logo

ट्रेंडिंग:

तीर्थयात्रा को टूरिज्म समझने की न करें गलती, ये है अंतर और इसके नियम

कई लोग तीर्थयात्रा और पर्यटन को एक ही समझ बैठते हैं। जबकि इनमें बहुत बड़ा अंतर है और इसके नियम हैं। जानते हैं, तीर्थयात्रा के प्रमुख नियम और प्रकार।

Image of Teerthyatra

सांकेतिक चित्र।(Photo Credit: AI Image)

भारत में कई प्रकार के आध्यात्मिक आयोजन होते हैं, जिनमें भक्त बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं। इन्हीं में से एक 'तीर्थयात्रा' है। जिनमें लोग अध्यात्म को करीब से महसूस करते हैं। कई लोगों को लगता है कि तीर्थयात्रा और आम पर्यटन दोनों एक ही हैं, ऐसा इसलिए भी हो सकता है क्योंकि दोनों शब्द यात्रा से संबंधित हैं। हालांकि, इनके उद्देश्य, नियम और महत्व में स्पष्ट अंतर होता है। आइए, विस्तार से जानते हैं कि तीर्थयात्रा और पर्यटन में क्या अंतर है और इनके कौन-कौन से नियम होते हैं।

तीर्थयात्रा और पर्यटन में मुख्य अंतर क्या है?

तीर्थयात्रा धार्मिक और आध्यात्मिक उद्देश्य से की जाने वाली यात्रा है, जिसमें व्यक्ति किसी आध्यात्मिक स्थान पर जाता है ताकि वह ईश्वर के प्रति श्रद्धा व्यक्त कर सके, अपने पापों का प्रायश्चित कर सके या अपनी मनोकामना को पूरा कर सके। हिंदू धर्म में चार धाम यात्रा (बद्रीनाथ, द्वारका, पुरी, रामेश्वरम), काशी, प्रयागराज, हरिद्वार, अमरनाथ यात्रा आदि प्रसिद्ध तीर्थ स्थल हैं। इसी तरह अन्य धर्मों में भी तीर्थयात्राओं का विशेष महत्व है जैसे मुस्लिम समुदाय के लिए मक्का-मदीना की हज यात्रा, ईसाइयों के लिए यरुशलम और बौद्ध धर्म में बोधगया की यात्रा शामिल है।

 

वहीं पर्यटन मनोरंजन, नई संस्कृति के अनुभव और नए जगहों को जानने के लिए की जाती है। इसमें लोग पहाड़ी क्षेत्रों में, समुद्र के किनारे या किसी प्रसिद्द शहर में नए अनुभव के लिए जाते हैं। इन सबमें गोवा, केरल, राजस्थान, शिमला, मनाली जैसे स्थान भारत में प्रसिद्ध पर्यटन स्थल हैं।

 

यह भी पढ़ें: रामायण से महाभारत तक, इनसे जानें कैसे इस्तेमाल होना चाहिए Tax?

तीर्थयात्रा के नियम

तीर्थयात्रा में नियम और अनुशासन का पालन करना जरूरी होता है। कुछ तीर्थयात्राएं कठिन और थका देने वाली होती हैं, जैसे अमरनाथ यात्रा या कावड़ यात्रा, जिसमें श्रद्धालु कठिनाइयों को सहकर यात्रा करते हैं। इसके साथ तीर्थयात्रा के दौरान धार्मिक अनुष्ठान, पूजा-पाठ, उपवास, और पवित्रता का पालन किया जाता है। अक्सर श्रद्धालु शुद्ध आहार ग्रहण करते हैं और संयमित जीवन शैली अपनाते हैं।

 

तीर्थयात्रा के नियमों में यह सबसे जरूरी है कि यात्रा के दौरान मानसिक और शारीरिक शुद्धता बनाए रखना अनिवार्य होता है। साथ ही इस दौरान पूजा, हवन, ध्यान और अन्य धार्मिक अनुष्ठानों का पालन किया जाता है। इसके साथ तीर्थयात्रा के दौरान सात्विक और शुद्ध आहार ही ग्रहण करने की परंपरा होती है। वहीं पर्यटन में ऐसी कोई पाबंदी नहीं है। कई जगहों पर देखा जाता है कि लोग पर्यटन स्थल पर मांस, शराब आदि का भी सेवन करते हैं।

