हिंदू धर्म में करवा चौथ व्रत का विशेष महत्व दिया गया है। यह व्रत विशेष रूप से विवाहित महिलाएं रखती हैं। कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाने वाला यह व्रत पति की लंबी उम्र, अच्छे स्वास्थ्य और वैवाहिक सुख-समृद्धि के लिए किया जाता है। इस दिन महिलाएं सूर्योदय से पहले सरगी ग्रहण करती हैं और फिर दिनभर निर्जला व्रत रखकर शाम को भगवान शिव, माता पार्वती और चंद्रमा की पूजा करती हैं। परंपरा के अनुसार रात को चंद्रमा के दर्शन के बाद छलनी से पति का चेहरा देखकर जल ग्रहण कर व्रत खोला जाता है।
करवा चौथ से कई पौराणिक कथाएं जुड़ी हैं, जिनमें सावित्री-सत्यवान और वीरावती की कथा सबसे प्रसिद्ध हैं। कहा जाता है कि इन कथाओं से प्रेरित होकर महिलाएं दृढ़ आस्था के साथ यह व्रत करती हैं। इस दिन महिलाएं श्रृंगार करती हैं, मेहंदी रचाती हैं और करवा चौथ की पूजा-अर्चना करती हैं।
यह व्रत केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं बल्कि पति-पत्नी के बीच प्रेम और विश्वास का प्रतीक माना जाता है। उत्तर भारत के कई राज्यों जैसे पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और बिहार में इसकी विशेष धूम रहती है।
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करवा चौथ व्रत 2025?
इस साल करवा चौथ का व्रत कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को पड़ेगा। वैदिक पंचांग के अनुसार, यह तिथि 10 अक्टूबर 2025 को सुबह 5 बजकर 30 मिनट से शुरू होगी और इस तिथि का समापन शाम को 8 बजकर 30 मिनट पर होगा। पंचांग के अनुसार, करवा चौथ के दिन शाम को 8 बजकर 13 मिनट पर चन्द्रोदय होगा।
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करवा चौथ व्रत की पौराणिक कथा
करवा चौथ से कई पौराणिक कथाएं जुड़ी हुई हैं। सबसे प्रसिद्ध कथा सावित्री और सत्यवान की है। कहा जाता है कि सावित्री ने यमराज से अपने पति सत्यवान का प्राण वापस मांगा और अपनी दृढ़ता से पति को दोबारा जीवन दिलाया। इसके अलावा वीरावती की कथा भी प्रचलित है। वीरावती के भाईयों ने बहन की भूख न देख पाने पर कृत्रिम रूप से चंद्रमा दिखाकर व्रत तुड़वाया। इसके परिणामस्वरूप उसके पति को कष्ट हुआ। तब वीरावती ने सच्चे भाव से व्रत दोबारा किया और पति को दोबार जीवन मिला।
करवा चौथ व्रत की विशेष परंपराएं
- इस दिन महिलाएं हाथों में मेहंदी रचाती हैं और श्रृंगार करती हैं।
- करवा चौथ की पूजा में कहानी सुनना आवश्यक माना जाता है।
- पति-पत्नी को उपहार देते हैं और उनका आशीर्वाद लेते हैं।