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कथावाचक, जाति और जबरन मुंडन, BJP के लिए बिहार में खतरा कैसे? सब समझिए

मुटुक मणि और संत यादव की जाति पूछकर पिटाई की गई। विपक्ष ने इसे सियासी मुद्दा बनाया है। इटावा में घटना हुई, बिहार तक इस पर शोर मचा है। जिस तबके से कथावाचक और संत आते हैं, बिहार की सियासत में उस समुदाय का दबदबा है। एनडीए के लिए मुश्किल क्यों है, आइए जानते हैं।

Bihar Politics

तेजस्वी यादव, मुकुट मणि यादव और राहुल गांधी (Photo Credit: Khabargaon)

इटावा की एक 'भागवत कथा' की चर्चा देशभर में हो रही है। जो कथावाचक कथा कहने आए थे, उन्हीं का सिर मुंडवाया गया, महिला के पैरों में नाक रगड़वाई गई। दावा किया गया कि एक महिला का मूत्र भी दोनों संतों पर छिड़का गया। कथावाचकों की पिटाई 'जाति' की वजह से की गई। जिन लोगों ने उन्हें पीटा, उनका भी कहना है कि कथावाचकों ने 'जाति छिपाई' थी। 21 जून को धूम-धाम से कथा शुरू हुई, जब बता चला कि कथावाचक, ब्राह्मण नहीं, यादव है तो उनके साथ मारपीट गई गई। आयोजकों ने कहा कि कथावाचकों ने अपनी जाति छिपाई तो पीट दिया गया। कथावाचकों की चोटी काटी गई, सिर मुंडवाया गया। घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल है। वायरल वीडियो में संतों पर लोग जाति सूचक शब्दों का इस्तेमाल कर रहे हैं, गाली दे रहे हैं, मार रहे हैं और बाल उतार रहे हैं। एक महिला के पैरों में उनसे नाक तक रगड़वाई गई। जब मुद्दा लोगों की संज्ञान में आया तो जमकर सियासी हंगामा बरपा। इटावा में जो कुछ हुआ, उसका असर, बिहार तक नजर आ रहा है। 

 

समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने दोनों कथावाचकों को लखनऊ बुलाया, उन्हें शाल भेंट की और सम्मानित किया। अखिलेश यादव ने मुकुट मणि और संत सिंह यादव को मदद देने का भरोसा दिया। 4 कथावाचकों के उत्पीड़न का आरोप लगाकर, इटावा में केस दर्ज कराया। इटावा पुलिस ने 5 उपद्रवियों को गिरफ्तार किया है। घटना पर हंगामा इस हद तक बढ़ गया है कि यादव और ब्राह्मण समाज एक-दूसरे के खिलाफ बयानबाजी पर उतर आए हैं। ब्राह्मण समाज के नेता कह रहे हैं कि कथावाचकों ने महिला के साथ बदसलूकी की थी, जिसके बाद हंगामा बरपा। पीड़ित पक्ष का कहना है कि सिर्फ जाति की वजह से उन्हें मारा गया, अपमानित किया गया। 

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बिहार में कथावाचक कांड का कैसे पड़ सकता है असर?

राष्ट्रीय जनता दल के नेता लालू यादव, खुद को पिछड़ों के नेता होने का दावा करते हैं। तेजस्वी यादव, उनके राजनीतिक उत्तराधिकारी हैं, वह भी बहुजन राजनीति करते हैं। उन्होंने तो यहां तक कह दिया था कि कथावाचक कांड यूपी में हुआ, बिहार में ऐसा नहीं हो पाएगा, यहां कोई ऐसा करेगा तो हम उसे छोड़ने वाले नहीं हैं। बिहार में उनके ऐसा कहने की एक वजह भी है। 

 

जिस समुदाय से कथावाचक मुकुट मणि यादव आते हैं, बिहार में वह सबसे बड़ी जाति है। एक और दलित संत पीटे गए। बिहार में यादव जातियों की संख्या 14.26 प्रतिशत के आसपास है। दलित आबादी 5.25 प्रतिशत है। पिछड़ा वर्ग की 112 जातियों की आबादी 27.12 प्रतिशत है वहीं अति पिछड़े वर्ग की आबादी 36.054 प्रतिशत है। बिहार में यादव और दलित समुदाय, दोनों निर्णायक स्थिति में हैं।

 


