केरल के ईसाइयों में उम्मीद क्यों देख रही है बीजेपी? नजर वोट बैंक पर
पूरे देश में कुछ ही ऐसे राज्य हैं, जहां बीजेपी कभी सत्ता में नहीं आ पाई है। केरल इन्हीं राज्यों में से एक है। बीजेपी की हमेशा से लालसा रही है कि उसकी सत्ता केरल में आए। मगर, केरल की सत्ता में आने के लिए बीजेपी को अपने कोर वोटर हिंदुओं का साथ में ईसाईयों का साथ चाहिए।

इसाई समुदाय के साथ में केरल बीजेपी चीफ राजीव चंद्रशेखर। Photo Credit (@RajeevRC_X)
बीजेपी शासित छत्तीसगढ़ में जबरन धर्मांतरण और मानव तस्करी के आरोप में 25 जुलाई को केरल की दो ननों को दुर्ग जिले से गिरफ्तार किया गया था। तब से लेकर अबतक दोनों ननों की गिरफ्तारी राजनीतिक विवाद बन गई है। केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन, कांग्रेस सांसद राहुल गांधी और प्रियंका गांधी दोनों नन को रिहा करने की मांग की थी। वहीं, छत्तीसगढ़ के सीएम विष्णु देव साय ने इस मामले का राजनीतिकरण करने का आरोप लगाया। दोनों ननों का नाम प्रीति मैरी और वंदना फ्रांसिस है। दोनों ईसाई समुदाय से आती हैं।
इस विवाद की वजह से बीजेपी और ईसाई समुदाय के बीच संबंधों में तनाव पैदा हो गया है। छत्तीसगढ़ का विवाद केरल पहुंच चुका है। केरल में ईसाईयों की मान-मुनव्वल शुरू हो चुकी है। बीजेपी की केरल इकाई ने ईसाई समुदाय की नाराजगी को दूर करने के लिए और दरार आने के बाद स्थिति को सुधारने के लिए बहुआयामी रणनीति अपनाई है।
केरल की सत्ता में बीजेपी
पूरे देश में कुछ ही ऐसे राज्य हैं, जहां बीजेपी कभी सत्ता में नहीं आ पाई है। केरल इन्हीं राज्यों में से एक है। बीजेपी की हमेशा से लालसा रही है कि उसकी सत्ता केरल में आए। मगर, केरल की सत्ता में आने के लिए बीजेपी को अपने कोर वोटर हिंदुओं का साथ में ईसाईयों का साथ चाहिए। बीजेपी शासित छत्तीसगढ़ में दोनों ननों की गिरफ्तारी और फिर उसके बाद उपजे विवाद के बाद पार्टी समुदाय के साथ रणनीतिक रूप से अपनी नजदीकियां बढ़ा रही है।
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चर्च नेतृत्व के साथ रणनीतिक बातचीत
दरअसल, केरल बीजेपी काफी समय से ईसाई धर्म गुरुओं, नेताओं और चर्च नेतृत्व के साथ रणनीतिक बातचीत कर रही थी, लेकिन दोनों ननों के विवाद ने इस बातचीत को धीमा कर दिया है। इससे राज्य में पार्टी को झटका जरूर लगा है। 2 अगस्त को दोनों ननों को छत्तीसगढ़ के बिलासपुर की विशेष अदालत ने जमानत मिल गई। दोनों को 50-50 हजार रुपये का मुचलके पर छोड़ा गया। इसके आलावा विदेश जाने पर रोक रहेगी। उन्हें अपना पासपोर्ट भी जमा करवाना होगा।
ननों की जमानत का श्रेय
इन कड़ियों में एक दिलचस्प बात ये है कि केरल बीजेपी चर्च और समुदाय को ये बता रहे हैं कि ननों की जमानत के लिए सिर्फ बीजेपी ने ही ईमानदार कोशिशें की हैं। पार्टी का दावा है कि केरल के कई बिशपों ने इस मुद्दे पर बीजेपी के रुख को स्वीकारा है। इस विवाद के बाद राज्य के बीजेपी नेता ईसाई पादरियों से मिल रहे हैं ताकि उन्हें यह विश्वास दिलाया जा सके कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के सकारात्मक हस्तक्षेप के कारण ही ननों को जमानत मिल पाई है। दोनों गिरफ्तारी के बाद से नौ दिनों तक न्यायिक हिरासत में रही थीं।
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दरअसल, इस विवाद के बावजूद, बीजेपी के लिए खुश होने की एक वजह है क्योंकि इस मुद्दे पर सभी चर्च एकमत नहीं हैं। शक्तिशाली कैथोलिक चर्च की एक प्रमुख आवाज बनकर उभरे आर्चबिशप जोसेफ पैम्पलानी ने ननों को जमानत दिलाने में बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व की भूमिका की बताई है। हालांकि, इसके विपरीत आर्चबिशप जोसेफ के साथी बिशप पॉली कन्नूक्कदन का रुख के बिल्कुल अलग है। कन्नूक्कदन ने एक पत्र में कहा है कि केंद्र और छत्तीसगढ़ की बीजेपी सरकारों ने दोनों ननों की रिहाई सुनिश्चित करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया।
