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मराठा और किसान नाराज़! फिर भी मराठवाड़ा में BJP को कैसे मिली बड़ी जीत?

मराठवाड़ा में मराठा रिजर्वेशन और सोयाबीन किसानों के संकट के बावजूद कैसे महायुति को जीत मिलने की क्या हैं वजहें?

Ajith pawar, eknath shinde and devendra fadnavis : PTI

एनसीपी प्रमुख अजित पवार, शिवसेना प्रमुख एकनाथ शिंदे और बीजेपी नेता देवेंद्र फडणवीस । पीटीआई

महाराष्ट्र विधानसभा के लिए 20 नवंबर को चुनाव हुए और 23 नवंबर को नतीजों की घोषणा कर दी गई। नतीजे चौंकाने वाले थे। बीजेपी, एनसीपी और शिवसेना वाली महायुति को 230 सीटें मिलीं जबकि कांग्रेस, एनसीपी(एसपी) और शिवसेना (यूबीटी) के गठबंधन महा विकास अघाड़ी को सिर्फ 54 सीटें ही मिल सकीं।

 

बीजेपी ने लगाए जा रहे सारे कयासों और समीकरणों को गलत साबित कर दिया। यहां तक कि मराठवाड़ा क्षेत्र में भी महायुति को भारी जीत मिली। मराठवाड़ा क्षेत्र में कुल 46 सीटों में से महायुति को 40 सीटों पर जीत हासिल हुई, जबकि राजनीतिक गलियारों में कयास लगाए जा रहे थे कि बीजेपी के लिए मराठवाड़ा में ज्यादा सीटें निकाल पाने की राह काफी मुश्किल होगी।

 

क्यों माना जा रहा था ऐसा

मराठवाड़ा में बीजेपी के बेहतर प्रदर्शन न कर पाने के पीछे दो कारण बताए जा रहे थे। पहला फैक्टर तो मनोज जरांगे पाटिल का था और दूसरा फैक्टर था सोयाबीन किसानों का संकट।

 

जरांगे पाटिल मराठा रिज़र्वेशन के लिए आंदोलन चला रहे थे और इसे लागू न करने के लिए महायुति सरकार को दोषी बता रहे थे। ज़ाहिर है वह बीजेपी का विरोध कर रहे थे।

 

इसी तरह से दूसरा मुद्दा था सोयबीन किसानों का। मराठवाड़ा क्षेत्र में सोयबीन की काफी विस्तृत कृषि की जाती है। इस साल सोयाबीन की पैदावार मराठवाड़ा में अच्छी हुई है, लेकिन किसानों को अपनी फसल को एमएसपी से कम कीमत पर बेचना पड़ रहा है। खास बात यह है कि पिछले साल सोयाबीन का उत्पादन बेहतर नहीं हुआ था जिसकी वजह से किसानों की वित्तीय हालत काफी खराब हो गई थी। इस साल पैदावार अच्छी हुई तो किसान इस बात की उम्मीद कर रहे थे कि उन्हें बेहतर कीमत के साथ अच्छी कमाई हो जाएगी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. बल्कि सोयाबीन उत्पादन की बढ़ती लागत और फसल की कम कीमत मिलने की वजह से कहा जा रहा था कि किसान काफी गुस्से हैं।

 

तो फिर ऐसा क्या हुआ कि इन दोनों फैक्टर्स के होते हुए भी महायुति मराठवाड़ा में 46 में से 40 सीटें जीतने में कामयाब रही।

 

लाडकी बहना योजना

राजनीतिक जानकारों का कहना है कि महायुति के जीतने में लाडकी बहना योजना का बड़ा योगदान है। इस बार के चुनाव में महिलाओं की करीब 6 फीसदी ज्यादा वोटिंग हुई है। यह माना जा रहा है कि महिलाओं ने महायुति के पक्ष में बढ़-चढ़कर वोट किया क्योंकि महायुति सरकार की तरफ से लगातार ऐसा मैसेज देने को कोशिश की जा रही थी कि अगर उनकी सरकार दोबारा सत्ता में नहीं आई तो यह योजना बंद हो जाएगी.

