logo

ट्रेंडिंग:

पार्वण श्राद्ध से कैसे अलग है त्रिपिंडी श्राद्ध, जानें इनकी मान्यताएं

पितृपक्ष का समय पूर्वजों को याद करने और उनकी आत्मा की शांति के लिए बेहद खास माना जाता है। इस दौरान पितृ की शांति के लिए पार्वण श्राद्ध और त्रिपिंडी श्राद्ध को विशेष महत्व दिया गया है।

Representational Picture

प्रतीकात्मक तस्वीर: Photo Credit: AI

पितृपक्ष का समय हिंदू धर्म में पूर्वजों को याद करने और उनकी आत्मा की शांति के लिए बेहद खास माना जाता है। इस दौरान अलग-अलग तरीके के श्राद्ध किए जाते हैं, जिनमें पार्वण श्राद्ध और त्रिपिंडी श्राद्ध का विशेष महत्व है। हालांकि, दोनों ही श्राद्ध पितरों को समर्पित हैं लेकिन इनकी प्रक्रिया और मान्यता अलग-अलग बताई गई है। पार्वण श्राद्ध पितृपक्ष के दौरान किसी एक निर्धारित तिथि (तिथि अनुसार) पर किया जाने वाला प्रमुख श्राद्ध होता है। इसे संपूर्ण श्राद्ध भी कहा जाता है। वहीं, त्रिपिंडी श्राद्ध जिसमें तीन पीढ़ियों – पितामह, पिता और खुद की पीढ़ी के पितरों का तर्पण किया जाता है। 


त्रिपिंडी श्राद्ध विशेष परिस्थितियों में किया जाता है। मान्यता है कि अगर कई वर्षों तक श्राद्ध न किया गया हो या फिर घर परिवार पर पितृदोष का असर दिख रहा हो, तो त्रिपिंडी श्राद्ध अनिवार्य हो जाता है। इसमें तीन तरीके पिंड (गोले) बनाया जाता हैं और उनका विधिवत तर्पण कर आत्मा की मुक्ति के लिए प्रार्थना की जाती है। मान्यता है कि इसे करने से पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलती है और संतान को पितृदोष से मुक्ति मिलती है।

 

यह भी पढ़ें: पितृपक्ष में कौवे को भोजन कराने के शास्त्रीय नियम क्या हैं?

पार्वण श्राद्ध

विशेषता

  • पार्वण श्राद्ध, श्राद्ध पक्ष (पितृपक्ष) में किया जाता है।
  • यह सबसे मुख्य और अनिवार्य श्राद्ध माना गया है।
  • यह श्राद्ध मृतक आत्मा की तिथि के अनुसार होता है।
  • इस दिन सावा के चावल या फिर खोए का पिंडदान किया जाता है। 

प्रक्रिया

  • श्राद्ध पक्ष में तिथि को दोपहर के समय लिया जाता है।
  • इसमें ब्राह्मणों को भोजन, जल और दान दिया जाता है।
  • पिंडदान और तर्पण कर पितरों को जल अर्पित किया जाता है।
  • विधिपूर्वक पकवान बनाए जाते हैं और संतों को भोजन कराने के बाद स्वयं भोजन किया जाता है।

यह भी पढ़ें: सोमेश्वर नाथ मंदिर अरेराज: रामजी ने की थी शिवलिंग की स्थापना

पार्वण श्राद्ध की मान्यता

पितरों की तृप्ति और आशीर्वाद


मान्यता है कि पार्वण श्राद्ध करने से पितर प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते हैं और परिवार में सुख, समृद्धि और शांति बनी रहती है।

 

मोक्ष की प्राप्ति


पितरों की आत्मा को पार्वण श्राद्ध से शांति मिलती है और उनका लोक कल्याण होता है।

 

धर्म का पालन


इसे सर्वपितृ अमावस्या के दिन करने की विशेष मान्यता है। कहा जाता है कि इस दिन किया गया श्राद्ध सभी पितरों तक पहुंचता है, चाहे उनकी मृत्यु किसी भी तिथि को हुई हो।

 

कुल की समृद्धि और सुरक्षा


मान्यता है कि पितर संतुष्ट होते हैं तो वे अपने वंशजों की रक्षा करते हैं और परिवार पर कोई अनिष्ट नहीं आने देते।

 

पूर्वजों के ऋण से मुक्ति


श्राद्ध को पितृऋण चुकाने का माध्यम माना गया है। इसे करने से व्यक्ति अपने पूर्वजों के प्रति अपने दायित्व का निर्वहन करता है।

त्रिपिंडी श्राद्ध

विशेषता

  • त्रिपिंडी श्राद्ध विशेष प्रकार का श्राद्ध है।
  • इसका उद्देश्य उन पितरों की आत्माओं को शांति देना है जिन्हें विधिवत श्राद्ध नहीं मिला हो या जिनका श्राद्ध कई वर्षों से नहीं किया गया हो।
  • इसे 'विशेष श्राद्ध' भी कहा जाता है और यह पितृदोष निवारण के लिए भी किया जाता है।