दो बिशप के अलग रुख
इस बीच एक महत्वपूर्ण घटना ये घटी कि ननों की रिहाई के बाद गैर-कैथोलिक संप्रदायों के कई बिशप और पादरी इसका आभार जताने के लिए केरल बीजेपी के पार्टी मुख्यालय पहुंचे। इसके बाद बीजेपी को भरोसा हो गया कि इस घटनाक्रम ने केरल के पूरे ईसाई नेतृत्व में नाराजगी पैदा नहीं की है।
इस साल के अंत में राज्य में स्थानीय निकाय चुनाव होने वाले हैं। बीजेपी अभी से केरल के युवाओं से जुड़ने के लिए 'विकसित केरलम' का नारा बुलंद किया है। इसी नारे के साथ पार्टी आगे बढ़ रही है। राज्य के एक नेता ने इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए कहा, 'लोग जीवन और आजीविका से जुड़े मुद्दों को लेकर चिंतित हैं। हम ईसाई युवाओं से आसानी से जुड़ सकते हैं, जो बेरोजगारी जैसी समस्याओं का सामना कर रहे हैं और नौकरी की तलाश में देश छोड़ने को मजबूर हैं। समुदाय के प्रति हमारा दृष्टिकोण मुद्दा-आधारित रहा है। हमने उन्हें इसके समाधान का आश्वासन दिया है।'
केरल में बीजेपी को ईसाइयों का साथ
केरल में बीजेपी के ईसाई समुदाय से संपर्क अभियान चला रही है। इससे पार्टी अपना राज्य में विस्तार कर रही है। इस अभियान का नेतृत्व खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कर रहे हैं। पीएम खुद कई बार ईसाई धर्म गुरुओं से दिल्ली में मुलाकात कर चुके हैं। अप्रैल 2023 में उन्होंने अलग-अलग ईसाई संप्रदायों के आठ बिशपों से मुलाकात की थी। चर्चा है कि पीएम ने इस दौरान बिशपों से बीजेपी के लिए ईसाई समुदाय का समर्थन मांगा था।
इसके बाद बीजेपी ने ईसाई समुदाय तक अपनी पहुंच बढ़ाने के लिए केरल में स्नेह यात्रा नाम का राज्यव्यापी अभियान शुरू किया था। इन कोशिशों का पार्टी को चुनावी फायदा भी मिला है। केरल में बीजेपी ने अपने वोट शेयर में शानदार बढ़ोतरी की है। पार्टी को 2024 के लोकसभा चुनाव में पिछले चुनाव के मुकाबले में 3 फीसदी ज्यादा 16.68 फीसदी वोट मिले। पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने केरल में अपनी पहली लोकसभा सीट (त्रिशूर) जीत ली। यह दर्शाता है कि बीजेपी लगातार केरल में अपना जनाधार बढ़ाने के लिए काम कर रही है।
बीजेपी की चिंता क्या है?
लगातार जी तोड़ अभियानों की बदौलत बीजेपी ने ईसाई वोटों का एक बड़ा हिस्सा जीतने की कोशिश में केरल में दोगुनी ताकत लगा दी है। हालांकि, छत्तीसगढ़ प्रकरण ने उसकी मेहनत पर कुछ हद तक पानी फेरने का खतरा पैदा कर दिया है। पार्टी को डर है कि इस मुद्दे पर ईसाई और मुसलमान एकजुट हो सकते हैं। मगर, इस मजबूत गठबंधन को रोकने के लिए पार्टी रोकने के लिए अपनी पूरी कोशिश कर रही है।
पिछले कुछ सालों में बीजेपी ने दोनों समुदायों के बीच विभाजन पैदा करके ईसाइयों के एक वर्ग का समर्थन हासिल करने में कामयाबी पाई है। दरअसल, केरल में ईसाई और मुसलमान वोटों को कांग्रेस का आधार माना जाता है। अगर ये दोनों एक होते हैं तो इससे बीजेपी के किए पर पानी फिर सकता है।
ईसाई नेताओं को तरजीह
मगर, केरल की सत्ता में आने के लिए पीएम मोदी और गृह मंत्री अमित शाह आगे दिखाई देते हैं। सत्ता में आने के लिए बीजेपी ने एक अभूतपूर्व कदम के तहत केंद्रीय मंत्री जॉर्ज कुरियन, राष्ट्रीय सचिव अनिल के. एंटनी, राज्य महासचिव अनूप एंटनी जोसेफ और शॉन जॉर्ज को पार्टी की कोर कमेटी में जगह दी है। जबकि पहले आमतौर पर ईसाई समुदाय से इसमें केवल एक ही चेहरा होता था।
केरल में ईसाई समुदाय बीजेपी के लिए कितना महत्वपूर्ण है इससे समझा जा सकता है- केरल बीजेपी प्रमुख राजीव चंद्रशेखर ने दोनों ननों को जमानत मिलने के बाद कहा, 'मैं इस बात से आश्वस्त हूं कि ननों पर धर्मांतरण के आरोप झूठे हैं।
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