हिन्दू धर्म में भगवान शिव के विभिन्न स्वरूपों की उपासना अलग-अलग विधि से की जाती है। सनातन संस्कृती में भगवान शिव को सृष्टि के संघारक के रूप में पूजा जाता है और उन्होंने समय-समय पर अलग स्वरूपों में सृष्टि का उद्धार किया है। भगवान शिव के अनेकों रूपों में से एक हैं भगवान काल भैरव।
शास्त्रों में भगवान काल भैरव के कहा गया है कि उनका अवतरण भगवान शिव के क्रोध से हुआ था। बता दें कि प्रत्येक वर्ष मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन काल भैरव जयंती मनाई जाती है। वैदिक पंचांग के अनुसार, इस वर्ष 22 नवंबर 2024, मंगलवार के दिन कालाष्टमी व्रत का पालन किया जाएगा। आइए जानते हैं कि इस भगवान शिव के रौद्र रूप भगवान काल भैरव की कथा।
भगवान काल भैरव के अवतरण की कथा
शास्त्रों में यह वर्णित है कि भगवान शिव ने अहंकार और अधर्म का नाश करने के लिए भगवान काल भैरव के रूप में अवतरण लिया था। कथा के अनुसार, एक बार देवताओं में यह चर्चा उठी कि त्रिदेवों में सर्वश्रेष्ठ कौन हैं? इस चर्चा के दौरान ब्रह्मा जी ने स्वयं को सबसे श्रेष्ठ बताया और इस दौरान भगवान शिव के प्रति कुछ ऐसी बाते कहीं, जो अपमानजनक थी। इसपर भगवान शिव ने अत्यंत क्रोधित हो उठे थे।
भगवान शिव ने क्रोध में अपना तीसरा नेत्र खोल लिया, जिससे भगवान काल भैरव अवतरित हुए। भगवान शिव का यह रूप अत्यंत भयंकर और प्रचंड था। भगवान काल भैरव ने ब्रह्मा जी के पांच सिरों में से एक सिर को काट दिया, जिसके बाद उनका अहंकार नष्ट हो गया। लेकिन भगवान काल भैरव पर ब्रह्म हत्या का दोष लग गया। इस दोष से मुक्ति के लिए भगवान काल भैरव को काशी की यात्रा करनी पड़ी और जिससे उनपर लगा यह पाप नष्ट हो गया। तभी से काशी को मोक्षदायनी के रूप में जाना जाने लगा।
कहा जाता है कि भगवान काल भैरव को काशी का कोतवाल कहा जाता है। इस स्थान से जुड़ी मान्यता यह है कि इस नगरी में प्रवेश करने से व्यक्ति के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। साथ ही कहा जाता है कि काशी में सबसे पहले भगवान काल भैरव के दर्शन करने चाहिए। ऐसा करने से ही पूर्ण फल की प्राप्ति होती है।
भगवान काल भैरव की उपासना का महत्व
शास्त्रों में यह वर्णित है कि भगवान काल भैरव की उपासना करने से व्यक्ति को रोग, दोष और भय से मुक्ति मिल जाती है। साथ ही भगवान काल भैरव व्यक्ति के सभी पापों का विनाश करते हैं। तंत्र साधना के लिए भी भगवान काल भैरव की उपासना को बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। इसके साथ कालाष्टमी व्रत के अवसर पर भगवान काल भैरव की उपासना अर्धरात्रि में की जाती है। जिससे सुख-समृद्धि और शांति की प्राप्ति होती है।