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UP की राजनीति में खास होते जा रहे हैं महाराजा सुहेलदेव, क्या है गणित?

हालिया यूपी की राजनीति में महाराजा सुहेलदेव काफी महत्त्वपूर्ण होते जा रहे हैं। राजभर वोटों को साधने के लिए सारी पार्टियां एड़ी-चोटी का जोर लगा रही हैं।

Maharaja Suheldev Statue । Photo Credit: X

महाराजा सुहेलदेव की प्रतिमा । Photo Credit: X

राजनीति में प्रतीकों का महत्त्व हमेशा से रहा है लेकिन उत्तर प्रदेश (यूपी) की राजनीति में इन दिनों यह और ज्यादा उभरकर सामने आ रहा है। इसकी बानगी हाल ही में योगी आदित्यनाथ सरकार द्वारा बार-बार उठाए जा रहे राजा सुहेलदेव के नाम से दिखाई देती है। सैय्यद सालार ग़ाज़ी से युद्ध कर देश की सांस्कृतिक सीमाओं की रक्षा करने वाले इस ऐतिहासिक योद्धा को अब सत्ता की भाषा में 'राष्ट्रनायक' कहा जा रहा है।

 

हाल के वर्षों में, 11वीं सदी के योद्धा राजा सुहेलदेव का नाम इस संदर्भ में तेजी से उभर रहा है। बहराइच में सैयद सालार मसूद गाजी को परास्त करने वाले राजा सुहेलदेव को राजभर और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) समुदायों के बीच एक नायक के रूप में देखा जाता है। राजा सुहेलदेव का ज़िक्र खासकर तब और ज्यादा बढ़ जाता है जब इसे पूर्वांचल या पिछड़े वर्ग की राजनीति के केंद्रबिंदु की तलाश की जाती है। पूर्वांचल वही इलाका है जहां राजभर, पासी, और निषाद जैसे समुदायों की राजनीतिक हिस्सेदारी तेज़ी से बढ़ रही है — और राजा सुहेलदेव इनमें राजभर समुदाय के सबसे बड़े प्रतीक बनकर उभरे हैं।

 

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खबरगांव इस लेख में आपको बताएगा कि कौन था राजा सुहेलदेव जो कि यूपी की राजनीति में काफी महत्त्वपूर्ण होते जा रहे हैं। साथ ही इस लेख में हम इस बात पर भी चर्चा करेंगे कि आखिर सुहेलदेव अचानक से इतने ज्यादा महत्त्वपूर्ण हो गए।

राजभर, पासी समुदाय आदर्श मानता है

राजा सुहेलदेव, जिन्हें शालदेव या सुहेल देव के नाम से भी जाना जाता है, 11वीं सदी में श्रावस्ती (वर्तमान बहराइच और श्रावस्ती जिले) के शासक थे। 17वीं सदी की फारसी रचना मिरात-ए-मसूदी के अनुसार, उन्होंने 1034 ईस्वी में चित्तौरा झील के तट पर सैयद सालार मसूद गजनवी को युद्ध में हराया और मार डाला।

 

हालांकि इतिहासकारों के बीच उनकी जाति को लेकर ऐतिहासिक स्रोतों की प्रामाणिकता पर विवाद है, लेकिन राजभर, पासी, और कुछ राजपूत समुदाय उन्हें अपना नायक मानते हैं। यूपी में राजभर समुदाय की आबादी करीब 3% है, लेकिन पूर्वांचल के 15 जिलों में उनकी संख्या 12-22% तक है, जिसकी वजह से करीब 60 विधानसभा सीटों और 15 से ज्यादा लोकसभा सीटों पर इनका अच्छा खासा प्रभाव देखने को मिलता है।

 

जिलेवार बात करें तो बहराइच में राजभर, पासी और निषाद मिलकर करीब 51 प्रतिशत, गाजीपुर में 49 प्रतिशत, आजमगढ़ में 47 प्रतिशत, जौनपुर में 44 प्रतिशत और बलिया में 50 प्रतिशत हैं।

