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चितिरई महोत्सव: देवी मीनाक्षी और भगवान सुंदरेश्वर का विवाह उत्सव

मदुरै में स्थित मीनाक्षी अम्मन मंदिर में चितिरई महोत्सव धूमधाम से मनाया जाता है। आइए जानते हैं इस पर्व से जुड़ी कुछ खास बातें।

Image of Meenakshi Sundareswarar Temple

मीनाक्षी सुंदरेश्वर मंदिर(Photo Credit: Wikimedia Commons)

भारत में उत्तर से दक्षिण तक कई पर्व और त्योहार मनाए जाते हैं। जिनमें शोभायात्रा अथवा रथ यात्रा निकाली जाती है। ऐसा ही एक पर्व तमिलनाडु के मदुरै में स्थित मीनाक्षी अम्मन मंदिर में भी मनाया जाता है, जिसे चितिरई महोत्सव के नाम से जाना जाता है। बता दें कि मीनाक्षी अम्मन मंदिर देवी मीनाक्षी और भगवान सुंदरेश्वर (भगवान शिव) को समर्पित है। मीनाक्षी अम्मन को शक्ति की एक रूप माना जाता है, जो विशेष रूप से दक्षिण भारत में पूजनीय हैं।

 

माना जाता है कि मीनाक्षी अम्मन मंदिर लगभग 2500 साल पुराना है लेकिन वर्तमान भव्य रूप में इसे 12वीं से 17वीं शताब्दी के बीच पांड्य, नायक और अन्य दक्षिण भारतीय राजाओं ने विकसित किया। यह मंदिर अपने विस्तृत गोपुरम (मुख्य द्वार), नक्काशीदार स्तंभों, और रंग-बिरंगे चित्रों के लिए प्रसिद्ध है। इस मंदिर में देवी मीनाक्षी और भगवान सुंदरेश्वर की दिव्य शादी की कथा बहुत प्रसिद्ध है व इसी विवाह का उत्सव चितिरई पर्व के रूप में हर साल मनाया जाता है।

 

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चितिरई त्योहार क्या है?

 

चितिरई महोत्सव तमिल कैलेंडर के पहले महीने 'चितिरई' में मनाया जाता है, जो आमतौर पर अप्रैल-मई के दौरान आता है। यह मदुरै का सबसे बड़ा त्योहार होता है और लगभग 15 दिन तक चलता है।

 

इस त्योहार के दो प्रमुख भाग होते हैं:

  1. मीनाक्षी तिरुकल्याणम (मीनाक्षी का विवाह)
  2. भगवान कल्लाझगर की यात्रा

पहले भाग में देवी मीनाक्षी और भगवान सुंदरेश्वर (शिव) के विवाह का भव्य आयोजन होता है। यह विवाह प्रतीकात्मक रूप से इस ब्रह्मांड की ऊर्जा (शक्ति) और चेतना (शिव) के एकता को दर्शाता है।

भगवान कल्लाझागर कौन हैं?

भगवान कल्लाझगर भगवान विष्णु का एक स्थानीय रूप हैं, जिन्हें अलागर या कल्लाझागर के नाम से जाना जाता है। वे मदुरै के पास अलगर कोविल (अलागर मंदिर) में पूजे जाते हैं। पौराणिक कथा के अनुसार, देवी मीनाक्षी भगवान विष्णु की बहन थीं। जब देवी मीनाक्षी का विवाह भगवान सुंदरेश्वर से तय हुआ, तो उन्होंने अपने भाई विष्णु को विवाह में कन्यादान के लिए आमंत्रित किया। भगवान विष्णु ने अलगर पर्वत से मदुरै तक यात्रा शुरू की लेकिन उनकी यात्रा जंगल और नदियों से होकर गुजरती थी, जिससे वे विवाह स्थल तक समय पर नहीं पहुंच पाए।


जब भगवान कल्लाझगर विवाह स्थल पर पहुंचे तो विवाह सम्पन्न हो चुका था। इससे वे नाराज हुए और उन्होंने नदियों में स्नान कर क्रोध शांत किया। यह स्थल वैगई नदी है, जहाँ आज भी कल्लाझगर की प्रतीकात्मक यात्रा होती है। इस यात्रा को कल्लाझागर यात्रा कहा जाता है, जो चितिरई महोत्सव का दूसरा भाग होता है। यह हजारों श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है, जो भगवान कल्लाझगर को वैगई नदी में प्रवेश करते देखने आते हैं।

 

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कल्लाझगर यात्रा की प्रमुख विशेषताएं

  • भगवान कल्लाझगर को अलगर मंदिर से भव्य जुलूस में ले जाया जाता है।
  • वह घोड़े पर सवार होकर विभिन्न रूपों में भक्तों को दर्शन देते हैं।
  • सबसे पवित्र क्षण तब होता है जब भगवान वैगई नदी में प्रवेश करते हैं। इसे 'अलागर वायाई कट्टू' कहा जाता है।

मीनाक्षी और कल्लाझगर की पूजा का महत्व

यह पर्व भगवान शिव और भगवान विष्णु के भक्तों को एक साथ लाता है, जो दर्शाता है कि सभी देवी-देवता एक ही ब्रह्म के अलग-अलग रूप हैं। यह विवाह और भाई-बहन के रिश्ते का भी गहरा प्रतीक है। साथ ही यह त्योहार सामाजिक एकता, सांस्कृतिक गौरव और धार्मिक श्रद्धा के उत्सव के रूप में मनाया जाता है।

 

Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारी सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं।

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