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शैव और वैष्णव क्यों अलग-अलग दिन रखते हैं एकादशी व्रत? जानें कारण

कई बार शैव और वैष्णव संप्रदाय में एकादशी व्रत को अलग-अलग दिन रखा जाता है। जानते हैं क्या है कारण और मान्यताएं।

Image of Bhagwan Vishnu

भगवान विष्णु(Photo Credit: AI Image)

हिंदू धर्म में भगवान विष्णु को समर्पित एकादशी व्रत का विशेष महत्व है। यह व्रत प्रत्येक मास में दो बार रखा जाता है, एक शुक्ल पक्ष की एकादशी पर और दूसरा कृष्ण पक्ष की एकादशी के दिन। शास्त्रों में बताया गया है कि एकादशी व्रत का पालन करने से भगवान विष्णु की भक्ति के लिए किया जाता है।

 

हालांकि, कई बार लोगों के मन में यह सवाल उठता है कि शैव और वैष्णव सम्प्रदाय एक ही व्रत को अलग-अलग दिनों में क्यों रखते हैं? आइए इस विषय को सरल और स्पष्ट भाषा में समझते हैं।

एकादशी व्रत अलग-अलग दिन क्यों?

हिंदू पंचांग में तिथि का निर्धारण चंद्रमा की गति पर होता है। कभी-कभी एकादशी तिथि दो दिन तक पड़ती है- जिसे 'स्मार्त' और 'वैष्णव' एकादशी कहा जाता है। स्मार्त का मतलब है सामान्य गृहस्थ व्यक्ति, जबकि वैष्णव एकादशी विशेष रूप से विष्णु भक्तों के लिए होती है। बता दें कि स्मार्त संप्रदाय में एकादशी व्रत पूजा अभिजीत मुहूर्त में की जाती है और वैष्णव संप्रदाय में सूर्योदय के आधार पर व्रत की तिथि निर्धारित होती है।

 

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वैदिक पंचांग में कई बार एकादशी तिथि दो दिन में पड़ता, जिस वजह से दोनों संप्रदाय में एकादशी व्रत दो दिन रखे जाते हैं। शैव सम्प्रदाय या वे लोग जो भगवान शिव के भक्त हैं, वे 'स्मार्त' नियमों का पालन करते हैं और पहले दिन एकादशी व्रत रखते हैं। दूसरी ओर, वैष्णव सम्प्रदाय के लोग 'वैष्णव' नियमों का पालन करते हैं और एकादशी व्रत का पालन उस दिन करते हैं जब सूर्योदय के समय एकादशी तिथि हो।

व्रत के दिन में अंतर क्यों?

जब एकादशी तिथि दो दिन तक रहती है, तब वैष्णव सम्प्रदाय उस दिन व्रत रखते हैं जब सूर्योदय के समय एकादशी होती है और द्वादशी सूर्योदय के बाद हो, ताकि व्रत के अगले दिन पारण (व्रत समाप्त करना) समय से किया जा सके। यह नियम बहुत कठोरता से पालन किया जाता है। शैव सम्प्रदाय के लोग तिथि के आरंभ को देखकर व्रत रखते हैं, इस कारण उनका व्रत एक दिन पहले पड़ सकता है।

 

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एकादशी व्रत का महत्व

एकादशी व्रत को पापों से मुक्ति, मन की शुद्धता और मोक्ष प्राप्ति के लिए किया जाता है। मान्यता है कि इस दिन व्रत करने से पाप नष्ट हो जाते हैं और व्यक्ति को पुण्य की प्राप्ति होती है। भगवान विष्णु के भक्त इस दिन उपवास करते हैं, भजन-कीर्तन करते हैं और रात्रि जागरण करते हैं।

 

Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारी सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं।

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