 बिहार की 243 विधानसभाओं में 25 से ज्यादा सीटें ऐसी हैं, जहां यादवों की संख्या निर्णायक स्थिति में है। बिहार में कम से कम 25 यादव विधायक हैं।  कहलगांव, शेखपुरा, मुंगेर,सूर्यगढ़ा,  ब्रह्मपुर, जहानाबाद, घोसी, बेलागंज, अतरी, अलीनगर, दरभंगा, एकमा, मांझी, राघोपुर, हसनपुर, खगड़िया, पटना साहिब, फतुहा,  बाजपट्टी, निर्मली, पिपरा, नरपतगंज और आलमनगर जैसी सीटें यादव बाहुल हैं। राष्ट्रीय जनता दल, अब चुनाव सभआओं में इस मुद्दे को जोर शोर से उठा रही है।


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बीजेपी की मुश्किल कैसे बढ़ सकती है?

बीजेपी महाराष्ट्र और दिल्ली के चुनावों में 'एक हैं तो सेफ हैं' का नारा दे चुकी है। बीजेपी मुस्लिम तुष्टीकरण के जवाब में हिंदुओं के लिए 'एक हैं सेफ हैं' का नारा तो गढ़ दिया लेकिन कथा कांड ने सब बदलकर रख दिया है। बीजेपी अब चुनावी सभाओं में पहलगाम आतंकी हमले का जिक्र करके नारे गढ़ रही है कि 'धर्म पूछा जाति नहीं।' इसके जवाब में अब बहुजन राजनीति करने वाले दलों को इटाा कांड के बहाने यह कहने का मौका मिल गया है कि 'जाति पूछा धर्म नहीं।' राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि यह कांड, बीजेपी की राजनीति पर भारी पड़ सकता है। 

BJP नेता चुप क्यों हैं?

इटवा में कथावाचकों के साथ जो कुछ भी हुआ, उसे लेकर बीजेपी मुखर नहीं हुई है। बीजेपी नेताओं ने घटना की आलोचना की है लेकिन ज्यादातर लोग इस पर कुछ कहने से बचते नजर आ रहे हैं।  सियासी विश्लेषकों का कहना है कि बीजेपी पर सवर्णों की पार्टी होने का ठप्पा लगा है। अगर बीजेपी ने इस पर आक्रामक रुख अपनाया तो सवर्ण जातियां, जैसे 'ब्राह्मण, ठाकुर, वैश्व' समुदाय के वोटर भड़क सकते हैं, जिसका असर बिहार में नजर आ सकता है। 

बीजेपी की दिग्गज नेता उमा भारती ने कहा, 'ब्राह्मणों का दिल हमेशा उदार रहा है। पता नहीं किसने इस विवाद को शुरू किया है, मुझे लगता है कि यह साजिश हुई है।'

यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने कहा, 'जिस तरह अखिलेश यादव ने कथावाचकों का सम्मान किया है, वह दिखा रहा है कि वह घटना को तूल दे रहे हैं। वह सपा को समाप्ति की ओर ले जा चुके हैं। 2047 तक जब देश विकसित भारत बन जाएगा, अखिलेश यादव देश की सत्ता से बाहर हो चुके होंगे।'



कथावाचक के साथ हुई बदसलूकी पर किसने क्या कहा?


तेजस्वी यादव ने कहा, 'अगर पिछड़ा कथावाचक बनता है तो उसका मुंडन करा दिया जाता है। सर छील दिया जाता है। नाक रगड़वाया जाता है। हम जरूर भरोसा दिलाएंगे कि अगर बिहार में कोई इस प्रकार का काम करेगा तो हम लोग छोड़ने वाले नहीं हैं। हम लोग बहुसंख्यक लोग हैं। आप देखिएगा पिछड़ा दान देने के लिए है, चढ़ावा चढ़ाने के लिए है, कथा सुनने के लिए भी है लेकिन कथा सुनाने के लिए नहीं है। यह तो अन्याय है। हम लोग, सब लोगों को एकजुट होने की जरूरत है।'

तेजस्वी यादव ने कहा, 'जो मौजूदा सरकार है चाहे केंद्र में या राज्य में, समांतवादियों ने कब्जा किया है। बिहार से सामंतवाद खत्म करके हमें दिल्ली के सामंतवाद को भी खत्म करने की जरूरत है। हम लोग काम करने वाले लोग हैं। हम लोगों ने आरक्षण की सीमा बढ़ाई, जाति आधारित जनगणना कराई। जब हमने 65 फीसदी आरक्षण किया तो बीजेपी के लोगों ने इसे रोकने के लिए कोर्ट का रुख किया। फंसा कर  रखा, जहां पिछड़ों का बढ़ा, अति पिछड़ों का बढ़ा, आदिवासी और दलितों का बढ़ा, अभी नीतीश कुमार चुप्पी साधे हुए हैं।'

