डीके Vs सिद्धारमैया में कहीं खिसक न जाए कर्नाटक की 'कुर्सी'
साल 2022 से अब तक, कांग्रेस ने आपसी कलह से 3 राज्यों में सत्ता खोई है। चुनाव में हार कई जगह हुई लेकिन इन राज्यों में हंगामा सबसे ज्यादा हुआ।

कर्नाटक के डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार। (Photo Credit: Facebook/DK Shivkumar)
साल 2023 में जब कर्नाटक में कांग्रेस सरकार की वापसी हुई, तब मुख्यमंत्री पद को लेकर खूब तनाव देखने को मिला था। कांग्रेस पार्टी के लिए डीके शिवकुमार 'संकट मोचक' रहे हैं। उनकी सीएम पद को लेकर दावेदारी बेहद मजबूत थी लेकिन बाजी सिद्धारमैया मार ले गए।
ऐसी अटकलें लगाई गईं कि कर्नाटक में 2 सीएम फॉर्मूल होगा। ढाई साल सिद्धारमैया मुख्यमंत्री रहेंगे, ढाई साल डीके शिवकुमार। अब ऐसा लगता है कि ढाई साल वाले फॉर्मूले को लेकर कर्नाटक में दबाव की राजनीति शुरू हो गई है।
शुरू हो गई है कर्नाटक कांग्रेस में खेमेबाजी!
डीके शिवकुमार खेमे के कांग्रेस विधायकों ने दबाव बनाना शुरू कर दिया है। कांग्रेस विधायक बसवराजू वी शिवगंगा ने दावा किया है कि उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार दिसंबर तक मुख्यमंत्री का पद संभाल लेंगे।
कांग्रेस विधायक बासवराजू वी शिवगंगा का कहना है कि डीके शिवकुमार अगले 7.5 साल तक मुख्यमंत्री बने रहेंगे। ढाई साल इस विधानसभा का कार्यकाल पूरा करेंगे, फिर अगले चुनाव में भी चेहरा भी वहीं होंगे, उन्हें जीत भी मिलेगी।
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उन्होंने कहा, 'इसे लिख लीजिए, यह दिसंबर तक हो जाएगा। अगर आप चाहें तो मैं आपको खून से लिखकर दे सकता हूं कि वह दिसंबर तक सीएम बन जाएंगे। अगर वह दिसंबर में कार्यभार संभालते हैं, तो वह प्रशासन चलाएंगे, जिसमें अगला पांच साल का कार्यकाल भी शामिल है, इसलिए कुल मिलाकर वह 7.5 साल तक सीएम रहेंगे।'

क्यों लगाई जा रही हैं अटकलें?
कर्नाटक कांग्रेस में 'रोटेशनल मुख्यमंत्री' की राजनीति पर शोर मचा है। दावे किए जा रहे हैं कि कर्नाटक में अब सिद्धारमैया सरकार की विदाई होगी, डीके शिवकुमार सत्ता संभालेंगे। वह कर्नाटक कांग्रेस के अध्यक्ष भी हैं। वह सीएम पद के प्रबल दावेदार हैं। वह खुलकर कह चुके हैं कि उन्हें मुख्यमंत्री पद चाहिए।
रोटेशनल सीएम का फॉर्मूला क्या था?
मई 2023 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी की शानदार जीत हुई थी। सीएम रेस में दो चेहरे शामिल थे, सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार। डीके शिवकुमार ने इस चुनाव में खूब पसीना बहाया था। उससे पहले वह मध्य प्रदेश और राजस्थान के सियासी संकट को संभालने के लिए जी-जान झोंक चुके थे। वह दक्षिण के उन नेताओं में शुमार हैं, जिनकी चर्चा दिल्ली समेत उत्तर भारत में खूब होती है।