राजभर वोटों को साधने की कोशिश

भाजपा ने ओपी राजभर के साथ गठबंधन कर 2017 में इस समुदाय को साधने की कोशिश की थी। हालांकि 2022 में ओपी राजभर सपा के साथ चले गए, लेकिन 2024 में भाजपा और सुभासपा (सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी) फिर साथ आ गए। इसका मकसद था सुहेलदेव के नाम से राजभर वोटों का ध्रुवीकरण। 

 

2024 के चुनाव प्रचार में योगी आदित्यनाथ ने लगभग 9 बार राजा सुहेलदेव का ज़िक्र प्रमुख मंचों से किया। इसी वर्ष फरवरी में बहराइच में सभा के दौरान उन्होंने कहा, ‘राजा सुहेलदेव ने विदेशी आक्रमणकारियों से इस देश की संस्कृति की रक्षा की थी, अब हम उनके पदचिन्हों पर चल रहे हैं।’ वहीं सपा और कांग्रेस ने इन योजनाओं को "चुनावी स्टंट" कहकर खारिज किया और मांग की कि राजा सुहेलदेव को एनसीईआरटी और यूपी बोर्ड की किताबों में स्थान मिले।

स्मारक बनाने का फैसला

योगी आदित्यनाथ सरकार ने राजा सुहेलदेव को एक राष्ट्रीय नायक के रूप में स्थापित करने के लिए कई कदम उठाए हैं। 16 फरवरी 2021 को, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बहराइच के चित्तौरा झील के किनारे महाराजा सुहेलदेव स्मारक की आधारशिला रखी थी। इस स्मारक का निर्माण 10 जून 2025 को पूरा हुआ, जिसका उद्घाटन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने किया।

स्मारक की लागत लगभग 39.49 करोड़ रुपये थी, जिसमें 40 फीट ऊंची महाराजा सुहेलदेव की कांस्य प्रतिमा, म्यूजियम, लाइब्रेरी, कैफेटेरिया, पार्क, और पर्यटक सुविधाएं शामिल हैं।

 

इसके अलावा, योगी सरकार ने स्मारक के आसपास पर्यटन विकास के लिए अतिरिक्त 44 करोड़ रुपये आवंटित किए, जिसमें फेस्टिवल हॉल, हर्बल गार्डन, और वीवीआईपी गेस्ट हाउस जैसी सुविधाएं शामिल हैं।

भाषणों में राजा सुहेलदेव

योगी आदित्यनाथ ने कई अवसरों पर राजा सुहेलदेव की वीरता को राष्ट्रीय गौरव से जोड़ा है। 20 मार्च 2025 को बहराइच में एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा, 'आक्रांताओं का महिमामंडन करना देशद्रोह की नींव रखना है। स्वतंत्र भारत ऐसे देशद्रोहियों को स्वीकार नहीं करेगा।' 10 जून 2025 को स्मारक उद्घाटन के दौरान, योगी ने राजा सुहेलदेव को 'राष्ट्रवीर' और 'सांस्कृतिक संरक्षक' बताया, जो हिंदू एकता और राष्ट्रीयता का प्रतीक हैं।

 

उनके भाषणों में राजा सुहेलदेव को गाजी मियां (सालार मसूद) के खिलाफ विजेता के रूप में पेश किया गया, जो स्थानीय स्तर पर गाजी मियां मेले के प्रभाव को कम करने की रणनीति का हिस्सा है। योगी ने यह भी कहा कि समाजवादी पार्टी (सपा) और कांग्रेस ने वोट बैंक के लिए सुहेलदेव के योगदान को नजरअंदाज किया, जबकि उनकी सरकार ने उनकी विरासत को सम्मान दिया।

वोट बैंक की रणनीति

राजा सुहेलदेव का उभार यूपी की जाति-आधारित राजनीति में एक सुनियोजित रणनीति का हिस्सा है। भारतीय जनता पार्टी (BJP) और सहयोगी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) इस प्रतीक के जरिए दो लक्ष्य साध रहे हैं-

