भगीरथ की तपस्या का फल है गंगासागर मेला, जानिए तिथि और महत्व
पश्चिम बंगाल के गंगासागर द्वीप पर मकर संक्रांति के दिन दूसरे सबसे बड़े आयोजन गंगासागर मेला आयोजित होता है। आइए जानते हैं, इस मेले का महत्व।

सांकेतिक चित्र। (Photo Credit: PTI File Photo)
देशभर में अलग-अलग प्रकार के धार्मिक आयोजन होते हैं, जिनका एक अपना पौराणिक और ऐतिहासिक महत्व है। इन सब में पवित्र स्नान का मेला यानी कुंभ मेले को सबसे बड़ा आयोजन कहा जाता है। हालांकि, कुंभ जैसा ही एक मेला हर साल मकर संक्रांति के अवसर पर बंगाल में मनाया जाता है, जिसे गंगासागर मेला के नाम से जाना जाता है। यह मेला भारत का दूसरा सबसे बड़ा मेला माना जाता है और पश्चिम बंगाल के गंगासागर द्वीप पर आयोजित होता है। यह मेला धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व का संगम है। आइए जानते हैं इस साल कब होगा गंगासागर मेला का आयोजन और इसका महत्व।
गंगासागर मेला 2025 तिथि
वैदिक पंचांग के अनुसार, वर्ष 2025 में मकर संक्रांति पर्व 14 जनवरी के दिन मनाया जाएगा। वहीं गंगासागर मेला संक्रांति से कुछ दिन पहले शुरू हो जाता है। इस साल गंगासागर मेला 10 जनवरी 2025 से 18 जनवरी 2025 तक चलेगा। मुख्य स्नान का दिन मकर संक्रांति के दिन होगा। वर्ष 2025 के गंगासागर मेले का महत्व इसलिए भी अधिक है क्योंकि मकर संक्रांति के दिन ही प्रयागराज में होने जा रहे महाकुंभ मेले का पहला शाही स्नान किया जाएगा। जिसमें लाखों की संख्या में श्रद्धालु, पवित्र संगम नदी में स्नान करते हैं।
गंगासागर मेला से जुड़ी रोचक बातें
गंगा और सागर का संगम
हिन्दू धर्म में पवित्र नदियों के संगम में स्नान का अपना एक विशेष महत्व है। गंगासागर मेले का आयोजन गंगा नदी और बंगाल की खाड़ी के संगम पर होता है। इसे ‘सागर संगम’ भी कहा जाता है। हिंदू धर्म शास्त्रों में जिस तरह गंगा को देवी की उपाधि प्राप्त है, उसी सागर को समुद्र देव के रूप में पूजा जाता है।
मकर संक्रांति का महत्व
शास्त्रों में मकर संक्रांति की तिथि को पूजा-पाठ और स्नान-ध्यान के लिए सबसे उत्तम माना जाता है। यह मेला हर साल मकर संक्रांति के अवसर पर आयोजित किया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस विशेष दिन पवित्र स्नान करने से व्यक्ति की सभी मनोकामना पूर्ण होती है और उनके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।
सबसे बड़ा तीर्थ मेला
कुंभ मेले के बाद, गंगासागर मेला भारत का दूसरा सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन है। इस मेले की एक खासियत यह भी है कि गंगासागर मेले में शामिल होने के लिए श्रद्धालु नाव पर सवार होकर गंगासागर द्वीप पर आते हैं और इसमें भाग लेते हैं।
स्नान और पूजा का महत्व
मान्यता है कि गंगासागर में स्नान करने और कपिल मुनि के मंदिर में पूजा करने से सभी पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। साथ ही गंगासागर मेले के दौरान सूर्य देव और देवी गंगा की उपासना का भी विशेष महत्व है। मान्यता है कि इस पूजा का फल और अधिक बढ़ जाता है।
कपिल मुनि का मंदिर
गंगासागर में कपिल मुनि का मंदिर स्थित है, जो मुख्य आकर्षण का केंद्र होता है। यह मंदिर धार्मिक और ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण है। मान्यता है कि इसी स्थान पर कपिल मुनि ने कठोर तपस्या की थी। ऐतिहासिक दृष्टि से देखें तो इस मंदिर का निर्माण रानी सत्यभामा द्वारा सन 430 ई. में कराया गया था।