डीके शिवकुमार खुद को सीएम प्रोजेक्ट भी कर रहे थे। अंतिम वक्त में फैसला बदला। मान-मनौव्वल हुआ, फिर जाकर डीके शिवकुमार डिप्टी सीएम पद के लिए तैयार हुआ। 20 मई 2023 को सिद्धारमैया ने कर्नाटक के सीएम पद की शपथ ली। डीके शिवकुमार डिप्टी सीएम बने। कहा गया कि ढाई साल सिद्धारमैया और ढाई साल डीके शिवकुमार सीएम रहेंगे। इसी आधार पर वह डिप्टी पद के लिए तैयार भी हुए। अब उसी फॉर्मूले को अमल में लाने की बारी है।
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इन राज्यों के सबक को भूल रही कांग्रेस-
मध्य प्रदेश से क्या सबक मिला था?
मध्य प्रदेश में 17 दिसंबर 2018 को कांग्रेस की सरकार बनी। विधानसभा चुनाव में दो नेताओं ने खूब मेहनत की। कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया ने। ज्योतिरादित्य सिंधिया भी सीएम रेस में शामिल थे। प्रचंड मोदी लहर में भी कांग्रेस ने 114 सीटें जीत लीं। बीजेपी सिर्फ 109 सीटें जीत पाई। कुछ दिन सरकार चली। ज्योतिरादित्य सिंधिया से अनबन शुरू हुई। सत्ता विभाजन को लेकर जंग छिड़ी। अपने खेमे के विधायक लेकर ज्योतिरादित्य बीजेपी में शामिल हुए और सरकार गिर गई। नतीजा यह हुआ कि दिसंबर 2023 में चुनाव हुए तो कांग्रेस की बुरी हार हुई। बीजेपी ने कुल 230 सीटों में से 163 सीटों जीत हासिल की, कांग्रेस को 66 सीटें मिलीं, वहीं भारतीय आदिवासी पार्टी को सिर्फ 1 सीट मिली।

राजस्थान की कलह ने सत्ता से बाहर किया!
राजस्थान में भी कांग्रेस की जीत हुई। अशोक गहलोत और सचिन पायलट को जीत का श्रेय मिला। कांग्रेस ने 200 विधानसभा सीटों वाले राज्य में 100 सीटें अकेले ही जीत ली थी। बीजेपी सिर्फ 73 सीटें हासिल कर पाई। अशोक गहलोत और सचिन पायलट की मेहनत ने वसुंधरा राज का अंत कर दिया था।
कांग्रेस यहां जीत तो गई लेकिन 5 साल तकरार भरे रहे। लंबे खींचतान के बाद 17 दिसंबर 2018 को यह तय हो पाया कि सीएम अशोक गहलोत ही रहेंगे। सचिन पायलट को मनाने में प्रियंका गांधी, सोनिया गांधी और राहुल गांधी ने जान झोंक दी थी। दोनों नेताओं को दिल्ली तलब किया गया था, गंभीर मंथन के बाद यह तय हुआ कि अशोक गहलोत सीएम, सचिन पायलट डिप्टी सीएम होंगे।

सरकार गठन के बाद खूब कलह मची। साल 2020 में सचिन पायलट ने बगावती तेवर दिखाए, डिप्टी सीएम के पद से हट गए। अशोक गहलोत ने सचिन पायलट को पागल तक कह दिया। कांग्रेस की इस कलह का नतीजा यह हुआ कि बीजेपी ने 2023 के चुनाव में प्रचंड बहुमत से वापसी की। 115 सीटें बीजेपी के पास हैं, कांग्रेस सिर्फ 69 सीटों पर सिमट गई है।
पंजाब ने भी दी है कांग्रेस को सीख
पंजाब कांग्रेस की कलह का सबसे बड़ा गवाह बना। 16 मार्च 2017 को कैप्टन अमरिंदर सीएम बने। सीएम बनने के कुछ महीनों बाद ही नवजोत सिंह सिद्धू ने उनके खिलाफ मोर्चा खोल दिया। हंगामा इतना बढ़ा कि सोनिया गांधी ने कैप्टन अमरिंदर से इस्तीफा मांग लिया। 5 साल के भीतर ही 19 सितंबर 2021 को उनकी विदाई हो गई। कई दिनों के मंथन के बाद चरणजीत सिंह चन्नी को सीएम चुना गया। सिद्धू अपनी दावेदारी पेश कर रहे थे। वह तब कांग्रेस अध्यक्ष भी थे। उनकी भी सत्ता, सिद्धू को रास नहीं आई। हंगामा हुआ। मार्च 2022 तक वह मुख्यमंत्री रहे।

चुनाव हुए तो आम आदमी पार्टी प्रचंड बहुमत से सत्ता में आई। पंजाब की 117 सीटों में से 97 पर आम आदमी पार्टी जीती। सत्तारूढ़ पार्टी सिर्फ 18 सीटों पर सिमट गई। राजनीति के जानकारों ने कहा कि अगर कांग्रेस में कलह न मचती तो कांग्रेस ही जीतती। वजह यह थी कि प्रंचड मोदी लहर में भी पंजाब में बीजेपी सिर्फ 2 सीटें जीत पाई थी।
कांग्रेस के आलोचकों का कहना है कि कांग्रेस की कलह ने 3 राज्यों में स्थितियां खराब की हैं। अगर सहमति से सिद्धारमैया पद छोड़ते हैं तो स्थितियां ठीक हो सकती हैं नहीं तो बीते कल का सबक कहता है कि कलह से पार्टी कमजोर ही हुई है।
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