 

दूसरा पहलू इसका यह भी था कि शिंदे सरकार ने प्रतिमाह 1500 रुपये के हिसाब से अब तक 5 महीने की कुल धनराशि 2 करोड़ से ज्यादा महिलाओं के खाते में दे दी थी जिसने महिलाओं के अंदर एक अतिरिक्त विश्वास पैदा किया। साथ ही महायुति ने अपने मैनिफेस्टो में यह भी कहा कि इस राशि को बढ़ाकर 2100 रुपये कर दिया जाएगा। लाडकी बहना योजना को जुलाई 2024 में शुरू की गई थी।

 

इसी राशि ने संकट से गुजर रहे किसानों के भी मन में विश्वास पैदा किया, जिसकी वजह से उनका गुस्सा संभवतः चुनाव में उतना ज्यादा देखने को नहीं मिला।

 

जरांगे पाटिल का चुनाव में कैंडीडेट न उतारना

ऐन मौके पर जरांगे पाटिल का विधानसभा में किसी कैंडीडेट को न उतारने की घोषणा करना भी बीजेपी के लिए फायदेमंद रहा। खास बात यह है कि पाटिल लगातार बीजेपी के खिलाफ बोल रहे थे। वह लगातार यह संदेश दे रहे थे कि मराठा रिजर्वेशन में बीजेपी की वजह से ही रुकावट पैदा हो रही है।

 

लेकिन अचानक से उन्होंने घोषणा कर दी कि वह विधानसभा चुनाव में कोई कैंडीडेट नहीं उतारेंगे। मराठा लोगों को फैसला करना है कि वे किसे वोट देते हैं और किसे वोट नहीं देते। उस बीच ऐसी भी बातें उठकर आने लगी थीं कि जरांगे को कहीं से कोई फोन आया इसके बाद उन्होंने यह फैसला किया। हालांकि मीडिया में दिए एक इंटरव्यू में जरांगे ने इस बात का खंडन किया और कहा था कि उन्हें कहीं से कोई फोन नहीं आया था।

 

ओबीसी वोट का एकजुट होना

तीसरा मराठवाड़ा क्षेत्र में मराठा को ओबीसी का दर्जा दिए जाने का मुद्दा उठने के बाद से ही मराठा और ओबीसी के बीच एक दरार पैदा हो गई और ओबीसी वोट पूरी तरह से बीजेपी के पक्ष में एकजुट हो गया। जब जरांगे पाटिल ने मराठा रिजर्वेशन के लिए आंदोलन शुरू किया था तो उनको ओबीसी कम्युनिटी से काफी विरोध झेलना पड़ा था।

 

बंटेंगे को कटेंगे

कुछ हद तक इस नारे ने भी बीजेपी की मदद की। बीजेपी के इस नारे ने हिंदुओं को महायुति के पक्ष में एकजुट होने में कुछ हद तक मदद किया। कुछ राजनीतिक पंडितों का कहना है कि इसकी वजह से कुछ मराठा वोट भी महायुति को मिले, जिसने उसकी जीत का रास्ता आसान कर दिया। 

 

सोयाबीन किसानों को 6 हजार देने का वादा

बीजेपी भी कहीं न कहीं भांप गई थी कि सोयाबीन किसानों का मुद्दा उसके लिए नुकसानदायक हो सकता है, इसलिए पीएम मोदी ने सोयाबीन के लिए एमएसपी को 6000 रुपये प्रति क्विंटल करने की घोषणा की। यही नहीं इसके पहले महाराष्ट्र सरकार ने संकट से जूझ रहे किसानों के लिए 5 हज़ार रुपये की सहायता राशि देने की घोषणा की थी।

 

यही नहीं डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस ने भावांतर योजना की भी घोषणा की,  जिसके तहत उन्होंने बाजार मूल्य और एमएसपी के बीच के अंतर को सीधे किसानों के खाते में ट्रांसफर करने का वादा किया.

 

विपक्ष मुद्दे को उठा नहीं पाया

कुछ एक्सपर्ट्स का कहना है कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि सोयाबीन किसानों के संकट का मुद्दा काफी बड़ा था, लेकिन विपक्ष इसे समय रहते और सही ढंग से उठा नहीं पाया. इसलिए यह जितना बड़ा मुद्दा बन सकता था उतना बड़ा मुद्दा बना नहीं। यह एक तरह से विपक्ष के स्तर पर कमी थी जिसका भी बीजेपी को लाभ मिला।

 

इन्हीं सब कारणों ने मिलकर मराठवाड़ा में बीजेपी की जीत को सुनिश्चित किया। 

 

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