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भगवान शिव के तांडव नृत्य का है अनोखा रहस्य, जानिए पौराणिक कथा

भगवान शिव के तांडव नृत्य के विषय में सभी लोग जानते हैं। लेकिन इसके पीछे छिपे कुछ ऐसे रहस्य हैं, जिन्हें जानकर आप सोच में पड़ जाएंगे।

AI Image of Bhagwan Shiv Tandav

भगवान शिव का तांडव नृत्य। (Pic Credit: AI)

सनातन धर्म में भगवान शिव की उपासना सृष्टि के संहारक के रूप में की जाती है। भगवान शिव से संबंधित कई चीजों का धार्मिक ग्रंथो में उल्लेख मिलता है, जिनमें से एक तांडव नृत्य भी है। बता दें कि भगवान शिव को ‘नटराज’ कहा जाता है, जो तांडव नृत्य का प्रतीक है। तांडव नृत्य को भगवान शिव की ऊर्जा, शक्ति और सृष्टि के निर्माण, पालन व संहार का प्रतीक माना जाता है। शास्त्रों में भगवान शिव द्वारा तांडव करने के कई कारण बताए गए हैं।

सती के त्याग पर किया रौद्र तांडव

शिव पुराण श्रीमद् भागवत पुराण इत्यादि धार्मिक ग्रंथो में भगवान शिव के तांडव नृत्य के विषय में विस्तार से बताया गया है एक कथा के अनुसार जब देवी सती ने अपने पिता दक्ष के यज्ञ में भगवान शिव के अपमान पर अपने प्राण त्याग दिए थे, तब भगवान शिव अत्यंत क्रोधित हो गए। देवी सती के जाने का वियोग शिव के लिए असहनीय था। 

 

अपनी पत्नी की मृत्यु से आहत होकर भगवान शिव ने रौद्र तांडव किया। यह नृत्य उनकी वेदना और क्रोध का प्रतीक था। इस दौरान उन्होंने सती के शरीर को कंधे पर उठाकर सृष्टि को भयभीत कर दिया। शिव के इस तांडव को देखकर देवताओं ने विष्णु जी से प्रार्थना की। तब विष्णु जी ने अपने चक्र से सती के शरीर को खंडित कर दिया, जिससे 51 शक्ति पीठों की स्थापना हुई।

त्रिपुरासुर वध के बाद आनंद तांडव

एक अन्य कथा के अनुसार, जब भगवान शिव ने तीन असुरों- त्रिपुरासुर का वध किया, तो देवताओं ने उनकी स्तुति की। इस पर भगवान शिव ने प्रसन्न होकर आनंद तांडव किया। यह नृत्य उनके विजय और सृष्टि के उत्थान का प्रतीक माना जाता है। भगवान शिव का तांडव नृत्य सृष्टि के तीन चरण सृजन, स्थिति और संहार को दर्शाता है। उनके इस नृत्य से यह शिक्षा मिलती है कि विनाश के बाद ही नई शुरुआत होती है। महादेव का तांडव न केवल क्रोध और शक्ति का प्रतीक है, बल्कि जीवन में संतुलन का भी संदेश देता है।

तांडव नृत्य की मुद्राएं

धमरिक मुद्रा जो सृष्टि के निर्माण को दर्शाती है। भगवान शिव अपने दाएं हाथ में डमरू धारण करते हैं, जो ‘ओम’ की ध्वनि निकालती है। यह ध्वनि सृष्टि के आरंभ और ब्रह्मांडीय ऊर्जा का संकेत देती है। इसके बाद है अभय मुद्रा जो महादेव के दाहिने हाथ में आशीर्वाद की मुद्रा है। यह भक्तों को भय से मुक्त होने और सुरक्षा का संदेश देती है। 

 

अग्नि मुद्रा भगवान शिव अपने बाएं हाथ में धारण करते हैं, जो विनाश और फिर नए सृजन का प्रतीक है। यह दर्शाता है कि विनाश के बिना नया निर्माण संभव नहीं है। गजचर्म धारण मुद्रा भगवान शिव ने धारण की है, जो बुराई और अज्ञान पर विजय का संकेत है। 

 

अंत में अपस्मार विनाश मुद्रा में भगवान शिव ने नटराज स्वरूप धारण कर अपस्मार नामक बौने राक्षस पर पैर रखे हुए हैं, जो अज्ञान और अहंकार का प्रतीक है। यह मुद्रा ज्ञान और भक्ति से अहंकार का नाश होता है, यह संदेश देती है।

भगवान शिव को प्रिय है शिव तांडव स्तोत्र

शिव तांडव स्तोत्र की रचना राक्षसों के राजा रावण ने की थी। कथा के अनुसार, रावण भगवान शिव का परम भक्त था। एक बार उसने अपनी शक्ति दिखाने के लिए कैलाश पर्वत को उठा लिया। भगवान शिव ने इस पर्वत अपने अंगूठे से दबा दिया, जिससे रावण दब गया और वह पीड़ा में चिल्लाने लगा। इस पीड़ा में भी उसने भगवान शिव की महिमा का गान करते हुए शिव तांडव स्तोत्र की रचना की। उसकी भक्ति और स्तुति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उसे वरदान दिया और उसे मुक्त कर दिया। इस स्तोत्र में शिव की शक्ति और सुंदरता का वर्णन विस्तार से किया गया है।

 

Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारियां सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं। Khabargaon इसकी पुष्टि नहीं करता।

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