गंगा आरती
गंगा में स्नान के साथ-साथ गंगा आरती करने और उसमें शामिल होने का भी अपना एक विशेष महत्व है। गंगासागर मेला में गंगा आरती आकर्षण का केंद्र होती है और मान्यता है कि इसका हिस्सा बनने से व्यक्ति की सभी मनोकामना पूर्ण हो जाती है।
धार्मिक और सांस्कृतिक मेलजोल
गंगासागर मेला धर्म और संस्कृति का अनूठा संगम है, जहां बड़ी संख्या में साधु-संत एकत्रित होते हैं और भजन-कीर्तन, योग व सत्संग करते हैं। साथ ही यह मेला न केवल भारत बल्कि नेपाल, बांग्लादेश और अन्य देशों के तीर्थयात्रियों को भी आकर्षित करता है।
समुद्र के किनारे रात्रि प्रवास
गंगासागर मेले के दौरान तीर्थयात्री खुले आकाश के नीचे समुद्र के किनारे रात्रि प्रवास करते हैं, जो इस मेले का एक अनोखा अनुभव होता है है। गंगासागर मेला धार्मिक आयोजन के साथ-साथ पर्यटन का भी एक प्रमुख केंद्र है। वर्ष 2024 में 1 करोड़ से ज्यादा तीर्थयात्री शामिल हुए थे, जो साल दर साल बढ़ती जा रही है।
गंगासागर मेला की पौराणिक कथा
गंगासागर मेले की कथा महाभारत और अन्य पुराणों में भी उल्लेखित है। पौराणिक कथा के अनुसार, इक्ष्वाकु वंश के प्रतापी राजा सगर ने अश्वमेध यज्ञ का आयोजन किया था। उनके यज्ञ का घोड़ा देवराज इंद्र ने चुरा लिया और उसे पाताल लोक में ले जाकर कपिल मुनि के आश्रम के पास बांध दिया।
इसके बाद राजा सगर ने अपने 60,000 पुत्रों को घोड़े की खोज के लिए भेजा। वह खोजते-खोजते वे कपिल मुनि के आश्रम पहुंच गए और उन्हें भ्रम हुआ कि कपिल मुनि ने घोड़ा चुराया है। इससे क्रोधित होकर कपिल मुनि ने राजा सगर के सभी पुत्रों को भस्म कर दिया।
बाद में राजा सगर के वंशज भगीरथ ने तपस्या कर गंगा को पृथ्वी पर अवतरित किया, ताकि उनके पूर्वजों की आत्मा को मुक्ति मिल सके। तब देवी गंगा धरती पर आईं और महादेव की जटाओं में स्थान ग्रहण किया। कथा के अनुसार, जब गंगा सागर में जाकर मिली, तब सगर के पुत्रों की आत्मा को मोक्ष प्राप्त हुआ और तभी गंगा स्नान का महत्व बढ़ गया। इसी घटना को स्मरण करते हुए और देवी गंगा व कपिल मुनि के प्रति सम्मान प्रस्तुत करने के लिए गंगासागर मेले का आयोजन होता है।
गंगासागर मेला में कैसे पहुंचें?
गंगासागर द्वीप, जिसे सागर द्वीप भी कहा जाता है, पश्चिम बंगाल के दक्षिण 24 परगना जिले में स्थित है। यदि आप हवाई मार्ग से यात्रा करना चाहते हैं, तो कोलकाता का नेताजी सुभाष चंद्र बोस अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा निकटतम हवाई अड्डा है। हवाई अड्डे से पहले कोलकाता के हावड़ा या एस्प्लेनेड तक टैक्सी या बस द्वारा जा सकते हैं और वहां से गंगासागर के लिए अन्य विकल्प चुन सकते हैं।
सड़क मार्ग की बात करें तो कोलकाता से लगभग 90-100 किलोमीटर की दूरी पर हारवुड पॉइंट स्थित है। यहां आप एस्प्लेनेड बस टर्मिनल से सरकारी बस या निजी वाहन द्वारा पहुंच सकते हैं। हारवुड पॉइंट (लॉट नंबर 8) से गंगासागर पहुंचने के लिए आपको फेरी सेवा लेनी होगी। फेरी की सुविधा कुचुबेरिया तक उपलब्ध है। कुचुबेरिया पहुंचने के बाद, आप गंगासागर मेले के मुख्य स्थान तक जाने के लिए बस या ऑटो का उपयोग कर सकते हैं।
Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारी सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं। Khabargaon इसकी पुष्टि नहीं करता।
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