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ऐतराज से नाम बदलने की सुगबुगाहट तक, 1 दशक में मनरेगा ने क्या-क्या देखा?

मनरेगा योजना का नाम बदला जा सकता है। विपक्ष ने इस सुगबुगाहट पर नाराजगी जाहिर की है और कहा है कि इसकी जरूरत ही क्या है।

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कोच्चि में काम कर रहे मनरेगा मजदूर। Photo Credit: PTI

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महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA) योजना के नाम को बदलकर पूज्य बापू ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना करने की अटकलें लगाई जा रहीं हैं। कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी ने शनिवार को केंद्र सरकार के इस कथित फैसले पर सवाल उठाया है। उन्होंने कहा कि इस कदम से बिना किसी साफ फायदे के सरकारी संसाधनों का बेवजह खर्च का बोझ बढ़ेगा। विपक्ष का कहना है कि केंद्रीय कैबिनेट ने इस योजना का नाम बदलने का फैसला किया है।

विपक्ष का दावा है कि मनरेगा का नाम बदलकर 'पूज्य बापू ग्रामीण रोज़गार योजना' किया जाएगा। सालाना काम की गारंटी 100 दिन से बढ़ाकर 125 दिन कर दी जाएगी। कहा जा रहा है कि केंद्र सरकार ने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम का नाम बदलकर पूज्य बापू ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना करने को मंजूरी दे दी है।  

ग्रामीण परिवारों को मिलने वाले गारंटीड रोजगार के दिनों को 100 से बढ़ाकर 125 करने का फैसला लिया गया है। मीडिया रिपोर्ट में दावा किया जा रहा है कि यूनियन कैबिनेट ने इस प्रस्ताव पर चर्चा की और नाम बदलने के साथ-साथ योजना का विस्तार करने को स्वीकृति प्रदान की। अधिनियम में संशोधन के लिए संसद में विधेयक पेश किया जाएगा।

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BJP के निशाने पर रही योजना, पंसदीदा क्यों बनी?

साल 2014 में सत्ता में आने के बाद बीजेपी नेताओं ने और प्रधानमंत्री मोदी ने मनरेगा योजना को UPA सरकार की नाकामी का 'जीता-जागता स्मारक' कहा था। बीजेपी नेताओं ने सार्वजनिक मंचों से कहा कि यह योजना पैसे की बर्बादी है। 2 साल बाद ही बीजेपी ने मनरेगा योजना के क्रियान्वयन को लेकर बीजेपी ने कांग्रेस सरकार को हर बार घेरा लेकिन अब बीजेपी इसे राष्ट्र गौरव बता रही है। 

ग्रामीण क्षेत्रों में एक बड़ा वर्ग अप्रिशिक्षित और अकुशल श्रमिक है, जो रोजगार के लिए गांव में ही रहता है। ग्रामीण इलाकों में एक बड़े वर्ग की यह जरूरत है। खेती के अलावा, आमदनी का एक बड़ा हिस्सा मनरेगा है। अगर यह योजना रद्द हुई तो बड़े वर्ग का रोजगार छिनेगा। सरकार इसी वजह से इस योजना को बंद नहीं करना चाहती, साल-दर साल यहां बजट बढ़ा है।  
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मनरेगा की आलोचनाएं क्या रही हैं?

बीजेपी ने विपक्ष में रहते हुए MGNREGA की खूब आलोनचा की थी। नरेंद्र मोदी ने 4 नवंबर 2017 को इसे 'कांग्रेस की 60 वर्षों की असफलताओं का जीवंत स्मारक' कहा था। बीजेपी तब सवाल उठाती थी कि कांग्रेस के कार्यकाल में मजदूरों तक इस योजना का लाभ नहीं पहुंचता था। 100 दिनों के रोजगार की गारंटी थी, 40 दिन भी रोजगार नहीं मिलता था। यूपीए सरकार मनरेगा मजदूरों के बेहतर इस्तेमाल से दूर रही। बीजेपी सवाल उठाती रही है कि केवल 7-14 फीसदी परिवारों को ही पूरे 100 दिन काम मिला। यूपी, बिहार और महाराष्ट्र जैसे राज्य ने तब बजट न मिलने का मुद्दा उठाया था। जब बीजेपी सत्ता में आई तब सुधारों का वादा किया। मोदी सरकार ने डायरेक्ट बिनेफिट ट्रांसफर (DBT) योजना की मदद से सीधे मजदूरों के खाते में पैसे भेजे। रोजगार सृजन दिनों की संख्या बढ़ाई। अब मनरोगा कार्य दिवस बढ़ाने की कवायद की जा रही है। 

मोदी सरकार में भी क्यों सबके निशाने पर रही है मनरेगा?

