चुनाव को भारत में लोकतंत्र का महापर्व माना जाता है। हर चुनाव के दौरान उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतारे जाते हैं। कुछ सेलिब्रेटी तो कुछ आम लोग होते है। भड़काऊ भाषण, रैलियां, रोड शो और बैनर-झंडे के साथ चुनावी रंग वाकई बहुत दिलचस्प होते हैं।
चुनाव जीतने के इरादे से ही उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतरता है। हालांकि, तमिलनाडु के सेलम जिले के मेट्टूर से के. पद्मराजन चुनाव में जीत और हार को कुछ अलग तरीके से देखते है। हमेशा से उनका लक्ष्य चुनाव जीतने पर नहीं बल्कि हारने पर रहा है। इसमें कोई हैरान या चौंकाने वाली बात नहीं है बल्कि हकीकत है।
कौन हैं के. पद्मराजन
के. पद्मराजन खुद को 'ऑल इंडिया इलेक्शन किंग' कहते है। वजह बहुत खास है, क्योंकि यह वर्ष 1988 से अब तक 239 चुनाव लड़ चुके हैं, लेकिन किसी भी चुनाव में सफलता हाथ नहीं लगी। नौबत यह रहा कि इनका नाम लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में 'भारत के सबसे असफल उम्मीदवार' के रूप में दर्ज हो चुका है।
मतदाताओं से क्या अपील?
चुनावी रैलियों में अक्सर उम्मीदवारों को ज्यादा से ज्यादा वोट करने की अपील करते देखा और सुना होगा। वहीं, पद्मराजन अपने मतदाताओं से यह अपील करते फिरते हैं कि उन्हें वोट न दें! सोचिए, जो शख्स नामांकन दाखिल करने के साथ-साथ चुनाव प्रचार में बड़े पैमाने पर खर्च करता है, वहीं मतदाताओं से वोट नहीं करने की अपील करते हैं। 18वीं लोकसभा चुनाव के लिए भी पद्मराजन ने केरल के त्रिशूर और तमिलनाडु के धर्मपुरी से अपना नामांकन दाखिल किया था।
इन हस्तियों के खिलाफ लड़ चुके चुनाव
बता दें कि पद्मराजन ने जयललिता, एम करुणानिधि, वाईएसआर रेड्डी और एके एंटनी जैसे पूर्व मुख्यमंत्रियों सहित दिग्गज राजनेताओं के खिलाफ चुनाव लड़ा है। सिर्फ राजनेता ही नहीं, उन्होंने अभिनेत्री हेमा मालिनी और विजयकांत के खिलाफ भी चुनाव लड़ा है।
पद्मराजन की अजीबोगरीब इच्छा
के. पद्मराजन की अजीबोगरीब इच्छा है कि वह चुनाव हारते रहे। वह कहते है कि 'मुझे वोट न दें। मुझे वोट नहीं चाहिए, लेकिन मैं सबसे असफल उम्मीदवार का टैग बरकरार रखना चाहता हूं। मैं प्रचार नहीं करता, लेकिन जब मैं नामांकन दाखिल करने जाता हूं, तो मैं इसे बड़े ही शानदार तरीके से करता हूं।'
कितने राज्यों में चुनाव लड़ चुके हैं पद्मराजन?
पद्मराजन ने 12 राज्यों में अलग-अलग निर्वाचन क्षेत्रों से चुनाव लड़ चुके हैं। इसमें विधानसभा, संसद और राष्ट्रपति पद का चुनाव भी शामिल है। चुनाव लड़ने की दिलचस्पी उनकी खुद की साइकिल की दुकान से बढ़ी। 1988 में उन्होंने अपने दुकान पर ही सोच लिया था कि वह चुनाव लड़ेंगे। साइकिल मरम्मत की दुकान से होने वाली कमाई से वह चुनाव लड़ते है।