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एक MP-MLA नहीं! फिर भी महाराष्ट्र में प्रासंगिक क्यों हैं राज ठाकरे?

राज ठाकरे शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे की बॉडीलैंग्वेज को पूरी तरह से आत्मसात कर चुके हैं। वह बाल ठाकरे की तरह ही तेवर के साथ बोलते हैं, जो जनता को लुभाता है।

Raj Thackeray

राज ठाकरे। Photo Credit (@RajThackeray)

महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) के प्रमुख राज ठाकरे इन दिनों फिर से राज्य की सियासत के केंद्र बिंदु बन गए हैं। हर तरफ उनकी की चर्चा हो रही है। आलम ये है कि हाशिए पर चली गई उनकी पार्टी और उनके कार्यकर्ता राज्य की सियायत में सक्रिय हो गए हैं। उनकी बात महाराष्ट्र से निकलकर राष्ट्रीय राजनीति में भी होने लगी है। दरअसल, यह माहौल महाराष्ट्र में भाषा विवाद के बाद बना है।

 

राज ठाकरे महाराष्ट्र में मराठी के ऊपर हिंदी को थोपे जाने का कड़ा विरोध कर रहे हैं। दरअसल, महाराष्ट्र की देवेंद्र फडणवीस सरकार ने राज्य के स्कूलों में कक्षा 1-5 तक के बच्चों को हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में अनिवार्य करने का फैसला लिया था, जिसका राज ठाकरे ने अपने चचेरे भाई उद्धव ठाकरे के साथ मिलकर विरोध किया। विरोध करने का असर ये हुआ कि फडणवीस सरकार को अपना फैसला वापस लेना पड़ा।

 

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5 जुलाई की 'विजय रैली'

ठाकरे ब्रदर्स के विरोध के बाद सरकार ने जब अपना फैसला वापस लिया तो इसके उपलक्ष्य में राज-उद्धव ने मिलकर मुंबई में 5 जुलाई को 'विजय रैली' की। इसके बाद दोनों भाईयों के बीच लंबे समय से चली आ रही सियासी बगावत पर जमी बर्फ पिघल गई। 5 जुलाई को ही राज और उद्धव ठाकरे 20 साल बाद एक साथ आ गए, जिसके बाद राज्य का सियासी समीकरण बदल गया।

 

 

विजय रैली में हिंदी विरोध में, मराठी और मराठी अस्मिता की रक्षा के लिए राज ठाकरे ने एक तरह से एमएनएस के कार्यकर्ताओं को गैर मराठियों को पीठने की खुली छूट दे दी। इस घटना के बाद महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के कार्यकर्ताओं ने महाराष्ट्र के अलग-अलग हिस्सों में कई लोगों के साथ हिंदी ना बोलने पर मारपीट की है। इन मारपीट की घटनाओं के वीडियो सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हुए हैं। इन हमलों में उद्धव की शिवसेना (UBT) भी शामिल है।

सुर्खियों में कैसे आए राज ठाकरे?

हिंदी ना बोलने पर लोगों के साथ मारपीट की इन घटनाओं का असर ये हुआ है कि राजनीति में पर्दे के पीछे जा चुके राज ठाकरे एका-एक सुर्खियों में आ गए हैं। उनकी महाराष्ट्र से लेकर दिल्ली तक बात होने लगी है। मीडिया राज ठाकरे और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना को लेकर प्राइम टाइम में बहस करने लगा है। बीजेपी भी राज ठाकरे पर ही हमले कर रही है। बीजेपी के नेता राज के ऊपर हमले करके उन्हें हेडलाइंस में बनाए हुए हैं।

 

मगर, दूसरी तरफ राज के साथ में ही हिंदी का विरोध करने वाले उद्धव ठाकरे की उस लिहाज से कम बात हो रही है, जितनी राज ठाकरे की हो रही है। दरअसल, ये तब है जब महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के पास महाराष्ट्र विधानसभा में ना तो एक भी विधायक, ना एमएलसी और ना ही एक भी सांसद हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर राज ठाकरे महाराष्ट्र की राजनीति में 2006 से ही कैसे प्रासंगिक बने हुए हैं? आइए इस स्टोरी के माध्यम से समझते हैं कि राज ठाकरे राज्य की राजनीति में कैसे छा जाते हैं...

राज ठाकरे की खासियत

राज ठाकरे शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे की बॉडीलैंग्वेज को पूरी तरह से आत्मसात कर चुके हैं। वह बाल ठाकरे की तरह ही तेवर के साथ बोलते हैं, जो जनता को लुभाता है। यही तेवर जनता के अंदर जोश भर देता है। महाराष्ट्र की राजनीति को करीब से देखने के बाद समझ आता है कि बीजेपी राज ठाकरे को चमकाकर उद्धव ठाकरे के असर को कम करती हुई दिखाई देती है। आने वाले दिनों में महाराष्ट्र में नगर निकाय और देश के सबसे अमीर निगमल मुंबई की बीएमसी के चुनाव होने हैं। बीएमसी में उद्धव ठाकरे की शिवसेना का दशकों से कब्जा है।

 

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बीजेपी के लिए फायदेमंद?

