बिहार के औरंगाबाद जिले में स्थित देव सूर्य मंदिर भारत के उन चुनिंदा प्राचीन मंदिरों में से एक है, जिनका सीधा संबंध पौराणिक कथाओं और धार्मिक आस्थाओं से जुड़ा हुआ है। लोगों में ऐसी मान्यता है कि यह मंदिर त्रेतायुग से जुड़ा हुआ है। हाल ही में कांग्रेस पार्टी के प्रमुख नेता राहुल गांधी और आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने 'वोटर अधिकार यात्रा' के दौरान इस मंदिर में दर्शन किया है। मंदिर के बाहर संस्कृत में लिखे श्लोक के अनुसार, राजा इला के पुत्र पुरुरवा ऐल ने 12 लाख 16 हजार वर्ष त्रेता युग के बीत जाने के बाद इस मंदिर का निर्माण शुरू करवाया था।
इस मंदिर पर लगे शिलालेख की मानें तो इस पौराणिक महत्ता वाले मंदिर का निर्माण काल 1 लाख 50 हजार 22 वर्ष पुराना है। वहीं भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ए.एस.आई.) ने पांचवीं से छठी सदी गुप्त काल को इस मंदिर का निर्माण काल बताया है। धार्मिक आस्था और ऐतिहासिक धरोहर के अद्भुत संगम वाला यह मंदिर आज भी श्रद्धालुओं के बीच विश्वास और आस्था का केंद्र बना हुआ है।

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मंदिर से जुड़ी पौराणिक मान्यताएं
मान्यता है कि लंका विजय के बाद भगवान श्रीराम ने यहां सूर्यदेव की पूजा की थी और उनके आशीर्वाद से सभी दोषों से मुक्ति पाई थी। वहीं एक कथा यह भी कहती है कि इस मंदिर का निर्माण पांडवों ने अपने अज्ञातवास के समय किया था। यही वजह है कि देव सूर्य मंदिर को धार्मिक दृष्टि से अत्यंत पवित्र और ऐतिहासिक महत्व वाला स्थल माना जाता है।
वहीं, मंदिर के बाहर लिखे श्लोक की मानें तो इस मंदिर का निर्माण राजा इला के पुत्र पुरुरवा ऐल ने 12 लाख 16 हजार वर्ष त्रेता युग के बीत जाने के बाद इस मंदिर का निर्माण शुरू करवाया था।
एक अन्य किंवदंती के अनुसार, मूही अल-दीन मोहम्मद जिसे आलमगीर या औरंगजेब के नाम से जाना जाता था। वह पूरे भारत में मंदिर तोड़ते हुए औरंगाबाद के देव पहुंचा। ऐसे में यहां के पुजारियों ने इस मंदिर को न तोड़ने की आरजू-विनती की लेकिन औरंगजेब यह कहते हुए वहां से चला गया कि अगर तुम्हारे भगवान में शक्ति है तो इसका दरवाजा पश्चिम को हो जाए। मान्यताओं के अनुसार, पुजारी रात्रि भर सूर्य भगवान से प्रार्थना करते रहे कि- हे भगवान औरंगजेब की बात सही साबित हो जाए। कहा जाता है कि अगली सुबह जब पुजारी मंदिर पहुंचे तो मुख्य द्वार पूर्व न होकर पश्चिमा मुखी हो चुका था, तब से देव सूर्य मंदिर का मुख्य द्वार पश्चिम की तरफ में ही है।

मंदिर से जुड़ी धार्मिक मान्यता
इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता है कि यहां सूर्यदेव की तीन भव्य प्रतिमाएं स्थापित हैं, जो पूर्व, पश्चिम और दक्षिण दिशा की ओर मुख किए हुए हैं। मंदिर की वास्तुकला नागर शैली की है और पत्थर से बनी सूर्य प्रतिमाओं में दिव्यता और कलात्मकता का अद्भुत संगम दिखाई देता है। खासकर छठ महापर्व के समय इस मंदिर का महत्व और भी बढ़ जाता है। लाखों श्रद्धालु यहां आकर डूबते और उगते सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते हैं। आस्था है कि यहां पूजा करने से आरोग्य की प्राप्ति होती है, संतान सुख मिलता है और जीवन में समृद्धि आती है।
देव सूर्य मंदिर के पास एक तालाब भी है, कहा जाता है कि इस मंदिर की मान्यता इसी तालाब से जुड़ी हुई है। इस तालाब को लोग सूर्यकुंड भी कहते हैं। इस तालाब का संबंध समुद्र से बताया गया है। शायद इसीलिए इस देव नगरी के करीब तीन किलोमीटर की दूरी तक कुएं और तालाब का पानी खारा है। मंदिर के साथ लगे इस तालाब के बारे में बताया जाता है कि उत्तर प्रदेश के प्रयागराज के निर्वासित राजा ऐल को यहां स्नान करने से कुष्ठ जैसे असाध्य रोग से मक्ति मिली थी। तालाब में ही तीन मूर्तियां मिलीं, जिन्हें राजा ने मंदिर बनवाकर उसमें त्रिदेव स्वरूप आदित्य भगवान को स्थापित कर दिया था।
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प्राचीन काल से इस मंदिर की परंपरा के अनुसार, प्रतिदिन सुबह चार बजे भगवान को जगा कर स्नान के बाद वस्त्र पहनाकर फूल-माला चढ़ाकर प्रसाद के भोग लगाए जाते हैं। उसके बाद ‘आदित्य हृदय स्तोत्र’ का पाठ भगवान को सुनाने की प्रथा है। लोगों का मानना है कि यह प्रथा आदिकाल से चली आ रही है।
मंदिर तक कैसे पहुंचें?
- देव सूर्य मंदिर, बिहार के औरंगाबाद जिले के देव नामक कस्बे में स्थित है।
- यहां पहुंचने के लिए निकटतम रेलवे स्टेशन औरंगाबाद रेलवे स्टेशन है, जो लगभग 10–12 किलोमीटर दूर है।
- पटना से सड़क मार्ग के जरिए लगभग 140 किलोमीटर की दूरी तय करके यहां पहुंचा जा सकता है।
- गया हवाई अड्डा (लगभग 120 किमी दूर) निकटतम एयरपोर्ट है, जहां से टैक्सी और बसों के जरिए आसानी से मंदिर पहुंचा जा सकता है।