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बिहार से मिली सीख या खुद पर भरोसा? यूपी में कांग्रेस से दूर भाग रहे अखिलेश यादव

कांग्रेस और समाजवादी पार्टी, पंचायत चुनाव में एक-दूसरे के खिलाफ उतर रहे हैं। स्थानीय नेता, एक-दूसरे पर अहंकारी होने का आरोप लगा रहे हैं। ऐसा क्यों है, समझिए।

Akhilesh Yadva

राहुल गांधी और अखिलेश यादव। (Photo Credit: PTI)

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बिहार विधानसभा चुनाव में इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इंक्लूसिव अलायंस (INDIA) गठबंधन की हार के बाद, उत्तर प्रदेश में भी इसके दो अहम सहयोगियों के बीच दरार पैदा हो रही है। समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के बीच तनाव बढ़ता दिख रहा है। दोनों पार्टियां आगामी पंचायत और विधान परिषद (MLC) चुनाव अलग-अलग लड़ने की तैयारी कर रही हैं। यह तनाव 2027 के यूपी विधानसभा चुनावों से पहले उनके गठबंधन के भविष्य पर सवाल उठाता रहा है। उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव 2026 की शुरुआत में होने वाले हैं, वहीं 11 एमएलसी सीटों के लिए चुनाव नवंबर 2026 में होंगे।

यूपी कांग्रेस अध्यक्ष अजय राय ने पुष्टि की है कि उनकी पार्टी पंचायत और एमएलसी दोनों चुनाव अकेले लड़ने की तैयारी कर रही है। कांग्रेस का ध्यान अभी 403 विधानसभा सीटों पर पार्टी के कैडर को मजबूत करना है। हालांकि पंचायत चुनाव पार्टी सिंबल पर नहीं लड़े जाते, फिर भी कांग्रेस ने लखनऊ स्थित राज्य मुख्यालय से अपने समर्थित उम्मीदवारों की केंद्रीय सूची जारी करने का फैसला किया है, ताकि ग्रामीण चुनावों में अपनी उपस्थिति दर्ज करा सके।

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अजय राय, अध्यक्ष, यूपी कांग्रेस:-
कांग्रेस पार्टी यूपी पंचायत चुनाव अकेले लड़ेगी और इसी पंचायत चुनाव परिणाम के आधार पर कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ताओं को आगामी 2027 उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में टिकट प्रदान किया जाएगा।

'MLC और पंचायत चुनाव में दोस्त ही दुश्मन', वजह समझिए 

नवंबर 2026 में 11 सीटों पर विधान परिषद चुनाव होने वाले हैं। दोनों दल अब भारतीय जनता पार्टी के साथ-साथ एक-दूसरे के खिलाफ भी चुनावी मैदान में उतरने वाले हैं। समाजवादी पार्टी ने पहले ही कई उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है। कांग्रेस ने भी अपने उम्मीदवारों के नाम तय कर लिए हैं। ये चुनाव सपा के लिए जरूरी हैं, क्योंकि 100 विधानसभा परिषद सदस्यों वाले विधान परिषद में अगर नेता प्रतिपक्ष का पद चाहिए तो कम से कम 3 सीटों पर जीत जरूरी है। 

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कहां चुनाव होने वाले हैं?

  • लखनऊ, वाराणसी, आगरा, मेरठ और इलाहाबाद, झांसी (ग्रेजुएट सीट)
  • लखनऊ, वाराणसी, आगरा, मेरठ, बरेली-मुरादाबाद, गोरखपुर-फैजाबाद (शिक्षक सीट)

क्यों बिगड़ रहे हैं कांग्रेस-समाजवादी पार्टी के रिश्ते?