 

बता दें कि कुछ तीर्थ यात्राएं ऐसी हैं जिनमें व्रत या उपवास रखना बहुत जरूरी होता है। ऐसा इसलिए क्योंकि इस जुड़ी यह मान्यता है कि उपवास का पालन करके तीर्थयात्रा करने से और फिर भगवान के दर्शन करने से व्यक्ति की सभी मनोकामना पूर्ण होती है और यात्रा का फल प्राप्त होता है। जबकि पर्यटन में ऐसी कोई पाबंदी नहीं है। कई पर्यटक सिर्फ खाने-पीने के लिए ही नई-नई जगहों पर यात्रा करते हैं।

 

इसके साथ तीर्थयात्रा में दूसरों की सेवा करना और विनम्रता बनाए रखना आवश्यक माना जाता है। कुछ तीर्थस्थलों में विशेष प्रकार के वस्त्र पहनने के भी नियम शामिल हैं, जैसे सबरीमाला मंदिर में धोती पहनना, साथ ही उज्जैन महाकालेश्वर मंदिर में भस्म आरती के समय पुरुषों के लिए धोती और महिलाओं के लिए साड़ी पहनना अनिवार्य होता है। इसके साथ तीर्थयात्रा के दौरान हिंसा से दूर रहना और सत्य का पालन करना आवश्यक होता है। वहीं पर्यटन में ऐसा कुछ भी नहीं है। लोग जैसा-चाहें वैसा कपड़ा पहन सकते हैं।

 

यह भी पढ़ें: अखाड़ों से कैसे बाहर निकाले जाते हैं महामंडलेश्वर, क्या है प्रक्रिया?

क्या कुंभ मेले को समझना चाहिए पर्यटन स्थल या तीर्थस्थल?

अध्यात्म का ज्ञान रखने वाले यह बताते हैं कि कुंभ मेला तीर्थस्थल के रूप में जाना जाता है, न कि एक सामान्य पर्यटन स्थल के रूप में। ऐसा इसलिए क्योंकि यह विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन है, जहां करोड़ों श्रद्धालु स्नान, पूजा और आध्यात्मिक साधना के लिए एकत्रित होते हैं। कुंभ के दौरान कई अखाड़ों के शिविर लगते हैं, जिनमें साधु-संत भी बड़ी संख्या में आते हैं और सनातन धर्म के विषय में लोगों को जानकारी देते हैं। ऐसे में यहां पर जो लोग आते हैं, उन्हें तीर्थयात्री कहा जाता है, न कि पर्यटक। इसलिए उन्हें तीर्थयात्रा से संबंधित नियमों का ही पालन करना चाहिए और इस पवित्र स्थान की मर्यादा को बनाए रखना चाहिए।

क्या मांस-मदिरा का सेवन करने वाला भी कर सकता है तीर्थयात्रा?

अध्यात्मिक विद्वान यह भी बताते हैं कि हिंदू धर्म में तीर्थयात्रा सभी लोगों के लिए है, चाहे वे किसी भी जीवनशैली का पालन करते हों। हालांकि, तीर्थयात्रा का उद्देश्य आत्मशुद्धि और भगवत प्राप्ति के लिए होता है, इसलिए यात्रियों को मांस-मदिरा से परहेज करना और सामान्य वस्त्र पहनना उचित माना जाता है। तीर्थस्थलों पर धार्मिक वातावरण और दूसरों की भावनाओं का सम्मान करना आवश्यक है। यह नियम न सिर्फ स्थान की पवित्रता बनाए रखने के लिए हैं, बल्कि व्यक्ति को भी आंतरिक शांति और भक्ति का अनुभव कराते हैं। तीर्थयात्रा के दौरान संयम और श्रद्धा का पालन करना सर्वोत्तम माना जाता है।

 

Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारी सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं। Khabargaon इसकी पुष्टि नहीं करता।

शेयर करें

संबंधित खबरें

Reporter

और पढ़ें

design

हमारे बारे में

श्रेणियाँ

Copyright ©️ TIF MULTIMEDIA PRIVATE LIMITED | All Rights Reserved | Developed By TIF Technologies

CONTACT US | PRIVACY POLICY | TERMS OF USE | Sitemap