यह भी पढ़ें: करवा चौथ 2025: कब है, कथा क्या है, मान्यता क्या है? सब जानिए

 

प्रक्रिया

  • इसमें तीन तरीके के पिंड अर्पित किए जाते हैं, जो तीनों पीढ़ियों के पितरों (पिता, दादा, परदादा) को समर्पित होते हैं।
  • यह श्राद्ध किसी विशेष तिथि या फिर अमावस्या और पितृपक्ष के दौरान किया जाता है।
  • इसका विधान सामान्य श्राद्ध से अधिक विस्तृत होता है और इसमें पिंडदान की विशेष भूमिका होती है।
  • इसमें तीन तरीके की आत्मा का श्राद्ध किया जाता है। जिसमें तामस, राजसी और सात्विक आत्मा का पिंड दान शामिल है। 
  • तामस-  ऐसी आत्मा जो अपने जीवन काल में तामसिक यानि कि मासांहार, शराब और अन्य व्यभिचार से जुड़ी हो। 
  • तामस आत्मा की शांति के लिए इस श्राद्ध कर्म में भगवान शिव के रूद्र रूप को तिल का पिंड अर्पित किया जाता है।
  • राजसी – ऐसा जीव जो अपने जीवनकाल में केवल भोग-विलास और राजा बनने की इच्छा रखता हो।
  • राजसी आत्मा की शांति के लिए त्रिपिंडी श्राद्ध कर्म में भगवान विष्णु को जौ के आटा का पिंड अर्पित किया जाता है।
  • सात्त्विक – वह जीव, जो अपने जीवनकाल में सात्त्विकता का पालन करता हो।
  • सात्विक आत्मा की शांति के लिए इस कर्म में भगवान ब्रह्म को चावाल के आटा का पिंड दान किया जाता है। 
  • त्रिपिंडी श्राद्ध कर्म को मूल रूप से नदी के किनारे किया जाता है। 

यह भी पढ़ें: पशुपतिनाथ से शम्भुनाथ तक, नेपाल के प्रसिद्ध मंदिरों की पूरी कहानी

त्रिपिंडी श्राद्ध की मान्यता

अतृप्त पितरों की तृप्ति

 

मान्यता है कि अगर किसी वजह से किसी पूर्वज का नियमित श्राद्ध न किया गया हो, तो उनकी आत्मा अशांत रहती है। त्रिपिंडी श्राद्ध से ऐसे पितरों को शांति और तृप्ति मिलती है।

 

कुल की रक्षा और उन्नति

 

शास्त्रों के अनुसार, त्रिपिंडी श्राद्ध करने से पितर प्रसन्न होकर वंशजों को आशीर्वाद देते हैं। परिवार की उन्नति होती है और विघ्न-बाधाएं दूर होती हैं।

 

पितृ दोष का निवारण

 

ज्योतिष और शास्त्रों में कहा गया है कि जिन परिवारों में बार-बार कठिनाइयां आती हैं या संतान सुख में बाधा होती है, उसकी वजह अक्सर पितृदोष ही होती हैं। त्रिपिंडी श्राद्ध करने से पितृदोष समाप्त होता है।

 

मोक्ष की प्राप्ति

 

मान्यता के अनुसार, यह श्राद्ध आत्माओं को मुक्ति का मार्ग प्रदान करता है। शास्त्रों के अनुसार, त्रिपिंडी श्राद्ध से पितरों की आत्मा पितृलोक या उच्च लोक की ओर अग्रसर होती है।

 

विशेष महत्व अमावस्या को

 

इसे विशेषकर पितृपक्ष की अमावस्या को करना श्रेष्ठ माना गया है। इस दिन पितर धरती पर आते हैं और वंशजों के जरिए किए गए तर्पण और श्राद्ध को स्वीकार करते हैं।

 

मुख्य अंतर

 

उद्देश्य : पार्वण श्राद्ध नियमित और परंपरागत कर्तव्य है, जबकि त्रिपिंडी श्राद्ध अधूरे श्राद्ध या पितृदोष निवारण के लिए विशेष रूप से किया जाता है।

प्रक्रिया : पार्वण श्राद्ध में तर्पण और ब्राह्मण भोज प्रमुख होता है, जबकि त्रिपिंडी श्राद्ध में तीन पिंड अर्पण (त्रिपिंडी) मुख्य है।

महत्व : पार्वण श्राद्ध अनिवार्य है, त्रिपिंडी श्राद्ध आवश्यकता और परिस्थिति के अनुसार किया जाता है।

स्थान : पार्वण श्राद्ध घर पर भी किया जा सकता है लेकिन त्रिपिंडी श्राद्ध अधिकतर पवित्र तीर्थस्थलों या फिर नदी के किनारे पर किया जाता है।

 

शेयर करें

संबंधित खबरें

Reporter

और पढ़ें

हमारे बारे में

श्रेणियाँ

Copyright ©️ TIF MULTIMEDIA PRIVATE LIMITED | All Rights Reserved | Developed By TIF Technologies

CONTACT US | PRIVACY POLICY | TERMS OF USE | Sitemap