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कठिन यात्रा से अमरता तक, अमरनाथ धाम को इसलिए कहते हैं तीर्थों का तीर्थ

हिंदू धर्म में अमरनाथ यात्रा को बहुत ही पवित्र माना जाता है। यह यात्रा बहुत कठिन होती है लेकिन इससे जुड़ी कई मान्यताएं लाखों श्रद्धालुओं को आकर्षित करती हैं।

Image of Amarnath Pratham Puja

अमरनाथ धाम की प्रथम पूजा।(Photo Credit: PTI File Photo)

जम्मू-कश्मीर के दुर्गम पहाड़ियों के बीच हिन्दू आस्था का एक केंद्र बसा हुआ है, जहां हर साल लाखों श्रद्धालु कठिन रास्तों को पार कर जाते हैं। यह धाम है अमरनाथ गुफा, जहां महादेव स्वयंभू बर्फ के शिवलिंग रूप में दर्शन देते हैं। महदेव का यह रूप हर साल प्राकृतिक रूप से बनता है और कहा तो यह भी जाता है कि इनका आकार चंद्रमा के घटने-बढ़ने के साथ बदलता है। इसी कारण इसे भोलेनाथ के अमर स्वरूप का प्रतीक माना जाता है।

 

02 जुलाई से पवित्र अमरनाथ यात्रा शुरू हो चुकी है, जिसमें 4500 से ज्यादा श्रद्धालुओं का पहला जत्था, बाबा बर्फानी के दर्शन के लिए रवाना हो चुका है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, बाबा बर्फानी के दर्शन करने से और यात्रा को पूरा करने से व्यक्ति के सभी कष्ट और दुःख मिट जाते हैं और भगवान शिव उन्हें सुख-समृद्धि का आशीर्वाद प्रदान करते हैं।

 

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भगवान शिव और अमर कथा

पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान शिव ने माता पार्वती को अमरत्व का रहस्य (अमर कथा) सुनाने के लिए एक एकांत और गुप्त स्थान की तलाश की, जहां कोई दूसरा जीव उनकी बात न सुन सके। इसी उद्देश्य से उन्होंने अमरनाथ की गुफा को चुना। इस यात्रा में शिव जी ने एक-एक करके अपने सभी गणों और आभूषणों को अलग-अलग स्थानों पर त्यागा:

  • सबसे पहले उन्होंने पिस्सू घाटी में कीड़ों का रूप त्यागा
  • इसके बाद शेषनाग झील पर अपने गले के आभूषण नाग को छोड़ा
  • अनंतनाग में तीसरा नेत्र बंद किया
  • पंचतरनी में पांच तत्वों का समर्पण किया
  • और अंत में अमरनाथ गुफा में प्रवेश किया।

यहां उन्होंने पार्वती को वह अमर कथा सुनाई, जो हर जीव को मृत्यु से मुक्त कर सकती है। ऐसा कहा जाता है कि कथा सुनते समय गुफा में दो कबूतर भी छिपे बैठे थे, जिन्होंने वह कथा सुन ली और अमर हो गए। आज भी कई श्रद्धालु दावा करते हैं कि उन्हें गुफा में कबूतरों का वही अमर जोड़ा दिखाई देता है।

 

गणेश जी का जन्म और पंचतरनी

एक अन्य मान्यता के अनुसार, इसी पवित्र स्थान पर माता पार्वती ने गणेश जी को जन्म दिया और पंचतरनी में उनका मुंडन संस्कार किया। पंचतरनी वह स्थान है जहां महादेव ने पांच तत्वों- पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश का त्याग किया था।

 

अमरनाथ गुफा के पास स्थित भैरव पर्वत के लिए यह मान्यता है कि यहां रुद्र रूप भैरवनाथ निवास करते हैं। मान्यता है कि शिवलिंग की रक्षा भैरवनाथ स्वयं करते हैं। अमरनाथ यात्रा तब तक अधूरी मानी जाती है, जब तक यात्री भैरव बाबा के दर्शन नहीं कर लेता।

कठिन यात्रा और आस्था की शक्ति

अमरनाथ यात्रा दो प्रमुख मार्गों से होती है – पहलगाम और बालटाल। यह दोनों मार्ग लगभग 14,500 फीट की ऊंचाई पर स्थित हैं, जहां पहुंचने के लिए श्रद्धालुओं को खतरनाक पहाड़ी रास्ते, बर्फीले मार्ग, ऑक्सीजन की कमी और कभी-कभी हिमस्खलन जैसी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। फिर भी हर साल लाखों श्रद्धालु अपने विश्वास और भक्ति के बल पर यह कठिन यात्रा पूरी करते हैं।

 

कुछ श्रद्धालु घोड़ों या पालकियों की मदद लेते हैं, तो कुछ हेलिकॉप्टर से यात्रा करते हैं लेकिन असली श्रद्धा उन्हीं में देखी जाती है जो कठिन चढ़ाई पैदल तय करते हैं। यह यात्रा केवल शारीरिक नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक तप बन जाती है।

 

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गुरु गोबिंद सिंह जी का आध्यात्मिक संबंध

सिख समुदाय में भी अमरनाथ का विशेष महत्व है। मान्यता है कि सिख धर्म के दसवें गुरु, गुरु गोबिंद सिंह जी ने भी इस पवित्र स्थान की यात्रा की थी। उन्होंने यहां ध्यान और साधना की थी। हालांकि इस विषय कई विद्वानों और इतिहासकारों में मतभेद है। सिख इतिहासकारों और विद्वानों का मानना है कि उनका ध्यान सिख समुदाय को संगठित करने और खालसा पंथ को मजबूत करने पर केंद्रित था। हालांकि, कुछ स्थानीय कथाएं और मान्यताएं इस संभावना की ओर इशारा करती हैं।

अमरनाथ यात्रा का महत्व

अमरनाथ की यात्रा केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं है, यह आत्मा को परमात्मा से जोड़ने का माध्यम बन जाती है। यह वह स्थान है जहां प्रकृति, भक्ति और शक्ति – तीनों का अद्भुत संगम होता है।

 

शिव का बर्फ से बना शिवलिंग हर वर्ष यह संकेत देता है कि भले ही शरीर नश्वर हो, आत्मा अमर है। इसी कारण इसे ‘अमरनाथ’ कहा जाता है – यानी अमरता का स्वामी।

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