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भारत के लिए क्यों अहम है अजरबैजान, क्या बहिष्कार करना संभव?

देश में अजरबैजान के बहिष्कार की मांग उठ रही है। मगर अंतरराष्ट्रीय व्यापार के लिहाज से यह देश बेहद अहम है। भारत के इससे क्या हित जोड़े हैं, आइए विस्तार से जानते हैं।

A view of Baku, the capital of Azerbaijan

अजबैजान की राजधानी बाकू का एक दृश्य। Photo Credit: X- @Azerbaijan

ऑपरेशन सिंदूर के बाद तुर्किये और अजरबैजान ने भारत के खिलाफ पाकिस्तान को समर्थन देने का रास्ता चुना। तुर्किये में बने ड्रोन से पाकिस्तान ने हमला किया। इस बात के सामने आने के बाद से ही देशभर के लोगों में तुर्किये और अजरबैजान के खिलाफ गुस्सा है। मगर बहुत कम लोग ही जानते होंगे कि सोवियत संघ से अलग होने के बाद अजरबैजान को पहले मान्यता देने वाले देशों की सूची में भारत भी शामिल था। भारत और अजरबैजान के राजनयिक रिश्ते लगभग 33 साल पुराने हैं। अजरबैजान के बहिष्कार की मांग उठती है। मगर अंतरराष्ट्रीय व्यापार के लिहाज से यह देश काफी अहम है। अजरबैजान भारत को अधिक सामान बेचता है और खरीदता कम है। आइए जानते हैं कि अजरबैजान के साथ भारत के रिश्ते कैसे हैं और ये देश हमारे लिए क्यों अहम है? 

भारत के लिए क्यों अहम है अजरबैजान?

अजरबैजान इंटरनेशनल नॉर्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर (INSTC) और ट्रांस-कैस्पियन इंटरनेशनल ट्रांसपोर्ट रूट (TITR) पर बसा है। इसी मार्ग के जरिए भारत अपना सामान न केवल रूस बल्कि यूरोप और मध्य एशिया तक पहुंचाता है। भारत यूरोप और रूस तक एक कॉरिडोर बनाना चाहता था। साल 2002 में भारत, रूस और ईरान ने एक समझौता किया। इसके तहत 7200 किलोमीटर लंबा इंटरनेशनल नॉर्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर (INSTC) बनाने पर सहमति बनी। इस कॉरिडोर में रेलवे, समुद्र और सड़क मार्ग को शामिल किया गया।

 

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यह रास्ता भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई को रूस के सेंट पीटर्सबर्ग से जोड़ता है। ईरान में भारत ने चाबहार बंदरगाह बनाया है। यह बंदरगाह भी इसी रूट का हिस्सा है। साल 2005 में अजरबैजान इस प्रोजेक्ट में शामिल हुआ। अजरबैजान से गुजरने वाला यह कॉरिडोर न केवल सस्ता है बल्कि भारत के लिए सबसे छोटा रास्ता भी है। अजरबैजान नॉर्थ-साउथ और ईस्ट-वेस्ट व्यापार रूट पर भी बसा है। इस लिहाज से इसकी अहमियत खूब है। भारत ईरान के चाबहार और बंदर अब्बास पोर्ट के माध्यम से INSTC रूट से जुड़ा है। देश के व्यापारिक हितों के लिहाज से अजरबैजान बेहद अहम है।

 

पूर्वी कॉरिडोर एक विकल्प

अजरबैजान को बाईपास करने का विकल्प भारत के पास है। वह INSTC के पूर्वी कॉरिडोर के माध्यम से अपना सामान यूरोप तक पहुंचा सकता है। यह रूट रूस और भारत को जोड़ता है। पूर्वी कॉरिडोर ईरान के बंदर अब्बास से फिनलैंड की सीमा तक जाता है। रास्ते में तुर्कमेनिस्तान और कजाकिस्तान पड़ते हैं। कॉरिडोर की कुल लंबाई 6100 किलोमीटर है। 

 

क्या खरीदते और बेचते हैं दोनों देश?

मौजूदा समय में भारत अजरबैजान का सातवां सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। भारत अजरबैजान के कच्चे तेल का तीसरा सबसे बड़ा खरीदार है। ओएनजीसी विदेश लिमिटेड ने यहां 1.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक का निवेश भी कर रखा है। ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के मुताबिक भारत से चावल, इलेक्ट्रॉनिक और इलेक्ट्रिकल उपकरण, अनाज, औषधियां, मशीन, बॉयलर्स, परमाणु रिएक्टर्स, सिरेमिक उत्पाद, ट्रैक्टर्स, वैक्सीन और ब्लैक-टी का निर्यात किया जाता है। वहीं अजरबैजान से भारत आने वाले निर्यात में 98 फीसदी हिस्सा कच्चे तेल का है।

 

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साल 2025 में अजरबैजान और भारत के बीच द्विपक्षीय व्यापार लगभग 50 मिलियन अमेरिकी डॉलर का था। मगर 2023 में यह बढ़कर 1.435 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया है। अजरबैजान का भारत को निर्यात 1.235 बिलियन अमेरिकी डॉलर और भारत से आयात 201 मिलियन अमेरिकी डॉलर है।
 

दोगुना बढ़ रही भारतीय पर्यटकों की संख्या

अजरबैजान की राजधानी बाकू फ्लाइट के माध्यम से नई दिल्ली से जुड़ी है। दोनों शहरों के बीच सप्ताह में 10 फ्लाइट हैं। सात फ्लाइट इंडिगो और 3 का संचालन अजरबैजान एयरलाइंस करती है। रूस, तुर्किये व ईरान के बाद भारत के लोग सबसे अधिक अजरबैजान घूमने जाते हैं। 2023 में भारत से अजरबैजान 115000 से अधिक लोग घूमने पहुंचे थे। यह संख्या 2022 की तुलना में दोगनी है। रिपोर्ट्स के मुताबिक 2024 में 243000 भारतीयों ने अजरबैजान की यात्रा की।

 

दोनों देशों में मतभेद क्यों?

अजरबैजान कश्मीर पर पाकिस्तान के रुख का समर्थन करता है। मगर भारत ने नागोर्नो-काराबाख विवाद पर निष्पक्ष रुख अपना रखा है। उसका पड़ोसी आर्मेनिया से विवाद भी चल रहा है। मगर हाल फिलहाल अजरबैजान के प्रति भारत की रणनीति में कुछ बदलाव जरूर आया है। भारत ने आर्मेनिया को अपना आकाश एयर डिफेंस सिस्टम दिया है। इसके बाद ही अजरबैजान ने ऑपरेशन सिंदूर के बाद खुलकर पाकिस्तान का समर्थन किया। 

कब देश बना अजरबैजान?

1991 में सोवियत संघ से अजरबैजान आजाद हुआ। भारत ने इसी साल उसे देश के तौर पर मान्यता दी। अगले साल यानी 28 फरवरी 1992 में पहली बार भारत ने राजनयिक संबंधों की स्थापना की। 1999 में पहली बार भारत ने राजधानी बाकू में अपना स्थायी मिशन खोला। अजरबैजान में ठीक पांच साल बाद 2004 में नई दिल्ली में अपना स्थायी मिशन खोला था। अजरबैजान में एक तेशगाह नाम का एक अग्नि मंदिर है। यह भारत के साथ ऐतिहासिक संबंधों का गवाह है। मंदिर की दीवारों पर देवनागरी और गुरुमुखी में शिलालेख मौजूद हैं। 

 

 

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