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'रुद्राक्ष' कैसे बना धर्म, अध्यात्म और ऊर्जा का प्रतीक? जानिए कथा

हिंदू धर्म में रुद्राक्ष को अध्यात्म का प्रतीक माना जाता है। आइए जानते हैं, कैसे रुद्राक्ष के जन्म से जुड़ी पौराणिक कथा, प्रकार और इसका महत्व?

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रुद्राक्ष की माला। (Pic Credit- AI)

कई बार हम साधु-संतों और महात्माओं के गले या हाथों में रुद्राक्ष की माला देखते हैं। इन्हें देखकर कई लोगों के मन में यह प्रश्न उठता है कि आखिर ये रुद्राक्ष आता कहां से है और हिंदू धर्म में इसे महत्वपूर्ण क्यों माना जाता है? इस सवाल का जवाब शिव पुराण, श्रीमद देवी पुराण, गरुड़ पुराण, स्कन्द पुराण जैसे विभिन्न धर्मग्रंथों में विस्तार से बताया गया है। 

 

बता दें कि रुद्राक्ष वृक्ष पर उगने वाला एक पवित्र और आध्यात्मिक बीज है, जिसे भगवान शिव के प्रति आस्था का प्रतीक माना जाता है। हिंदू धर्म में इसे अत्यंत पवित्र माना गया है। संस्कृत शब्द ‘रुद्राक्ष’ दो शब्दों से बना है: ‘रुद्र’ यानी भगवान शिव और ‘अक्ष’ यानी आंख।

वास्तव में रुद्राक्ष कहां से आता है?

रुद्राक्ष का बीज Elaeocarpus ganitrus नामक वृक्ष से प्राप्त होता है, जो मुख्यत रूप से हिमालय, भारत, नेपाल, इंडोनेशिया (विशेष रूप से जावा और बाली), व थाईलैंड में पाया जाता है। इसका वृक्ष का मध्यम आकार होता है और इसके फल गोल और नीले रंग के होते हैं। इन फलों के भीतर कठोर बीज पाया जाता है, जिसे रुद्राक्ष कहते हैं।

रुद्राक्ष के जन्म की पौराणिक कथा

रुद्राक्ष के जन्म की कथा का वर्णन शिव पुराण में मिलता है। कथा के अनुसार, त्रिपुरासुर नामक तीन अत्याचारी राक्षसों ने देवताओं और मनुष्यों को अपने आतंक से परेशान कर दिया था। उनकी शक्ति इतनी अधिक थी कि उन्हें भगवान ब्रह्मा और भगवान विष्णु भी पराजित नहीं कर पा रहे थे।

 

इन दैत्यों से परेशान होकर सभी भगवान शिव के पास अपनी प्रार्थना लेकर पहुंचे। उस समय भगवान शिव लंबे समय घोर तप में लीन थे। देवताओं की आवाज सुनकर अपनी आंखें खोली। इस दौरान उनकी आंखों से अश्रु छलक कर पृथ्वी पर गिर गई। जहां भी यह बूंदों गिरी वहां रुद्राक्ष के वृक्ष उत्पन्न हुए। यही कारण है कि इन्हें भगवान शिव की ऊर्जा और शक्ति का भौतिक रूप माना जाता है।

 

एक अन्य कथा के अनुसार, जब देवी सती आत्मदाह किया था। तब भगवान शिव वियोग में उनके शरीर को हाथों में लेकर पृथ्वी का भ्रमण कर रहे थे। इसी दौरान उनके आंखों से गिरे आंसुओं से धरती पर रुद्राक्ष के पेड़ उत्पन्न हुए।

रुद्राक्ष कहां उगता है?

