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हरियाली तीज पर करें इन नियमों का पालन और जानें परंपराएं

हिंदू धर्म में हरियाली तीज का खास महत्व है। आइए जानते हैं इसके नियम और परंपरा क्या हैं?

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प्रतीकात्मक तस्वीर| Photo Credit: AI

हरियाली तीज भारत के प्रमुख त्योहारों में से एक है, जिसे खास तौर पर महिलाएं बड़े उत्साह और श्रद्धा से मनाती हैं। यह त्योहार मुख्य रूप से सावन के महीने में आता है, जब चारों ओर हरियाली फैल जाती है और प्रकृति अपनी पूरी सुंदरता में नजर आती है। इस साल हरियाली तीज श्रावण शुक्लपक्ष की तृतीया तिथि 27 जुलाई 2025 को मनाई जाएगी। यह पर्व प्रेम, समर्पण और विवाह की सुख-शांति का प्रतीक माना जाता है। हरियाली तीज का सीधा संबंध माता पार्वती और भगवान शिव के विवाह से माना जाता है।

 

पुराणों के मुताबिक, माता पार्वती ने कई वर्षों तक कठोर तपस्या की थी, जिससे वह भगवान शिव को अपने पति के रूप में प्राप्त कर सकें। अंत में उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें पत्नी के रूप में स्वीकार किया। उसी दिन को हरियाली तीज के रूप में मनाया जाता है। यह पर्व विशेष रूप से विवाहित महिलाओं के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है। वे अपने पति की लंबी उम्र, अच्छे स्वास्थ्य और सुखमय जीवन की कामना के लिए इस दिन व्रत रखती हैं। वहीं, कुंवारी लड़कियां भी यह व्रत अच्छे वर (पति) की प्राप्ति के लिए करती हैं।

 

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हरियाली तीज मनाने के नियम?

इस दिन महिलाएं पारंपरिक श्रृ्ंगार करती हैं। इस त्योहार के दिन विशेष रूप से हरे रंग की साड़ी, चूड़ियां, बिंदी और मेहंदी लगाई जाती है। इस त्योहार के दिन महिलाओं के सजने-संवरने का विशेष महत्व होता है। इस दिन महिलाएं झूला झूलती हैं, लोक गीत गाती हैं और पारंपरिक नृत्य भी करती हैं।

 

हरियाली तीज का व्रत बेहद कठिन माना जाता है क्योंकि इसमें महिलाएं बिना पानी पिए पूरे दिन व्रत रखती हैं। यह निर्जला व्रत होता है। इस व्रत में महिलाएं दिन भर उपवास रखती हैं और शाम को पूजा के बाद कथा सुनती हैं। पूजा में शिव-पार्वती की मूर्तियों को सजाया जाता है और उन्हें विशेष रूप से बेलपत्र, धतूरा, फूल और मिठाई चढ़ाई जाती है। कुछ लोग रात में कथा सुनने के बाद व्रत खोल देते हैं। वहीं, कुछ महिलाएं त्योहार के अगले दिन सुबह पारण करती हैं।

 

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हरियाली तीज के नियम और परंपराएं

  • सावधानी से व्रत रखें – हरियाली तीज का व्रत बहुत कठिन होता है। इसे श्रद्धा और विश्वास के साथ रखा जाता है। इस व्रत के दौरान पानी नहीं पिया जाता।
  • श्रृंगार का विशेष महत्व – इस दिन महिलाएं विशेष रूप से तैयार (श्रृंगार) होती हैं। इसमें हरे रंग की साड़ी, हरी चूड़ियां, मेहंदी, बिंदी और सिंदूर शामिल होते हैं।
  • पूजा विधि – शिव और पार्वती की विधिवत पूजा की जाती है। धूप, दीप, फूल, फल और मिठाइयों से आरती की जाती है। कथा सुनना अनिवार्य माना जाता है।
  • मेहंदी लगाना – इस दिन महिलाएं एक-दूसरे को मेहंदी लगाती हैं, जिसे शुभ और सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है।
  • झूला झूलना – गांवों और छोटे कस्बों में महिलाएं पेड़ों की डाल पर झूला डालकर झूलती हैं और पारंपरिक गीत गाती हैं। यह एक प्रकार का सामाजिक मिलन भी होता है।

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