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जब एक पाप के कारण पूरे ब्रह्मांड में भिक्षा मांग रहे थे भगवान काल भैरव

हिंदू धर्म में भगवान काल भैरव की उपासना महादेव के रौद्र रूप में की जाती है। आइए जानते हैं भगवान काल भैरव की कथा।

Image of Kaal Bhairav

भगवान शिव के रौद्र रूप हैं भगवान काल भैरव।(Photo Credit: Wikimedia Commons)

हिन्दू धर्म में प्रत्येक महीने कालाष्टमी व्रत का पालन किया जाता है। यह व्रत भगवान शिव के रौद्र रूप भगवान काल भैरव की उपासना के लिए समर्पित है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान काल भैरव की उपासना करने से व्यक्ति के सभी कष्ट और दुःख दूर हो जाते हैं। शिव पुराण में भी कालाष्टमी व्रत और भगवान काल भैरव की कथा को विस्तार से बताया गया है।

कालाष्टमी 2025 तिथि

वैदिक पंचांग अनुसार, वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि 20 अप्रैल शाम 07 बजकर 02 मिनट पर शुरू होगी और इस तिथि का समापन 21 अप्रैल शाम 06 बजकर 55 मिनट पर हो जाएगा। कालाष्टमी व्रत के दिन भगवान काल भैरव की उपासना रात्रि के समय की जाती है, ऐसे में वैशाख मासिक कालाष्टमी व्रत 20 अप्रैल 2025, रविवार के दिन रखा जाएगा।

 

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भगवान काल भैरव की कथा

शिव पुराण की कथा के अनुसार, पौराणिक काल में जब त्रिदेव- ब्रह्मा, विष्णु और शिव के बीच श्रेष्ठता को लेकर विवाद हो गया। ब्रह्मा जी, जो सृष्टि रचयता हैं, उन्हें अहंकार हो गया था कि वही सबसे महान हैं। उन्होंने भगवान शिव के बारे में कुछ अनुचित बातें कह दीं। यह बातें उन्होंने अपने पांचवें मुख से कहीं।

 

शिव जी को जब यह अहंकारपूर्ण वचन सुने, तो वह अत्यंत क्रोधित हो उठे। अपने तेज से उन्होंने एक बहुत भयंकर रूप का निर्माण किया और यही रूप काल भैरव कहलाया। उनका शरीर काला था, गले में नरमुण्डों की माला थी, और हाथ में त्रिशूल व खड्ग था।

शिव जी ने उन्हें आदेश दिया- ‘जाओ और ब्रह्मा जी के इस अभिमानी मुख को शांत करो।’

 

काल भैरव तुरंत गए और ब्रह्मा जी का वह पांचवां सिर काट दिया। उसी क्षण ब्रह्मा जी का सिर भैरव के हाथ में चिपक गया और ब्रह्महत्या का पाप उनके पीछे लग गया।

भगवान काल भैरव पर लगा ब्रह्म हत्या का पाप

अब भगवान काल भैरव को यह अनुभव हुआ कि उन्होंने ब्रह्मा जी का सिर काटकर अपराध किया है। उन्होंने महादेव से क्षमा मांगी और इस पाप से मुक्ति का उपाय मांगा, तब भगवान शिव ने कहा कि ‘हे भैरव, तुमने मेरा कार्य तो किया लेकिन ब्रह्महत्या का पाप तुम्हारा पीछा नहीं छोड़ेगा। तुम्हें पूरे ब्रह्मांड में भिक्षा मांगते हुए घूमना होगा, और जब तक यह सिर तुम्हारे हाथ से अलग न हो जाए, तब तक यह यात्रा चलेगी।'

 

भैरव ने आज्ञा मानी और हाथ में ब्रह्मा जी का कटा सिर लेकर भिक्षाटन शुरू कर दिया। वे देवताओं के लोकों में गए, फिर ऋषियों के आश्रमों, यज्ञ स्थलों, नगरों और गांवों में भी। परंतु कहीं भी उन्हें शांति नहीं मिली और न ही ब्रह्मा का सिर उनके हाथ से गिरा।

 

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हर जगह लोग उन्हें देखकर भयभीत हो जाते थे – उनके खून से लथपथ शरीर और भयंकर रूप को देखकर लोग दूर भागते थे। फिर भी वे लगातार भिक्षा मांगते रहे, यह सोचकर कि एक दिन उन्हें मुक्ति अवश्य मिलेगी।

काशी में मिली पापों से मुक्ति

अंत में भगवान काल भैरव काशी यानी आज के वाराणसी पहुंचे। जैसे ही उन्होंने वहां प्रवेश किया, एक चमत्कार हुआ- ब्रह्मा जी का वह सिर उनके हाथ से अपने आप ही गिर पड़ा और ब्रह्महत्या रूपी पाप भी समाप्त हो गया। इस स्थान को 'कपाली तीर्थ' कहा गया और यहीं पर काल भैरव को पूर्ण शांति प्राप्त हुई। तब भगवान शिव वहां प्रकट हुए और बोले कि, ‘हे भैरव, तुम्हारा तप सफल हुआ। अब से तुम काशी के रक्षक बनोगे। कोई भी जीव, चाहे वह मृत्यु क्यों न हो, तुम्हारी आज्ञा के बिना इस नगरी से बाहर नहीं जा सकेगा।’ इस प्रकार काल भैरव काशी के कोतवाल घोषित हुए।

 

Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारी सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं।

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