पितृपक्ष का समय हिंदू धर्म में बहुत पवित्र और महत्वपूर्ण माना जाता है। यह वह अवधि है जब लोग अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध जैसे कर्मकांड करते हैं। कई बार परिवारजन अपने पूर्वजों की सटीक मृत्यु-तिथि भूल जाते हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या बिना तिथि जाने तर्पण संभव है? शास्त्रों में स्पष्ट उल्लेख है कि अगर किसी पूर्वज की पुण्यतिथि याद न हो, तो भी पूरे पितृपक्ष के दौरान किसी भी दिन श्रद्धा से तर्पण किया जा सकता है।
विशेष रूप से सर्वपितृ अमावस्या का दिन उन सभी पूर्वजों के लिए समर्पित माना जाता है, जिनकी तिथि परिवारजन को भूल गई हो। इस दिन एक ही तर्पण सभी पितरों को तृप्त कर देता है। इसकी प्रक्रिया भी सरल है। पंडितों का मानना है कि पितृपक्ष में कर्मकांड का सार बाहरी दिखावा नहीं बल्कि श्रद्धा है। मृत्यु-तिथि भूल जाने पर भी अगर परिवारजन भाव से तर्पण करते हैं तो पितर प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते हैं। यही वजह है कि शास्त्र कहते हैं, 'श्रद्धया कृतं सर्वं पितृपूजनं फलप्रदं।'
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पूर्वजों की तिथि ना याद हो, तो क्या करें
सर्वपितृ अमावस्या की तिथि (दिन) पर तर्पण करें
अगर विशेष तिथि याद न हो, तो सर्वपितृ अमावस्या के दिन तर्पण करना श्रेष्ठ माना जाता है। शास्त्रों में कहा गया है कि इस दिन करने वाला तर्पण उन सभी पूर्वजों की आत्मा को शांति देता है।
पितृपक्ष के किसी भी शुभ तिथि पर तर्पण किया जा सकता है
पितृपक्ष की अवधि में जो तिथि हो, उसी दिन श्रद्धा से तर्पण करना ज्यादा महत्वपूर्ण है। विशेष तिथि न मालूम हो, तो विशेष तिथि की बजाय पितृपक्ष की किसी भी तिथि को तर्पण करना ठीक माना जाता है।
नाम-गोत्र का स्मरण करके तर्पण करें
पूर्वजों का नाम या गोत्र याद हो तो तर्पण करते समय उनका नाम लें। अगर नाम या गोत्र भी याद न हो, तो 'मेरे पूर्वजों के लिए तर्पण' जैसे सामान्य शब्दों से भी तर्पण किया जा सकता है। श्रद्धा और मन की शुद्धता ज्यादा मायने रखती है।
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तर्पण की सरल विधि
संकल्प लें
मन से संकल्प करें, 'ॐ, मैं (आपका नाम) अपने पूर्वजों के लिए यह तर्पण कर रहा/रही हूं। उनकी आत्मा को शांति मिले।' अगर पूर्वजों के नाम याद हों तो उनका नाम लेकर करें नहीं तो सामान्य रूप से 'मेरे पूर्वजों के लिए' कहें।
कैसे करें तर्पण?
- दाहिने हाथ में कुश-घास लें, उसमें थोड़ा काला तिल और थोड़ा पानी लें।
- धीरे-धीरे हाथ से पानी-तिल-कुश मिलाकर पात्र (या नदी) में तीन बार अर्पित करें। हर बार मन में यह भावना रखें कि आप यह अर्पण अपने पितरों को कर रहे हैं।
- इस दौरान आप सरल मंत्र जपा कर सकते हैं जैसे: 'ॐ पितृभ्यो नमः' अगर संस्कृत मंत्र की जानकारी नहीं है तो मन से 'हे मेरे पूर्वजों, यह अर्पण आपको समर्पित है' कहते हुए भी किया जा सकता है।
पिण्ड-दान
- पिण्ड बनाने के लिए उबला हुआ चावल लें, उसमें थोड़ा घी/तिल मिलाकर छोटे-छोटे गोले बनाएं (अगर आप अधिक विधि चाहते हैं तो गुड़ और तिल मिलाकर भी बना सकते हैं)।
- इन पिण्डों को एक पत्ते या थाली पर रखकर तर्पण के साथ समर्पित करें।
- पिण्ड-दान के बाद पिण्ड का एक भाग नदी में प्रवाहित करना या किसी पवित्र स्थान पर रखना सामान्य है। कभी-कभी पिंड खिलाने के रूप में कौवों को अन्न देना भी परंपरा में जुड़ा हुआ है।
दान और ब्राह्मण भोजना
- तर्पण के बाद ब्राह्मणों का भोजन कराना या गरीबों को भोजना/दान करना अच्छा माना जाता है। अगर ब्राह्मण उपलब्ध न हों तो अनाज, कपड़े या आवश्यक सामान दान कर देना भी उत्तम है।
- दान करने के बाद शांति-प्रार्थना और आशीर्वाद लें।
समापन
अंत में दीप (दिया) जलाएं, गेय प्रार्थना या शांति पाठ कर सकते हैं और परिवार के साथ कुछ चावल-फल आदि बांटकर समापन करें।