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कैसे बना दतिया का सोनगिरी प्रमुख जैन तीर्थस्थल? यहां जानिए इतिहास

मध्य प्रदेश में स्थित सोनगिरी जैन धर्म के प्रमुख तीर्थस्थलों में से एक माना जाता है। इस स्थान पर सैकड़ों जैन मंदिर बनाए गए हैं।

Songiri Jain Mandir

सोनगिरी में जैन मंदिर: Photo Credit: Social Media

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मध्यप्रदेश के दतिया जिले में स्थित सोनगिरी एक बार फिर चर्चा में है, जहां जैन धर्म से जुड़ी इसकी ऐतिहासिक और आध्यात्मिक विरासत श्रद्धालुओं और शोधकर्ताओं का ध्यान अपनी ओर खींच रही है। सैकड़ों प्राचीन जैन मंदिरों और मोक्ष से जुड़ी मान्यताओं की वजह से पहचाने जाने वाला यह स्थान जैन धर्म का प्रमुख तीर्थ स्थल माना जाता है। धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने और सांस्कृतिक धरोहर के संरक्षण को लेकर सोनगिरी का महत्व हमेशा उभरकर सामने आया है। 

 

जैन समाज के लिए यह स्थल केवल आस्था का केंद्र नहीं, बल्कि तप, साधना और आत्मिक शांति का प्रतीक माना जाता है, जहां सदियों पुरानी परंपराएं आज भी जीवंत रूप में देखने को मिलती हैं।

 

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सोनगिरी कैसे प्रमुख जैन तीर्थस्थल बना

सोनगिरी का प्राचीन नाम स्वर्णगिरि माना जाता है। समय के साथ यही नाम अपभ्रंश होकर सोनगिरी बन गया। यह क्षेत्र प्राचीन काल से ही जैन साधना, तप और मोक्ष मार्ग से जुड़ा रहा है। माना जाता है कि यहां कई जैन मुनियों और साधकों ने कठोर तपस्या की और मोक्ष प्राप्त किया, जिसकी वजह से यह स्थान धीरे-धीरे एक बड़े जैन तीर्थ के रूप में प्रतिष्ठित हो गया।

 

मान्यता के अनुसार, 10वीं से 15वीं शताब्दी के बीच इस क्षेत्र में जैन धर्म का व्यापक प्रसार हुआ। स्थानीय शासकों और जैन श्रावकों के सहयोग से पहाड़ियों पर मंदिरों का निर्माण हुआ, जिससे सोनगिरी एक संगठित जैन तीर्थ के रूप में उभरा।

 

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सोनगिरी का ऐतिहासिक महत्व

इतिहासकारों और जैन ग्रंथों के अनुसार, सोनगिरी का संबंध प्राचीन चंद्रवंशी और परमार शासकों से रहा है, जिन्होंने जैन धर्म को संरक्षण दिया। यहां पाए जाने वाले कई मंदिर मध्यकालीन स्थापत्य कला के उत्कृष्ट उदाहरण हैं।

 

कुछ मंदिरों के शिलालेखों से यह संकेत मिलता है कि सोनगिरी में मंदिर निर्माण का कार्य कई शताब्दियों तक चलता रहा। यही वजह है कि यहां अलग-अलग कालखंडों की स्थापत्य शैली देखने को मिलती है।

सोनगिरी की विशेषताएं

सोनगिरी की सबसे बड़ी विशेषता है यहां स्थित 100 से ज्याद जैन मंदिर, जो एक पहाड़ी और उसके आसपास फैले हुए हैं। इन मंदिरों में मुख्य रूप से भगवान चंद्रप्रभु ( जैन धर्म के आठवें तीर्थंकर) और अन्य तीर्थंकरों की प्रतिमाएं विराजमान हैं।

अन्य प्रमुख विशेषताएं:

  • मंदिर सफेद पत्थरों से बने हुए हैं, जिससे पूरा क्षेत्र दूर से ही चमकता हुआ दिखाई देता है
  • शांत, हरियाली से भरा वातावरण जो ध्यान और साधना के लिए बहुत उपयुक्त है
  • पहाड़ी पर बने मंदिरों तक पहुंचने के लिए सीढ़ियां, जो आध्यात्मिक यात्रा का अनुभव कराती हैं
  • दिगंबर जैन परंपरा के अनुसार, मंदिरों की संरचना और पूजा विधि

सोनगिरी से जुड़ी धार्मिक मान्यताएं

जैन धर्म में मान्यता है कि सोनगिरी वह भूमि है जहां असंख्य जीवों ने मोक्ष प्राप्त किया। ऐसी धारणा है कि इस क्षेत्र में तपस्या करने से कर्मों का क्षय शीघ्र होता है, आत्मा शुद्ध होती है और मोक्ष मार्ग में प्रगति मिलती है। यही वजह है कि आज भी देश-विदेश से जैन श्रद्धालु यहां दर्शन, तप और साधना के लिए आते हैं। विशेष रूप से क्षमा दिवस, पर्युषण पर्व और मोक्ष सप्तमी के समय यहां भारी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं।

आध्यात्मिक महत्व

सोनगिरी को केवल एक दर्शनीय स्थल नहीं, बल्कि आत्मिक जागरण की भूमि माना जाता है। यहां का शांत वातावरण, मंदिरों की श्रृंखला और सदियों पुरानी साधना परंपरा श्रद्धालुओं को आत्मचिंतन और वैराग्य की ओर प्रेरित करती है।


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