अखिलेश यादव ने 24 जून को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस किया। उन्होंने कहा, 'अगर बीजेपी को लगता है कि कथा कहने का हक सिर्फ वर्ग विशेष को ही है तो  वह इसके लिए भी कानून बनाकर दिखा दे, जिस दिन पीडीए समाज ने अपनी कथा अलग से कहना शुरू कर दी, उस दिन इन परम्परागत शक्तियों का साम्राज्य ढह जाएगा।'

अखिलेश यादव ने इसी दिन एक और बात कही। उन्होंने कहा, 'अगर पिछड़ा, दलित और आदिवासी (PDA) समाज से इतना ही परहेज है तो घोषित कर दें कि परंपरागत रूप से कथा कहने वाले वर्चस्ववादी, पीडीए समाज की ओर से दिए गए चढ़ावा, चंदा, दान, दक्षिणा कभी स्वीकार नहीं करेंगे।'

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कैसे बना यह विवाद सियासी मुद्दा?

समाजवादी पार्टी ने कहा, 'भाजपा के लोगों के अनुसार ये नेत्रहीन दलित कठेरिया समाज का युवक भी महिला को छेड़ रहा था? आरोप लगाते हुए शर्म नहीं आई? रही बात दो पहचान की तो वो यजमान जब कथा हेतु कथावाचकों को बुलाने गए थे तो उस वक्त भी सबको जाति पता थी, छिपाने जैसा कुछ भी नहीं था क्योंकि कथावाचक टोली 20 वर्षों से कथावचन कर रहे हैं क्षेत्र में और लोकप्रिय कथावाचक टोली हैं। बात दरअसल ये थी कि कथावाचकों को साजिशन कथा वाचन करने बुलाया गया और वहां उन्हें मारा पीटा गया जिससे PDA समाज के लोग डर जाएं और कथावाचन छोड़ दें क्योंकि जिन लोगों ने कथावाचकों को मारा पीटा है वे भाजपाई हैं और कथावाचन को वे अपना धंधा समझते हैं और उनके धंधे में कोई बंटवारा कैसे कर रहा है ये उन्हें खल रहा था। सिर्फ जाति और PDA से नफरत के कारण इन कथावाचकों को भाजपा ने पिटवाया है जिससे PDA समाज डर जाएं और भाजपा की सत्ता कायम रहे। क्योंकि जब से PDA ने एकजुट होकर भाजपा को यूपी में हराया है तबसे भाजपा PDA को डराना, तोड़ना चाहती है।' राष्ट्रीय जनता दल के नेताओं ने एक सुर से इस घटना की आलोचना की थी। आधिकारिक X हैंडल से बेहद तल्ख भाषा का इस्तेमाल किया गया था, जिसे पार्टी ने बाद में हटा दिया। 

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शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंदर सरस्वती ने क्या कहा है?

ज्योतिर्मठ के शकंराचार्य अविमुक्तेश्वरानंदर सरस्वती ने विवाद पर कहा, 'जो लोग वर्णाश्रम व्यवस्था को मानते हैं, उन्हें गलत नहीं कह सकते हैं। नए विचारों के साथ जो लोग खड़े हैं, उन्हें गलत नहीं कह सकते हैं। व्यास पीठ पर बैठने का अधिकार है ब्राह्मण को है लेकिन किसी के भी कथा कहने पर रोक नहीं है।' 


काशी विद्वत परिषद ने क्या कहा है?

काशी विद्वत परिषद ने कहा है कि सारी जातियों को कथा कहने का अधिकार है। काशी विद्वत परिषद के महामंत्री प्रोफेसर रामनारायण द्विवेदी ने कहा है, 'हमारी सनातन परंपरा में कई गैर ब्राह्मण लोग हुए हैं, जिन्हें ऋषि कहा गया है। महर्षि वाल्मीकि, वेदव्यास या रविदास को भी सनातन परंपरा में सम्मान और आदर मिला है। भागवत कथा कहने का अधिकार सभी हिंदुओं को है। किसी हिंदू को नहीं रोका जा सकता है। जिसमें भक्ति है, ज्ञान है, जानकार है, उन्हें कथा कहने का अधिकार है।'

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