रुद्राक्ष के वृक्ष हिमालय की तलहटी, नेपाल, भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों (सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश), इंडोनेशिया, मलेशिया और थाईलैंड में पाए जाते हैं। भारत में खासतौर पर रुद्राक्ष के वृक्ष उत्तराखंड और कर्नाटक में भी मिलते हैं। नेपाल और इंडोनेशिया के रुद्राक्ष सबसे उच्च गुणवत्ता वाले माने जाते हैं।

रुद्राक्ष के धार्मिक महत्व और मान्यताएं

हिंदू धर्म में रुद्राक्ष को भगवान शिव का प्रत्यक्ष स्वरूप माना गया है। मान्यता यह है कि इसे धारण करने से भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है और सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। साथ ही रुद्राक्ष का उपयोग साधु-संत और भक्त जप माला के रूप में मंत्र जाप और ध्यान के लिए करते हैं। कहा जाता है कि जाप में रुद्राक्ष का प्रयोग करने से जप का पूर्ण फल प्राप्त होता है।

 

एक मान्यता यह भी है कि रुद्राक्ष धारण करने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और व्यक्ति को मोक्ष प्राप्त होता है। इससे सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है मानसिक व आत्मिक शांति प्रदान करता है और ध्यान में सहायक होता है। कुछ आयुर्वेद विद्वानों के अनुसार, रुद्राक्ष हृदय रोग, रक्तचाप और मानसिक तनाव को कम करने में सहायक होता है।

रुद्राक्ष के कितने प्रकार और उनका महत्व

रुद्राक्ष की पहचान उसके ‘मुख’ यानी बीज के प्राकृतिक खांचे से होती है। रुद्राक्ष के प्रकार की बात करें तो ये 1 मुखी से 21 मुखी तक में उपलब्ध हैं। हालांकि, 1 से 10 आसानी से उपलब्ध होते हैं और इनका संबंध अलग-अलग देवताओं से होता है, जिनके अपने विशेष लाभ हैं।

  1. एकमुखी रुद्राक्ष का संबध भगवान शिव से है और इसे धारण करने से मोक्ष प्राप्ति, आत्मज्ञान, और समस्त पापों का नाश होता है। यह रुद्राक्ष बहुत दुर्लभ होता है।
  2. द्विमुखी रुद्राक्ष के देवता अर्धनारीश्वर हैं, जो भगवान शिव और शक्ति का एक रूप है। इस रुद्राक्ष को धारण करने से वैवाहिक जीवन में सुख और शांति आती है।
  3. त्रिमुखी रुद्राक्ष का संबंध अग्नि देव हैं। इस रुद्राक्ष से पापों का नाश और ऊर्जा का संचार होता है।
  4. चतुर्मुखी रुद्राक्ष के देवता भगवान ब्रह्मा हैं और इससे ज्ञान, शिक्षा और रचनात्मकता में वृद्धि होती है।
  5. पंचमुखी रुद्राक्ष के देवता कालाग्नि रुद्र हैं और यह रुद्राक्ष सबसे अधिक पाए जाने वाला रुद्राक्ष है। इस रुद्राक्ष से शांति, स्वास्थ्य और आत्म-रक्षा मिलती है।
  6. षण्मुखी रुद्राक्ष के स्वामी भगवान शिव के पुत्र भगवान कार्तिकेय और इससे साहस और आत्मविश्वास की प्राप्ति होती है।
  7. सप्तमुखी रुद्राक्ष का संबंध देवी लक्ष्मी से हैं और इससे धन व समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
  8. अष्टमुखी रुद्राक्ष के देवता भगवान शिव के पुत्र भगवान गणेश हैं। इस रुद्राक्ष को धारण करने से सभी बाधाओं का नाश और कार्य में सफलता प्राप्त होती है।
  9. नवमुखी रुद्राक्ष की देवी मां दुर्गा हैं, और इस रुद्राक्ष से शक्ति और साहस का संचार होता है।
  10. दशमुखी रुद्राक्ष के देवता भगवान विष्णु और इससे व्यक्ति को सभी दिशाओं में सुरक्षा प्राप्त होती है।

Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारियां सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं. Khabargaon इसकी पुष्टि नहीं करता.

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