logo

ट्रेंडिंग:

अहोई अष्टमी 2025: व्रत कथा से लेकर पूजा विधि तक, समझिए सबकुछ

अहोई अष्टमी का व्रत महिलाएं विशेष रूप से संतान की लंबी उम्र और सुख समृद्धि की कामना के लिए करती हैं। आइए जानते हैं अहोई अष्टमी की व्रत कथा क्या है?

Representational Picture

प्रतीकात्मक तस्वीर: Photo Credit: AI

अहोई अष्टमी व्रत विशेष रूप से महिलाएं अपने संतान की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि की कामना के लिए करती हैं। यह व्रत कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन महिलाएं निर्जला उपवास रखकर अहोई माता की पूजा करती हैं और रात में तारों को अर्घ्य देकर व्रत खोलती हैं। इस व्रत के साथ एक महत्वपूर्ण कथा जुड़ी हुई है, जिसे सुनना या पढ़ना अत्यंत शुभ माना जाता है।

 

इस दिन महिलाएं अहोई माता की पूजा करती हैं, जिसमें चांदी की अहोई (स्याऊ) का इस्तेमाल किया जाता है। इसमें हर बेटे के लिए एक चांदी का दाना डाला जाता है। पूजा में दीपक, चावल, दूध, फल, मिठाई आदि का इस्तेमाल होता है। पूजा के बाद, महिलाएं तारों को अर्घ्य देती हैं और व्रत का समापन करती हैं। इस दिन विशेष रूप से चाकू या छुरी का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। 

 

यह भी पढ़ें: रामायण काल से जुड़ा है यह मंदिर, क्या है सती अनसुइया से जुड़ी कथा?

व्रत का समय और शुभ मुहूर्त

अहोई अष्टमी का व्रत कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। इस वर्ष, अहोई अष्टमी का व्रत 13 अक्टूबर 2025 को है। पूजा का शुभ मुहूर्त शाम 5:53 बजे से 7:08 मिनट तक है। 

अहोई अष्टमी की कथा

अहोई अष्टमी की कथा के अनुसार, एक साहूकार की सात बहुएं और एक ननद थी। दिवाली से पहले कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को ये सभी महिलाएं जंगल में मिट्टी लाने गईं। इस दौरान, ननद के हाथ से एक साही के बच्चे की मृत्यु हो गई, जिससे साही माता क्रोधित हो गई और ननद को श्राप दिया कि उसकी कोख बांध दी जाएगी। ननद ने अपनी भाभियों से मदद की मांग की लेकिन कोई भी मदद के लिए तैयार नहीं हुआ। अंत में  सबसे छोटी भाभी ने अपनी कोख बंधवाने का निर्णय लिया। इसके बाद, उसकी संतान सातवें दिन मर जाती थी। एक पंडित ने उसे सुरही गाय की पूजा करने की सलाह दी, जो साही माता की सखी मानी जाती हैं। सुरही गाय की पूजा करने से साही माता प्रसन्न हुईं और ननद की कोख का बंधन समाप्त हुआ। 

 

यह भी पढ़ें: दीपावली 20 अक्टूबर को है या 21 को? धनतेरस से भैया दूज तक, जानिए तिथि

अहोई अष्टमी की मान्यता

अहोई अष्टमी का व्रत विशेष रूप से महिलाएं संतान की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि के लिए करती हैं। इस दिन महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं और अहोई माता की पूजा करती हैं। पूजा के बाद, आकाश में तारे दिखाई देने पर उन्हें अर्घ्य अर्पित किया जाता है। यह माना जाता है कि इस व्रत से संतान सुख की प्राप्ति होती है और संतान की उम्र लंबी होती है। 

पूजा विधि

  • स्नान और व्रत का संकल्प: पूजा की शुरुआत से पहले स्नान करें और व्रत का संकल्प लें।
  • अहोई माता की पूजा: घर में अहोई माता की तस्वीर या प्रतिमा स्थापित करें और दीपक जलाकर पूजा करें।
  • व्रत कथा का पाठ: अहोई अष्टमी की कथा का पाठ करें, जो व्रत का अभिन्न हिस्सा माना जाता है।
  • तारों को अर्घ्य देना: संतान सुख की प्राप्ति के लिए आकाश में तारे दिखाई देने पर उन्हें अर्घ्य अर्पित करें।
  • व्रत का पारण: पूजा के बाद, व्रत का पारण करें और आशीर्वाद प्राप्त करें। 

पूजा सामग्री

  • गंगाजल: पवित्रता के लिए।
  • दीपक और तेल: दीप जलाने के लिए।
  • पुष्प और धूप: पूजा में अर्पित करने के लिए।
  • फल और मिठाई: भोग अर्पित करने के लिए।
  • अहोई माता की तस्वीर या प्रतिमा: पूजा स्थल पर स्थापित करने के लिए।
  • कुमकुम, रोली, सिंदूर: पूजा सामग्री के रूप में। 

शेयर करें

संबंधित खबरें

Reporter

और पढ़ें

design

हमारे बारे में

श्रेणियाँ

Copyright ©️ TIF MULTIMEDIA PRIVATE LIMITED | All Rights Reserved | Developed By TIF Technologies

CONTACT US | PRIVACY POLICY | TERMS OF USE | Sitemap