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अक्षय तृतीया कथा: पांडवों के अक्षय पात्र से कृष्ण-सुदामा मिलन तक

अक्षय तृतीया पर्व को बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। आइए जानते हैं इस पर्व की कथाएं और इसका महत्व।

Image of Bhagwan Krishna

अक्षय तृतीया से है भगवान कृष्ण की कथा।(Photo Credit: Freepik)

अक्षय तृतीया, जिसे 'आखा तीज' भी कहा जाता है, हिन्दू धर्म में एक अत्यंत शुभ दिन माना जाता है। यह वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को आता है और इस दिन का नाम 'अक्षय' इसलिए पड़ा क्योंकि इस शब्द का अर्थ होता है- 'जिसका कभी नाश न हो'। मान्यता है कि इस दिन जो भी पुण्य कार्य, दान या शुभ कर्म किए जाते हैं, उनके फल कभी समाप्त नहीं होते।

 

इस पावन दिन से जुड़ी कई धार्मिक और पौराणिक कथाएं हैं, जो इस पर्व के महत्व को और भी बढ़ा देती हैं। आइए, इन कथाओं को विस्तार से समझते हैं:

भगवान परशुराम का जन्म

पौराणिक कथा के अनुसार, अक्षय तृतीया के दिन भगवान विष्णु के छठे अवतार परशुराम का जन्म हुआ था। यही कारण है कि इस दिन को परशुराम जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। भगवान परशुराम को अत्यंत शक्तिशाली, ब्रह्म तेज से युक्त और न्यायप्रिय ऋषि माना जाता है। उन्होंने धरती पर अत्याचार करने वाले क्षत्रियों को 21 बार समाप्त किया और धर्म की रक्षा की।

 

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भगवान श्रीकृष्ण और सुदामा की मित्रता

श्रीमद्भागवत में वर्णित एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार, अक्षय तृतीया के दिन ही श्रीकृष्ण ने अपने गरीब मित्र सुदामा का स्वागत किया था। सुदामा श्री कृष्ण से मिलने द्वारका गए थे लेकिन वह अपने मित्र से कुछ मांगने नहीं आए थे, बस भक्ति भाव से मिलने आए थे। उनके पास श्रीकृष्ण के लिए बस थोड़े से चावल थे।

 

श्रीकृष्ण ने उन चावलों को बहुत प्रेम से ग्रहण किया और उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर, बिना सुदामा की मांग किए ही, उनके जीवन की गरीबी को हमेशा के लिए दूर कर दिया। यह कथा अक्षय तृतीया के दिन दान और भक्ति के महत्व को दर्शाती है।

अक्षय पात्र की प्राप्ति – महाभारत कथा

महाभारत में वर्णन आता है कि जब पांडव वनवास में थे, तब अक्षय तृतीया के दिन उन्हें अक्षय पात्र की प्राप्ति हुई थी। यह पात्र भगवान सूर्य ने द्रौपदी को दिया था, जिसमें से कभी भी भोजन समाप्त नहीं होता था। जब तक द्रौपदी भोजन नहीं कर लेतीं, तब तक उस पात्र से असीमित भोजन निकलता रहता।

 

इस चमत्कारी पात्र के कारण पांडवों और उनके साथ रहने वाले ऋषियों का वनवास सरल हो गया। इस कथा के अनुसार अक्षय तृतीया दिन उन चीजों के लिए भी प्रतीक है, जो कभी समाप्त नहीं होतीं – जैसे कि पुण्य, भक्ति और भगवान की कृपा।

त्रेता युग की शुरुआत

धार्मिक मान्यता है कि त्रेता युग की शुरुआत भी अक्षय तृतीया के दिन ही हुई थी। त्रेता युग वह युग है जिसमें भगवान राम का जन्म हुआ और रामायण की घटनाएं घटित हुईं। इस प्रकार यह दिन युग परिवर्तन का भी प्रतीक है।

 

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गंगा नदी का पृथ्वी पर आगमन

एक और मान्यता के अनुसार, अक्षय तृतीया के दिन गंगा माता का पृथ्वी पर अवतरण हुआ था। भागीरथ की कठिन तपस्या के फलस्वरूप, स्वर्ग से गंगा को पृथ्वी पर लाया गया ताकि उनके पूर्वजों को मोक्ष मिल सके। इस दिन गंगा स्नान करने से विशेष पुण्य फल मिलता है और आत्मा की शुद्धि होती है।

कुबेर को खजाने का अधिपति बनाना

एक कथा के अनुसार, इस दिन धन के देवता कुबेर को देवताओं का खजांची नियुक्त किया गया था। इसलिए, अक्षय तृतीया को धन-संपत्ति की दृष्टि से भी अत्यंत शुभ माना जाता है। इस दिन सोना, चांदी या संपत्ति खरीदना बहुत ही लाभकारी माना गया है, क्योंकि यह कभी खत्म न होने वाली समृद्धि का प्रतीक होता है।

 

Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारी सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं।

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