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भगवान परशुराम: वह योद्धा जिसे युद्ध कला सिखाते थे भगवान शिव

सनातन धर्म में भगवान परशुराम की उपासना भगवान विष्णु के छठे अवतार के रूप में की जाती है। आइए जानते हैं, परशुराम जयंती की मान्यताएं।

Image of Bhagwan Parshuram

भगवान परशुराम(Photo Credit: AI Image)

हिन्दू धर्म में भगवान विष्णु विभिन्न स्वरूपों की उपासना की जाती है। इन्हीं में से एक भगवान परशुराम हिंदू धर्म के एक प्रमुख अवतार हैं, जिन्हें भगवान विष्णु के छठे अवतार के रूप में जाना जाता है। उनका जन्म त्रेता युग में हुआ था। भगवान परशुराम को एक योद्धा ब्राह्मण के रूप में जाना जाता है, जो ब्राह्मण होते हुए भी क्षत्रिय गुणों से युक्त थे। उनका असली नाम राम था लेकिन जब उन्होंने एक विशेष प्रकार का परशु धारण किया, तब से उन्हें परशु-राम कहा जाने लगा।

 

उनके पिता ऋषि जमदग्नि और माता रेणुका थीं। परशुराम बचपन से ही धार्मिक, तपस्वी और अत्यंत पराक्रमी थे। उन्हें शस्त्र विद्या का ज्ञान भगवान शिव से प्राप्त हुआ था। वे न केवल एक महान योद्धा थे बल्कि सत्य, धर्म और न्याय के रक्षक भी माने जाते हैं।

 

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परशुराम जयंती कब और क्यों मनाई जाती है?

परशुराम जयंती भगवान परशुराम के जन्मदिवस के रूप में मनाई जाती है। यह पर्व वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। वैदिक पंचांग के अनुसार, वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि 29 अप्रैल शाम 05 बजकर 30 मिनट पर शुरू हो रही है और इस तिथि का समापन 30 अप्रैल दोपहर 02 बजकर 12 मिनट पर होगा। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान परशुराम का जन्म प्रदोष काल में हुआ था, इसलिए उनकी उपासना प्रदोष काल में की जाती है। ऐसे में इस साल परशुराम जयंती 29 अप्रैल 2025, मंगलवार के दिन मनाई जाएगी।

 

परशुराम जयंती को मनाने का मुख्य कारण भगवान परशुराम के साहस, न्यायप्रियता और धर्म के प्रति उनकी निष्ठा को याद करना है। वह अन्याय और अधर्म के विरुद्ध उठ खड़े होने वाले पहले योद्धाओं में से एक माने जाते हैं।

इस दिन का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व

परशुराम जयंती का बहुत बड़ा महत्व है, विशेष रूप से ब्राह्मण समाज में। इस दिन लोग व्रत रखते हैं, मंदिरों में पूजा करते हैं और भगवान परशुराम की कथाओं का पाठ करते हैं। भगवान परशुराम को शस्त्र और शिक्षा का प्रतीक माना जाता है आज भी कई स्थानों पर परशुराम मंदिर हैं, जहां विशेष पूजन और हवन होते हैं। इस दिन लोग दान, तप और सेवा को विशेष महत्व देते हैं।

भगवान परशुराम से जुड़ी दो प्रमुख कथाएं

परशुराम द्वारा अपनी माता का वध करना

यह कथा भगवान परशुराम की आज्ञापालन और उनके तपस्वी जीवन की गहराई को दर्शाती है। कथा के अनुसार, एक दिन उनके पिता ऋषि जमदग्नि ने क्रोध में आकर परशुराम को आदेश दिया कि वह अपनी माता रेणुका का वध करें, क्योंकि उन्हें संदेह हुआ था कि माता का मन विचलित हुआ था। परशुराम ने बिना किसी संकोच के पिता की आज्ञा का पालन करते हुए अपनी माता का सिर काट दिया।

 

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पिता अपने पुत्र की आज्ञा पालन से प्रसन्न हुए और उन्हें वर मांगने को कहा। परशुराम ने माता को पुनर्जीवित करने का वरदान मांगा। ऋषि जमदग्नि ने माता को जीवनदान दे दिया। इस कथा से परशुराम की निष्ठा और उनके कठिन निर्णय लेने की क्षमता स्पष्ट होती है।

क्षत्रियों का संहार

भगवान परशुराम को अत्याचारी और अहंकारियों का नाश करने वाले देवता के रूप में पूजा जाता है। कथा के अनुसार, हैहय वंश के राजा सहस्त्रार्जुन ने परशुराम के पिता की हत्या कर दी और उनका आश्रम लूट लिया। इस घटना से क्रोधित होकर परशुराम ने प्रतिज्ञा ली कि वह पृथ्वी को 21 बार क्षत्रियों से मुक्त करेंगे, जो इस वंश से संबंध रखते हैं न कि आम क्षत्रिय समाज से। उन्होंने अपना वचन निभाया और 21 बार पृथ्वी से क्षत्रियों का संहार किया।

 

Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारी सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं।

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