वर्तमान में राज ठाकरे मीडिया में भले ही सबसे ज्यादा दिखाई दे रहे हों लेकिन वह बीजेपी के लिए फायदेमंद हो सकते हैं। राज ठाकरे उसी मराठी भाषियों को लुभाते हैं, जो मराठी भाषी उद्धव ठाकरे के कोर वोटर हैं। यही मराठी शिवसेना के बेस मतदाता हैं। ऐसे में राज ठाकरे को जितना चमकाया जाएगा, उतना राज शहरी क्षेत्रों में उद्धव को कमजोर कर सकते हैं। जाहिर है कि इसका सीधा फायदा या तो बीजेपी को होगा या फिर एकनाथ शिंदे की पार्टी शिवसेना को होगा।

 

 

राज ठाकरे पहले भी इस तरह का सियासी गेम खेल चुके हैं। राजनीति में उनका उभार भी इसी बलबूते हुआ है। 2006 से 2009 के बीच राज ठाकरे महाराष्ट्र की राजनीति में अचानक से उभरे थे। शिवसेना से अलग होकर उन्होंने महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना बनाई थी। उन दिनों एमएनएस उत्तर भारतीयों को पीटवाने में शामिल रहती थी, साथ ही राजनीति और बॉलीवुड के बड़े चेहरों को टरगेट किया करती थी और मराठीवाद का परचम लहराया करती थी। 

2009 में कांग्रेस का साथ

यह सब कांग्रेस की सरकार में हो रहा था। उस समय महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री कांग्रेस के दिग्गज नेता विलासराव देशमुख थे। पूर्ण बहुमत की सरकार चला रहे विलासराव देशमुख अपने राज में राज ठाकरे को उत्तर प्रदेश और बिहार के लोगों को परेशान करने और उन्हें पीटने के रही थी क्योंकि राज्य सरकार ने उस समय राज ठाकरे पर कोई एक्शन नहीं लिया था। कांग्रेस ने 2006-09 तब यह सब इसलिए होने दिया क्योंकि उस समय कांग्रेस राज ठाकरे के बहाने शिवसेना को कमजोर करना चाहती थी और एमएनएस को मजबूत करना चाहती थी। 

कैसे की 2009 में सियासत?

उस समय राज ठाकरे को लेकर मीडिया में खूब चर्चाएं होती थीं, अखबारों में हेडलाइन बनती थीं। इसका फायदा राज ठाकरे को मिला भी। 2009 के विधानसभा चुनाव हुए। यह महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के लिए पहला विधानसभा चुनाव था। ऐसे में अपने पहले ही विधानसभा चुनाव में नई नवेली एमएनएस के 13 विधायक जीते और 12 सीटों पर दूसरे नंबर पर रहे थे। इस चुनाव में महाराष्ट्र में बड़ा खेल हुआ था क्योंकि कांग्रेस ने राज के जरिए शिवसेना को कुछ हद तक कमजोर किया था और 2009 में कांग्रेस की सरकार एक बार फिर से सत्ता में वापस आ गई।

 

वर्तमान समय में महाराष्ट्र की जो राजनीति चल रही है, उसे देखने के बाद ऐसा लगता है कि मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और बीजेपी राज ठाकरे को उद्धव ठाकरे के मुकाबले मजबूत कर रहे हैं। पिछले दिनों सीएम फडणवीस ने तमाम व्यस्तताओं के बावजूद राज ठाकरे के साथ में एक घंटे से ज्यादा समय तक बंद कमरे में मुलाकात की थी। बीजेपी ये तब कर रही है जब राज ठाकरे के बार एक भी विधायक और सांसद नहीं है। ये वही एमएनएस है जिसे 2024 के विधानसभा चुनाव में महज 1.8 फीसदी वोट मिले। इस सियासत के पीछे क्या छिपा है ये आने वाले बीएमसी चुनाव के समय खुलेगा। 

महाराष्ट्र में राज ठाकरे की अहमियत

साल 2009 के विधासभा चुनाव और लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस को समर्थन करने वाले राज ठाकरे ने अचानक से 2014 में पाला बदलते हुए बीजेपी के तत्कालीन प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी का समर्थन कर दिया। इसके बाद के चुनावों में राज ठाकरे ने कांग्रेस-एनसीपी के लिए प्रचार किया। समय का पहिया घुमा तो 2019 के विधानसभा और लोकसभा चुनाव में उन्होंने फिर से नरेंद्र मोदी-बीजेपी का समर्थन किया। राज ने इस विधानसभा चुनाव में पीएम मोदी के साथ मंच शेयर किया।

 

पांच साल के बाद एमएनएस चीफ राज ठाकरे ने केंद्रीय गृह मंत्री से दिल्ली में जाकर मुलाकात की। शाह से मुलाकात के बाद राज ठाकरे ने 2024 विधानसभा-लोकसभा चुनाव दोनों में बीजेपी से हाथ मिला लिया, लेकिन 2025 में 5 जुलाई को उन्होंने शिवसेना (UBT) प्रमुख उद्धव ठाकरे से हाथ मिला लिया है। उद्धव ठाकरे से हाथ मिलाने के बाद राज ठाकरे के हर बयान राष्ट्रीय मीडिया में हेडलाइन बन रहे हैं।

 

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