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चंडीगढ़ में हवाई हमले की वॉर्निंग, चंडीमाता मंदिर की चर्चा क्यों?

चंडीगढ़ के लिए वायुसेना ने हवाई हमले की चेतावनी दी है। यह शहर रणनीतिक तौर पर अहम क्यों है, यहां के चंडी माता मंदिर की चर्चा क्यों हो रही है, आइए जानते हैं।

Chandi Mata Mandir

चंडीमाता मंदिर। (Photo Credit: मनसा देवी श्राइन बोर्ड)

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पाकिस्तान भारतीय सैन्य हवाई अड्डों पर हमला करने की फिराक में है। वायुसेना ने सुरक्षा के मद्देनजर चंडीगढ़ में एयर सायरन बजाया है। चंडीगढ़ में वायुसेना अलर्ट मोड में है, कैंट इलाकों पर पाकिस्तानी हमले का खतरा मंडरा रहा है। ऐसी आशंका है कि पाकिस्तान इन इलाकों को निशाना बना सकता है। चंडीगढ़ शहर के कई हिस्सों में एयर वार्निंग की तेज आवाज सुनाई पड़ी है। सेना और स्थानीय प्रशासन ने जनता को अलर्ट किया है कि वे सुरक्षित रहें, संभले रहें। एक तरफ युद्ध की आशंका मंडरा रही है, दूसरी तरफ कुछ लोग हैं, जिन्हें भरोसा है कि चंडीगढ़ हमेशा की तरह सुरक्षित रहेगा क्योंकि यहां की 'चंडी देवी' सबकी रक्षा करेंगी।

चंडीगढ़ शहर का नाम भी, देवी चंडी के नाम पर पड़ा है। देवी चंडी, भगवती दुर्गा का ही एक रूप मानी जाती हैं। देवी भागवत महापुराण में लिखा है कि देवी चंडी ने दैत्यराज चंड-मुंड का संहार किया था, इसलिए उनका एक नाम चंडिका पड़ा। दुर्गासप्तशती के पांचवे अध्याय में चंड-मुंड संहार का जिक्र है। उन्हीं का वध करने की वजह से देवी का एक नाम 'चंडिका' भी पड़ गया। ऐसी मान्यता है कि देवी चंडिका ही इस शहर की हिफाजत करती हैं। उनका मंदिर के नाम पर चंडीगढ़ के आर्मी कैंट का नाम भी रखा गया है।

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चंडी माता मंदिर सेना के लिए भी बेहद अहम है। इस मंदिर के नाम पर ही चंडी मंदिर आर्मी स्टेशन का नाम रखा गया है। सैनिक देवी काली और चंडिका के उपासक होते हैं। यह मंदिर छावनी क्षेत्र में है, इसलिए यह मंदिर सैनिकों के लिए भी बेहद खास है। ऐसी धार्मिक मान्यता है कि यह मंदिर हजारों साल पुराना है और द्वापर काल से ही है। 

सेना के लिए खास क्यों है ये मंदिर?
चंडी मंदिर चंडी मंदिर छावनी में स्थित है। यह भारतीय सेना की पश्चिमी कमान का मुख्यालय है। यह छावनी शिवालिक पहाड़ियों की तलहटी में पंचकूला के पास है। 1960 के दशक के अंत में इसकी स्थापना हुई। 1985 में पश्चिमी कमान का मुख्यालय शिमला से चंडी मंदिर ट्रांसफर किया गया। मंदिर सैन्य क्षेत्र में है, ऐसे में सेना के जवानों के लिए यह मंदिर बेहद खास है।

चंडीगढ़ शहर के लिए क्यों खास है?
चंडी मंदिर के नाम पर ही चंडीमंदिर छावनी और चंडीगढ़ शहर का नाम पड़ा। मंदिर देवी चंडी को समर्पित है, जो शक्ति और युद्ध की देवी मानी जाती हैं। सेना के लिए, देवी चंडी साहस, शक्ति और विजय की प्रतीक हैं। सैनिक जंग की स्थिति में उनका नाम के नारे भी लगाते हैं। 

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महाभारत से कैसे जुड़ा है ये मंदिर? 

मंदिर का इतिहास 5000 साल पुराना माना जाता है। लोग देवी चंडी के मंदिर को महाभारत काल से जोड़ते हैं। ऐसी लोक मान्यता है कि पांडवों ने अपने वनवास के दौरान इस जगह पर रुककर चंडी माता की तपस्या की थी। देवी चंडी ने पांडवों को विजयी होने का वरदान दिया था। 

कौन सा संस्थान मंदिर का संचालन करता है?  
मंदिर का संचालन मनसा देवी श्राइन बोर्ड की ओर से किया जाता है। यह मंदिर चंडीगढ़ से करीब 15 किलोमीटर की दूरी पर है। मनसा देवी मंदिर से 10 किलोमीटर दूर है। 1950 के दशक में भारत के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद और पंजाब के पूर्व गवर्नर चंदेश्वर प्रसाद नारायण सिंह ने मंदिर का दौरा किया था। उन्होंने चंडीगढ़ शहर का नाम इसके नाम पर रखने का ऐलान किया था।

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रणनीतिक तौर पर कितना अहम है यह मंदिर?

चंडीमंदिर छावनी, 1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान निर्णायक फैसलों की गवाह बनी थी। यहां सेना की नई शाखा II कॉर्प्स की स्थापना हुई थी। इसे खड़ग कोर के नाम से भी जाना जाता है। देवी चंडी का हथियार भी खड़ग है। यह छावनी, सेना की रणनीतिक गतिविधों के केंद्र में है। यह जितना आध्यात्मिक रूप से अहम है, उतना ही रणनीतिक तौर पर भी।

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