 

हिंदू वोटों का एकीकरण: राजा सुहेलदेव को हिंदू एकता के प्रतीक के रूप में पेश कर BJP अपने कोर हिंदू वोट बैंक को मजबूत कर रही है। बहराइच में गाजी मियां मेले को प्रशासनिक रोक और सुहेलदेव के विजय दिवस के आयोजन से यह स्पष्ट होता है। 2025 में गाजी मियां मेले को अनुमति नहीं दी गई, जबकि सुहेलदेव विजय मेला बड़े पैमाने पर आयोजित हुआ।

 

OBC और राजभर वोटों को खींचना: पूर्वांचल में राजभर समुदाय का प्रभाव 60 विधानसभा सीटों पर है। सुभासपा अध्यक्ष और योगी सरकार के मंत्री ओम प्रकाश राजभर ने सुहेलदेव को राजभर नायक के रूप में प्रचारित किया है।

 

2022 के विधानसभा चुनाव में सुभासपा ने BJP के साथ गठबंधन कर 6 सीटें जीतीं, जो राजभर वोटों की ताकत दर्शाता है। 2024 के लोकसभा चुनाव में, बहराइच और आसपास के क्षेत्रों में BJP की जीत में राजभर वोट निर्णायक रहे।

क्या कहते हैं आंकड़े?

यूपी में OBC आबादी लगभग 40% है, जिसमें राजभर समुदाय 3% हिस्सा रखता है। पूर्वांचल के 15 जिलों (बहराइच, श्रावस्ती, गोंडा, बलरामपुर, आदि) में राजभर वोटर 18% तक हैं। इन क्षेत्रों की 60 विधानसभा सीटों में से 40 पर राजभर मतदाता निर्णायक हैं।

 

2017 में BJP ने पूर्वांचल में 115 में से 84 सीटें जीतीं, जिसमें राजभर समुदाय का समर्थन महत्वपूर्ण था। 2022 में सुभासपा के गठबंधन से BJP को 255 सीटें मिलीं। स्मारक निर्माण पर 39.49 करोड़ रुपये और पर्यटन विकास पर 44 करोड़ रुपये खर्च करके बीजेपी राजभर समुदाय में अपनी पैठ जमाना चाहती है।

 

बहराइच में 2025 में पर्यटकों की संख्या में 15% वृद्धि दर्ज की गई, जो स्मारक के उद्घाटन के बाद वहां के लोगों की आय बढ़ी है जिसका राजनीतिक लाभ बीजेपी को मिल सकता है।

 

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किस जाति से थे राजा सुहेलदेव?

सुहेलदेव की जाति को लेकर विवाद बना हुआ है। राजभर और पासी समुदाय उन्हें अपना नायक मानते हैं, जबकि राजपूत करणी सेना ने उन्हें क्षत्रिय राजपूत बताया और उनकी जाति बदलने को 'इतिहास से छेड़छाड़' करार दिया। कुछ एक्सपर्ट्स का कहना है कि मिरात-ए-मसूदी को ऐतिहासिक स्रोत नहीं माना जा सकता।

 

विपक्षी दलों, खासकर सपा और कांग्रेस, ने BJP पर सुहेलदेव को वोट बैंक के लिए इस्तेमाल करने का आरोप लगाया। सपा नेता अखिलेश यादव ने कहा कि BJP 'इतिहास को तोड़-मरोड़ रही है।' इसके अलावा, गाजी मियां मेले पर रोक से मुस्लिम समुदाय में नाराजगी बढ़ी, जो सामाजिक तनाव का कारण बन सकती है।

 

सुहेलदेव का प्रतीक 2027 के यूपी विधानसभा चुनाव में और महत्वपूर्ण हो सकता है। BJP और सुभासपा की रणनीति राजभर और OBC वोटों को मजबूत करने की है। योगी के भाषणों और सुभासपा की सक्रियता ने राजभर और OBC वोटों को आकर्षित किया, जिसका प्रभाव 2022 और 2024 के चुनावों में दिखा।

 

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