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हल के 'सीत' से प्रकट हुई थीं सीता, यहां जानें जानकी जयंती की विशेषता

हिंदू धर्म में सीता जयंती का विशेष महत्व है। आइए जानते हैं, क्या है इस दिन का महत्व और सीता जी कथा।

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देवी सीता की प्रतीकात्मक तस्वीर।(Photo Credit: AI Image)

हिंदू धर्म में जानकी जयंती पर्व का विशेष महत्व है। यह पर्व प्रत्येक वर्ष फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि के दिन मनाया जाता है। शास्त्रों में बताया गया है कि भगवान श्री राम की अर्धनग्नी और मिथिला के राजा जनक की पुत्री देवी जानकी का अवतरण हुआ था।

 

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस विशेष दिन पर पूजा-पाठ करने से व्यक्ति को विशेष लाभ प्राप्त होता है और जीवन में सुख-समृद्धि की प्राप्ति होगी। आइए जानते हैं क्या है इस दिन का महत्व और तिथि।

 

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जानकी जयंती 2025 तिथि

वैदिक पंचांग के अनुसार, फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि 20 फरवरी सुबह 09 बजकर 55 मिनट पर शुरू हो चुकी है और इस तिथि का समापन 21 फरवरी सुबह 11 बजकर 57 मिनट पर हो जाएगा। ऐसे में जानकी जयंती पर्व 21 फरवरी के दिन मनाया जाएगा। बता दें कि यह पर्व मुख्य रूप से गुजरात, महाराष्ट्र और दक्षिण भारत के विभिन्न क्षेत्रों में मनाया जाता है।

देवी जानकी के अवतरण की कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, मिथिला के राजा जनक संतानहीन थे, जिससे वे अत्यंत चिंतित रहते थे। एक दिन, जब राज्य में भीषण अकाल पड़ा, तब ऋषियों ने राजा जनक को यज्ञ करने और धरती को जोतने का परामर्श दिया। उन्होंने कहा कि इस पवित्र कार्य से न सिर्फ वर्षा होगी, बल्कि राज्य की समृद्धि भी लौटेगी।

 

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राजा जनक ने स्वयं हल उठाकर भूमि जोतने में जुट गए। जब उन्होंने भूमि को हल से जोता, तो अचानक धरती से एक सुंदर शिशु प्रकट हुई। राजा जनक ने जब उन्हें देखा, तो उनका हृदय प्रेम और करुणा से भर गया। उन्होंने कन्या को अपनी पुत्री के रूप में स्वीकार किया और उनका नाम 'सीता' रखा, क्योंकि वे हल के नोक (सीत) से उत्पन्न हुई थीं।

कई विद्वानों का मानना है कि देवी सीता स्वयं माता लक्ष्मी का अवतार थीं, जो भगवान राम की अर्धांगिनी बनने के लिए इस धरती पर आई थीं। उनका जीवन सतीत्व, त्याग और मर्यादा का प्रतीक बना।

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