2024 के लोकसभा चुनावों में यूपी में कांग्रेस और समाजवादी पार्टी की दोस्ती ने कमाल किया था। 80 में से 43 सीटें इंडिया गठबंधन को मिलीं थीं। दोनों पार्टियों के रिश्ते अब बिगड़ते जा रहे हैं। बिहार चुनावों में अखिलेश यादव ने कांग्रेस के लिए प्रचार नहीं किया, जबकि उन्होंने राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के लिए खूब प्रचार किया। दोनों पक्षों के नेता एक-दूसरे पर 'अहंकार' दिखाने का आरोप लगा रहे हैं।

समाजवादी पार्टी की क्या शिकायत है?

 महाराष्ट्र में भी समाजवादी पार्टी के नेता अबू आजमी ने कांग्रेस पर गठबंधन में 'अहंकार' दिखाने का आरोप लगाते हुए सभी चुनाव अकेले लड़ने की घोषणा की है।

कांग्रेस की क्या शिकायत है?

कांग्रेस नेता आरोप लगाते हैं कि समाजवादी पार्टी 'अहंकारी' है और गठबंधन को साथ लेकर चलने की कोशिश नहीं करती। इंडियन एक्सप्रेस के साथ बातचीत में समाजवादी पार्टी के नेता उदयवीर सिंह ने हाल ही में कहा था कि उनकी गठबंधन नीति स्पष्ट है, वे बीजेपी के खिलाफ लड़ने के लिए सबसे मजबूत सहयोगी का समर्थन करते हैं। उनका कहना है कि यूपी में समाजवादी पार्टी सबसे मजबूत है और उम्मीद करती है कि अन्य सहयोगी उसका समर्थन करें। 

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कांग्रेस क्या कर रही है?

कांग्रेस, यूपी में 'सृजन अभियान' चला रही है। कांग्रेस का मानना है कि पंचायत और विधान परिषद चुनावों में अच्छा प्रदर्शन करने से 2027 के विधानसभा चुनावों पर सपा के साथ सीट बंटवारे में उनकी स्थिति मजबूत होती है। विधानसभा चुनावों में लोकसभा चुनावों की तुलना में टिकट बंटवारा आसान नहीं होगा। यूपी में समाजवादी पार्टी, दूसरी सबसे मजबूत पार्टी है। कांग्रेस हाशिए पर है। 

कांग्रेस नेता मानते हैं कि 2027 के लिए सीट-बंटवारे का फॉर्मूला तैयार करना बेहद मुश्किल होने वाला है। दोनों दल, अभी 2027 के यूपी चुनावों के लिए एकजुट होने का दावा कर रहे हैं लेकिन चुनावों से पहले मौजूदा बिखराव कुछ और इशारा कर रहा है।

कांग्रेस से दूर भागने की वजह क्या है?

बिहार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने बिहार में 60 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे। बिहार की 243 विधानसभा सीटों पर कांग्रेस को हासिल सिर्फ 6 सीटें हासिल हुईं हैं। आरजेडी को 25। कांग्रेस का प्रदर्शन, बेहद खराब रहा है। बिहार में कांग्रेस का स्थानीय नेतृत्व में कोई बड़ा चेहरा न होना भी इसकी एक वजह है। यूपी में भी कांग्रेस के मुखर चेहरे कई हैं लेकिन जिसकी सार्वजनिक लोकप्रियता हो, वैसा चेहरा नहीं है। 

राहुल गांधी और प्रियंका गांधी केंद्र में हैं। पार्टी के पास मजबूत कैडर भी नहीं हैं। समाजवादी पार्टी के नेताओं को लगता है कि कांग्रेस को ज्यादा सीटें देने का मतलब है ज्यादा बड़ी हार। फिलहाल अभी तक आगामी चुनावों में दोनों पार्टियों के साथ आने की कवायद भी शुरू नहीं हुई है। दोनों पार्टियों के बड़े चेहरों ने 2027 के लिए तो गठबंधन की बात कही है लेकिन उससे पहले के चुनावों में अलग-अलग उतरने का दावा कर रहे हैं। 


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