केंद्र सरकार पर विपक्षी शासित राज्यों में मनरेगा के फंड्स में जानबूझकर देरी और रोक लगाने के गंभीर आरोप लग रहे हैं। मुख्य रूप से पश्चिम बंगाल, केरल और तमिलनाडु जैसे राज्यों में राजनीतिक बदले की भावना से फंड रोके जाने का दावा किया जा रहा है, जिससे लाखों मजदूरों की मजदूरी बकाया रह गई है। 

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने मनरेगा को लेकर केंद्र पर लगातार हमला बोला है। उन्होंने दिसंबर 2025 में एक रैली में केंद्र की नई मनरेगा नॉर्म्स वाली चिट्ठी को फाड़ दी थी। नरेंद्र मोदी सरकार पर आरोप लगाया गया कि ईर्ष्या की वजह से पश्चिम बंगाल के 7,500 से 52,000 करोड़ रुपये बकाया रोके गए हैं। केंद्र सरकार का कहना है कि जिन राज्यों ने केंद्र के निर्देशों का पालन नहीं किया है, केवल उन्हीं का फंड रोका गया है। आरोप है कि अनावश्यक डिजिटल ऐप्स जैसे एनएमएमएस और आधार पेमेंट से मजदूरों को बाहर किया जा रहा है। 

केंद्र सरकार का बचाव है कि फंड रोकने का कारण राज्यों में अनियमितताएं और यूटिलाइजेशन सर्टिफिकेट न देना है। केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि कोई राजनीतिक भेदभाव नहीं है, सभी राज्यों को समान फंड मिलते हैं।

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अभी क्या नियम हैं?

MGNREGA में योजना के तहत ग्रामीण परिवारों को हर साल 100 दिनों का गारंटीड रोजगार मिलता है, लेकिन औसतन रोजगार केवल 50 दिन ही दिया जा रहा है। साल 2024-25 में केवल 40.70 लाख परिवारों को 100 दिन का काम मिला, वहीं मौजूदा वित्त वर्ष में अब तक सिर्फ 6.74 लाख परिवार ही इस सीमा तक पहुंचे हैं। आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान लंबे समय से 100 दिनों की सीमा बढ़ाने की मांग कर रहे थे। राज्यों को 100 दिनों से अधिक रोजगार देने की अनुमति है, लेकिन अभी खर्च खुद वहन करना पड़ता है। 

कब योजना की शुरुआत हुई थी?

साल 2005 में राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम के तौर पर इसकी शुरुआत हुई थी। साल 2009 में यूपीए सरकार ने महात्मा गांधी का नाम जोड़कर मनरेगा बनाया था। अब एनडीए सरकार इसे पूज्य बापू ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना नाम दे रही है। 

मनरेगा पर खर्च कितना होगा?

साल 2025 से 2026 के बीच में मनरेगा के लिए 86,000 करोड़ रुपये आवंटित किए जा रहे हैं। योजना की शुरुआत के बाद से अब तक का सबसे ज्यादा आवंटन हुआ है। मौजूदा वित्त वर्ष में 2025-26 में, इस योजना के अंतर्गत 45,783 करोड़ रुपये की राशि जारी की गई है। वित्त वर्ष 2024-25 में 290.60 करोड़ मानव दिवस सृजित किए गए हैं। इस योजना में 440.7 लाख महिलाओं की भागीदारी के साथ, वित्त वर्ष 2024-25 तक महिलाओं की भागीदारी 58.15 प्रतिशत हुई है। 

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यह योजना जरूरी है योजना?

कोविड काल में यह योजना प्रवासी मजदूरों के लिए बड़ी मदद साबित हुई थी। हर तरफ जब काम-धंधा ठप पड़ा था, उद्योग-धंधे ठप हो गए थे। प्रवासी मजदूर बड़ी संख्या में अपने घरों की ओर लौटे थे। ग्रामीण इलाकों में एक बड़ी आबादी आ गई थी। साल 2020 से 2021 के बीच रिकॉर्ड 7.55 करोड़ परिवारों को इस योजना का लाभ मिला था। ग्रामीण विकास मंत्रालय ने योजना को 2029-30 तक जारी रखने के लिए 5.23 लाख करोड़ रुपये की मांग की है।

कितने लोगों को लाभ मिलता है? 

मनरेगा के आधिकारिक पोर्टल के अनुसार, देश में कुल रजिस्टर्ड श्रमिकों की संख्या लगभग 26.65 करोड़ है, जिनमें करीब 13.16 करोड़ महिलाएं हैं। हालांकि, सक्रिय श्रमिकों की तादाद 13.60 करोड़ है, जिसमें 7.12 करोड़ महिलाएं शामिल हैं। वित्त वर्ष 2024-25 में इस योजना से 7.77 करोड़ लोगों को रोजगार प्राप्त हुआ, जो पिछले वर्ष (2023-24) के 8.34 करोड़ से कम है। मनरेगा में हर दिन अब मजदूरों को 267.01 रुपये मिलते हैं। 

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