हिंदू धर्म ग्रंथों में भगवान शिव की कथाओं को विस्तार से बताया गया है। शास्त्रों में भगवान शिव के त्रिपुरासुर के वध की कथा के उल्लेख को भी विस्तार से किया गया है। जब भगवान शिव ने त्रिपुरासुर का वध किया था, तब देवी-देवताओं ने दीपावली पर हर्षोल्लास के साथ मनाया था। शास्त्रों में त्रिपुरासुर के वध की कथा में यह भी बताया गया है क कैसे भगवान शिव ने तीन नगरों को एक ही बाण से नष्ट कर दिया था। आइए पढ़ते हैं पूरी कथा-
भगवान शिव और त्रिपुरासुर की कथा
कथा के अनुसार, जब भगवान कार्तिकेय ने दैत्य तारकासुर का वध किया था, तब उसके तीनों पुत्रों ने देवताओं से बदला लेने का प्रण लिया। अपने प्रण को पूरा करने के लिए तीनों ने हजारों वर्षों तक घोर तपस्या की। तीनों की तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी प्रकट हुए और वर मांगने के लिए कहा। तीनों ने ब्रह्मा जी से अमरत्व का वरदान मांगा, लेकिन इस वरदान को देने से ब्रह्मा जी ने मना कर दिया। उन्होंने कि तुम्हें एक ऐसी शर्त रखो, जिसे पूरा करना मुश्किल हो जाए और इस शर्त के पूरा होने पर तुम्हारी मृत्यु हो जाएगी।
तीनों भाइयों ने बहुत सोच-विचार कर शर्त रखी कि आप हमारे लिए तीन पुरियों(नगर) का निर्माण कर दें। जब अभिजीत नक्षत्र में ये तीनों पुरी एक पंक्ति में खड़े होंगे और जब अत्यंत शांत व्यक्ति असंभव रथ और बाण से मारना चाहे, तब हमारी मृत्यु हो। यह सुनकर ब्रह्मा जी ने तथास्तु कहा। इन्हीं तीनों भाइयों को त्रिपुरासुर के नाम से जाना जाता है। तीनों दैत्यों ने सभी लोकों में अपना आतंक फैलाना शुरू कर दिया। देवताओं को भी इन दैत्यों ने देवलोक से बाहर निकाल दिया। तब सभी देवता भगवान शिव के शरण में आए और उनसे मदद मांगी।
देवताओं के आग्रह पर भगवान शिव ने त्रिपुरासुर के वध का संकल्प लिया। सभी देवताओं ने अपना आधा बल भगवान को समर्पित कर दिया।
भगवान शिव पृथ्वी, सूर्य, चन्द्रमा और भगवान विष्णु के स्वरूप बने वृषभ से बने असंभव रथ पर सवार होकर, विष्णु मेरु पर्वत और वासुकि से बने असंभव धनुष के साथ त्रिपुरासुर को ललकारा और तीनों पुरों के एक पंक्ति में आने पर भगवान शिव ने पाशुपतास्त्र का प्रयोग किया और तीनों पुर को जलाकर भस्म कर दिया। त्रिपुरासुर के वध के बाद देवताओं ने स्वर्गलोक में अनन्य दीपों को प्रज्वलित किया था। तभी से प्रत्येक वर्ष कार्तिक शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि के दिन देव दीपावली पर्व मनाया जाता है।