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'यह अवमानना है,' मस्जिद तोड़ने पर यूपी के अधिकारी को SC का नोटिस

जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह की बेंच ने निर्देश दिया है कि अधिकारी 18 मार्च तक कोई भी तोड़फोड़ न करें। कोर्ट ने उन्हें कड़ी फटकार लगाई है। क्या है मामला, आइए समझते हैं।

Supreme Court

सुप्रीम कोर्ट। (Photo Credit: PTI)

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को उत्तर प्रदेश के कुशीनगर के जिला मजिस्ट्रेट को कड़ी फटकार लगाई है। मस्जिद के एक हिस्से को ढहाने के लिए प्रशासन की किरकिरी हुई है। कोर्ट ने उन्हें अवमानना नोटिस भेजा है। नवंबर 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने देशभर में डिमोलीशन (ध्वस्तीकरण) से जुड़े कुछ दिशा निर्देश दिए थे। कोर्ट ने कहा है कि मस्जिद का हिस्सा गिराना, कोर्ट के आदेश की अवमानना है।

 

सुप्रीम कोर्ट ने नवंबर 2024 को दिए गए एक फैसले में कहा था कि बिना पूर्व सूचना और सुनवाई का मौका दिए कोई भी तोड़फोड़ नहीं की जा सकती है। जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह की बेंच ने जिला प्रशासन को 18 मार्च को मामले की अगली सुनवाई होने तक कोई और तोड़फोड़ करने से भी रोक दिया।

कोर्ट में पीड़ित पक्ष ने दावा किया था कि जिस इमारत का ध्वस्तीकरण हुआ है, वह निजी संपत्ति थी, जिसे साल 1999 में नगर निगम के अधिकारियों ने मंजूरी दी थी। दो दशक पहले हाई कोर्ट में भी यह मामला पहुंचा था, जिसमें मंजूरी को रद्द करने की बात कही गई थी। कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया था।

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'नगर निगम ने दी थी इजाजत, फिर भी तोड़ी मस्जिद'

याचिकाकर्ता का नाम अजमतुन्निसा है। उनके वकील हुजेफा अहमदी ने कहा, 'SDM ने दिसंबर 2024 में दौरा दिया था। उन्होंने कहा था कि निर्माण नगर निगम के नियमों के अनुकूल है। अवैध हिस्से को पहले ही हटा दिया गया था।'

'अधिकारी बताएं क्यों न हो इनके खिलाफ एक्शन'

बेंच ने कहा, 'इन परिसरों में जो तोड़फोड़ की गई है, वह कोर्ट की अवमानना है। प्रतिवादी (DM) के खिलाफ क्यों न अवमानना की कार्यवाही शुरू की जाए। इस बारे में नोटिस जारी करें।'

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ध्वस्तीकरण पर सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन क्या है?

13 नवंबर को जस्टिस गवई और केवी विश्वनाथन की बेंच ने 13 नवंबर 2024 को मनमाने ढंग से विध्वंस रोकने के लिए देशव्यापी दिशानिर्देश दिए थे। बुलडोजर जस्टिस के जरिए दिए जाने वाले न्याय की कोर्ट ने आलोचना की थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि बिना पूर्व सूचना के विध्वंस नहीं किया जा सकता है। 15 दिनों की सूचना देनी होगी।

अपील के लिए मौका देना होगा। ऐसे ध्वस्तीकरण का वीडियो भी दस्तावेज के दौर पर बनना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने साफ यह भी कहा था कि अगर सार्वजनिक जमीन, सड़क, तालाब से जुड़ा मामला है तो ये आदेश नहीं लागू होंगे।

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