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कान्हा की शरारत से शुरू हुई ब्रज की होली, आज भी जीवंत है परंपरा

हिंदू धर्म में भगवान श्री कृष्ण और राधा रानी की कथा का विशेष महत्व है। आइए पढ़ते हैं ये रोचक कथा और उनका महत्व।

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सांकेतिक चित्र।(Photo Credit: Freepik)

हिन्दू धर्म में होली पर्व को प्रेम, रंग और उल्लास का त्योहार कहा है। धर्म शास्त्रों में होली से जुड़ी कई कथाएं प्रचलित हैं, जिनका अपना एक विशेष महत्व है। इन्हीं में से एक कथा भगवान श्री कृष्ण और राधा रानी से भी जुड़ती है। बता दें कि ब्रज की होली पूरे देश में प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि इस पर्व का आरंभ स्वयं श्रीकृष्ण और राधा रानी की मधुर लीलाओं से हुआ था।

श्री कृष्ण और राधा रानी से जुड़ी होली की कथा

कथा के अनुसार, श्रीकृष्ण का रंग सांवला था, जबकि राधा और गोपियां अत्यंत गोरी थीं। बालपन में कृष्ण अक्सर अपनी मां यशोदा से पूछते, 'मइया, राधा इतनी गोरी क्यों हैं और मैं इतना काला क्यों हूँ?' इस पर मां यशोदा प्रेम से कहतीं, 'बेटा, अगर तुम्हें राधा का रंग पसंद है, तो तुम उनके ऊपर अपने मनचाहे रंग डाल सकते हो।'

 

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यह सुनकर नटखट कान्हा बहुत प्रसन्न हुए और वे अपने मित्रों के साथ नंदगांव से बरसाना पहुंचे। वहां उन्होंने राधा और उनकी सखियों पर रंग डालना शुरू कर दिया। पहले तो राधा नाराज हो गईं लेकिन फिर कृष्ण की इस प्रेमभरी शरारत को देखकर वे और उनकी सखियां हंसने लगीं। सभी ने मिलकर एक-दूसरे को रंगों से सराबोर कर दिया। इस तरह, ब्रज में होली का शुभारंभ हुआ, जिसे आज भी 'बरसाना की होली' के रूप में मनाया जाता है।

बरसाने की लट्ठमार होली

बरसाना में होली का यह अनोखा रूप देखने लायक होता है। यहां राधा की सखियां (गोपियां) लकड़ियां लेकर कृष्ण और उनके सखाओं को दौड़ाती हैं, और वे बचते हुए रंग खेलते हैं। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है और हर साल हजारों लोग इसे देखने आते हैं।

 

कहते हैं कि जब राधा और कृष्ण ने पहली बार होली खेली, तो उस दिन ब्रजमंडल के हर कोने में हर्षोल्लास छा गया। रंगों की बौछार से सारा वातावरण रंगीन हो गया। वृंदावन, गोकुल और नंदगांव में सभी ने मिलकर इस रंगोत्सव को मनाया। तब से यह परंपरा चली आ रही है और हर साल होली पर श्रीकृष्ण और राधारानी की इस लीला को फिर एक बार जीवंत करने वृंदावन और बरसाना में एकत्रित होते हैं।

 

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इसके साथ होली से जुड़ी भगवान विष्णु के भक्त प्रह्लाद और होलिका से भी जुड़ती है। कहा जाता है कि जब होलिका भक्त प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठी तब भगवान विष्णु के कृपा से प्रह्लाद को कुछ नहीं हुआ और होलिका जलकर भस्म हो गई। इसके बाद नगर वासियों ने होली का त्योहार मनाया था। इसलिए रंग वाली होली से ठीक एक दिन पहले होलिका दहन किया जाता है और अगले रंग वाली होली खेली जाती है।

 

Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारी सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं।

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