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ईरान में बड़ी संख्या में पढ़ाई क्यों करने जाते हैं कश्मीरी?

हर साल सैकड़ों कश्मीरी छात्र मेडिकल की पढ़ाई करने के लिए ईरान जाते हैं। इतनी बड़ी संख्या में कश्मीरियों के ईरान में पढ़ाई करने के पीछे ऐतिहासिक से लेकर धार्मिक कारण हैं।

Indian medical students Iran

कश्मीरी छात्र। Photo Credit- PTI

ईरान-इजरायल के बीच में भीषण संघर्ष जारी है। इस युद्ध में अमेरिका की एंट्री के बाद जंग और तेज हो गई है। दोनों तरफ से ड्रोन हमले खत्म हो चुके हैं और लड़ाई बैलिस्टिक मिलाइल से हमले तक आ पहुंची है। इसी बीच भारत ने गंभीरता का भांपते हुए ईरान की सरकार के साथ संपर्क साधकर तेहरान में पढ़ाई करने वाले सैकड़ों भारतीय मेडिकल छात्रों/नागरिकों को वापस देश ले आई।  

 

संघर्ष के बीच भारत सरकार जिन भारतीय नागरिकों को स्वदेश लेकर आई है उसमें खास तौर से मेडिकल छात्रों की तादाद अधिक है। ऐसे में सवाल उठता है कि ईरान में आम नागरिकों से ज्यादा इतने सारे भारतीय छात्र मेडिकल की पढ़ाई करने के लिए ईरान क्यों जाते हैं?

 

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ईरान में कश्मीरी छात्रों की बड़ी संख्या

भारत के विदेश मंत्रालय के आधिकारिक आंकड़ों को मुताबिक, साल 2022 में ईरान में लगभग 2,050 छात्र एडमिशन लिए हुए थे। इसमें से ज्यादातर छात्रों का एडमिशन मेडिकल की पढ़ाई के लिए था। यह एडमिशन तेहरान यूनिवर्सिटी ऑफ मेडिकल साइंसेज, शाहिद बेहेश्टी यूनिवर्सिटी और इस्लामिक आजाद यूनिवर्सिटी में थे। मगर, इसमें भी एक दिलचस्प बात ये है कि ईरान में मेडिकल की पढ़ाई करने वाले छात्रों में से एक बड़ी संख्या कश्मीरी छात्रों की है।

मेडिकल पढ़ाई में युवाओं की बढ़ती प्रवृत्ति

पिछले एक दशक में भारत में मेडिकल सीटों की संख्या काफी बढ़ोतरी हुई है। भारत में 2014 में लगभग 51,000 और 2024 में 1.18 लाख एमबीबीएस सीटें हैं। इसके बावजूद हजारों भारतीय छात्र विदेश में मेडिकल की पढ़ाई के लिए जा रहे हैं। मगर, जो छात्र विदेशों में जाकर मेडिकल की पढ़ाई करते हैं उन्हें भारत वापस आकर फॉरेन मेडिकल ग्रेजुएशन एग्जामिनेशन (FMGE) देना अनिवार्य होता है। यह भारत में डॉक्टरी की प्रैक्टिस करने के लिए जरूरी है।

भारत में मेडिकल की पढ़ाई महंगी

साल 2024 में लगभग 79,000 छात्रों ने फॉरेन मेडिकल ग्रेजुएशन एग्जामिनेशन की परीक्षा दी थी। वहीं, यह संख्या 2023 में 61,616 और 2022 में 52,000 थी। आंकड़ों के मुताबिक, भारत में 2024 में 1.18 लाख एमबीबीएस सीटों के लिए 22.7 लाख से ज्यादा उम्मीदवारों ने NEET-UG की परीक्षा दी थी। इसमें से सिर्फ आधी सीटें ही सरकारी कॉलेजों में हैं। बाकी सीटें प्राइवेट कॉलेजों में है। प्राइवेट कॉलेजों की फीस बहुत ज्यादा होती है।

 

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नेशनल बोर्ड ऑफ एग्जामिनेशन इन मेडिकल साइंसेज के पूर्व कार्यकारी निदेशक डॉक्टर पवनिंद्र लाल ने बताया है कि 50,000 रैंक वाले उम्मीदवार को अच्छे प्राइवेट कॉलेज में एडमिशन मिल सकता है लेकिन उसमें फीस करोड़ों रुपये में हो सकती है। देश में कितने लोग इस खर्च का भार उठा सकते हैं? यही वजह है कि भारतीय छात्रों को दूसरे देशों में मेडिकल की पढ़ाई करने के लिए बाध्य करती है। छात्र कुछ देशों में बहुत कम फीस में मेडिकल की डिग्री प्राप्त कर सकते हैं।

कश्मीरी छात्र ईरान क्यों जाते हैं?

दरअसल, भारतीय छात्र विदेशों में कम फीस होने के कारण एडमिशन लेते हैं। जबकि, कश्मीर के छात्रों का मेडिकल की पढ़ाई के लिए ईरान खास आकर्षण का केंद्र है। कश्मीर छात्रों के लिए ईरान में पढ़ाई सिर्फ आर्थिक वजहों से नहीं बल्कि सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संबंधों की वजह से है।

 

अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए जेएनयू के फारसी विद्वान और प्रोफेसर सैयद अख्तर हुसैन ने बताया कि कश्मीर को लंबे समय से ईरान-ए-सगीर या ईरान माइनर कहा जाता रहा है। कश्मीर की नक़्शासाजी (Topography) और संस्कृति ईरान से मिलती-जुलती है। पुराने समय में ईरानी हमेशा सोचते थे कि कश्मीर किसी तरह से ईरान का ही हिस्सा है। 13वीं शताब्दी में, मीर सैय्यद अहमद अली हमदानी ईरान से कश्मीर आए। वे अपने साथ लगभग 200 सैयद लाए और वे लोग ईरान से कश्मीर में शिल्प और उद्योग लेकर आए। वे कालीन, पेपर-मैचे, सूखे मेवे और केसर भी लाए। ऐतिहासिक रूप से कश्मीर और ईरान में यही संबंध है।

 

इसके अलावा कश्मीर और ईरान के लगाव की धार्मिक वजह भी है। दरअसल, कश्मीर में शिया मुस्लिम काफी हैं, जबकि ईरान शिया बाहुल्य है इसलिए दोनों में यह लगाव है। ज्यादातर कश्मीरी छात्र तेहरान में मेडिकल की पढ़ाई करते हैं जबकि अन्य कॉम और मशहद के पवित्र शहरों में इस्लामी धर्मशास्त्र की पढ़ाई करते हैं। इसके अलावा ईरान ने कश्मीरी छात्रों के लिए प्रवेश के लिए विशेष रास्ते भी बनाए हैं। ईरान कश्मीरी छात्रों को वहां पढ़ने के लिए कुछ रियायतें देता है।

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