।
क्यों इस सिस्टम पर सरकार और सुप्रीम कोर्ट में हैं विवाद?
नरेंद्र मोदी सरकार 2.O में कानून मंत्री रहे किरेन रिजिजू ने खुलकर कॉलेजियम सिस्टम की आलोचना की थी। उन्होंने इसे असंवैधानिक बताया था। वे कानूनी तौर पर सही भी थे, संविधान में कहीं भी कॉलेजियम सिस्टम का जिक्र नहीं है। उनसे पहले केंद्र सरकार ने इसे खत्म करने के लिए नेशनल ज्यूडिशियल अपॉइंटमेंट कमीशन (NJAC) एक्ट 2014 पास किया था। इसे मौजूदा कॉलेजियम सिस्टम को हटाने के लिए पास किया गया था। इस अधिनियम को 5 जजों की संवैधानिक पीठ ने खारिज कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि यह न्यायपालिका की स्वतंत्रता के लिए खतरा है।
सीनियर एडवोकेट आनंद कुमार बताते हैं कि NJAC में 6 सदस्यों का प्रावधान रखा गया था। एक चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया, केंद्रीय कानून मंत्री, सुप्रीम कोर्ट के दो सीनियर जज और दो विधि विशेषज्ञ जिनका चयन प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेता और सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस के तीन सदस्यीय पैनल को करना था। दो विशेषज्ञ सदस्य हर तीन साल पर बदलते रहेंगे।
आपत्ति सिर्फ इस बात पर नहीं थी। नए संविधान संशोधन में यह अधिकार संसद को दिया गया था कि वह भविष्य में सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जजों की नियुक्ति से जुड़े नियमों में बदलाव कर सकता है। अक्तूबर 2015 में ही NAJC एक्ट को खारिज कर दिया गया था। इसके बारे में कहा गया कि यह संविधान के आधारभूत ढांचे पर प्रहार है।
कॉलेजियम पर क्या कहते हैं जज?
सुप्रीम कोर्ट में एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड (AoR) विशाल अरुण मिश्र बताते हैं कि कॉलेजियम सिस्टम के आलोचनाओं के दायरे में आने की कई वजहें हैं। अगर ठीक ढंग से देखा जाए तो चाहे सुप्रीम कोर्ट हो या हाई कोर्ट किसी न किसी के जज रिश्तेदार जरूर होंगे। यह सिर्फ कोरी बात नहीं है। मौजूदा चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के पिता जस्टिस वाईवाई चंद्रचूड़ भी सुप्रीम कोर्ट के जज थे। जस्टिस संजीव खन्ना के पिता जस्टिस देवराज खन्ना भी जज थे। उनके चाचा हंसराज खन्ना भी जज थे। कई जज हैं, जिनका कोई न कोई सगा रिश्तेदार जज या किसी बड़े विधिक पद पर रहा है। एडवोकेट विशाल अरुण मिश्र बताते हैं कि आपत्तिजनक भी यही है। जजों की नियुक्ति में भाई-भतीजावाद कॉमन है। कई बार, बाहर के लोग यहां तक आ ही नहीं पाते हैं। ऊंची पहुंच वाले लोग ही सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच पाते हैं। सरकार को आपत्ति भी इन्हीं प्रोटोकॉल पर है।
और पढ़ें
Copyright ©️ TIF MULTIMEDIA PRIVATE LIMITED | All Rights Reserved | Developed By TIF Technologies
CONTACT US | PRIVACY POLICY | TERMS OF USE | Sitemap