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सभी पाप दूर करता है कालाष्टमी व्रत, जानिए इससे जुड़ी पौराणिक कथा

हिंदू धर्म में भगवान काल भैरव न्याय के देवता के रूप में पूजे जाते हैं लेकिन उनपर भी ब्रह्म हत्या का पाप लगा था, पढ़िए पूरी कथा।

AI Image of Bhagwan Kaal Bhairav

भगवान काल भैरव।(Photo Credit: AI Image)

हिंदू धर्म में भगवान काल भैरव को भगवान शिव का उग्र और रौद्र स्वरूप माना गया है। भगवान काल भैरव की उपासना के लिए कालाष्टमी व्रत को बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। वैदिक पंचांग के अनुसार, 21 जनवरी के दिन मासिक कालाष्टमी व्रत का पालन किया जाएगा। मान्यता है कि इस विशेष दिन पर भगवान काल भैरव की उपासना करने से व्यक्ति को विशेष लाभ प्राप्त होता है।

 

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, वे धर्म, न्याय और समय के अधिपति हैं और भक्तों के भय, संकट व पापों का नाश करते हैं। काल भैरव से जुड़ी कथा में यह बताया गया है कि उन पर ब्रह्म हत्या का पाप क्यों लगा था और यह घटना कालाष्टमी व्रत से कैसे जुड़ी हुई है। आइए जानते है पूरी कथा और महत्व।

ब्रह्मा जी और भगवान शिव के बीच विवाद

पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक समय ब्रह्मा जींड की रचना के विषय पर देवताओं के बीच यह चर्चा चल रही थी कि कौन सबसे बड़ा देवता है। भगवान ब्रह्मा जी ने स्वयं को श्रेष्ठ बताया और गर्वपूर्वक कहा कि उन्होंने ही संसार की रचना की है, इसलिए वे सबसे बड़े हैं।

 

जब ब्रह्मा जी का अहंकार बढ़ता गया, तब भगवान शिव ने उन्हें समझाने का प्रयास किया कि सभी देवता अपनी-अपनी शक्तियों में समान हैं और किसी को भी श्रेष्ठ मानने का घमंड नहीं करना चाहिए। लेकिन ब्रह्मा जी ने उनकी बात नहीं मानी और अपमानजनक शब्द कहे। इससे भगवान शिव क्रोधित हो गए।

महादेव के क्रोध से प्रकट हुए काल भैरव

भगवान शिव ने अपने तीसरे नेत्र से एक उग्र और शक्तिशाली रूप उत्पन्न किया, जिन्हें भगवान काल भैरव कहा गया। भगवान काल भैरव ने ब्रह्मा जी के पांचवे सिर को अपने नाखून से काट दिया। यह पांचवा सिर ब्रह्मा जी के अभिमान और घमंड का प्रतीक था।

 

इसके बाद ब्रह्मा जी को अपनी गलती आभास हुआ और क्षमा मांगी लेकिन ब्रह्मा जी का यह सिर काटने के कारण भगवान काल भैरव पर ब्रह्म हत्या का पाप लग गया। धर्मग्रंथों के अनुसार, ब्रह्म हत्या को सबसे बड़ा पाप माना गया है और इससे मुक्ति पाने के लिए कठोर तपस्या और प्रायश्चित करना आवश्यक होता है।

ब्रह्म हत्या से मुक्ति

ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए भगवान काल भैरव ने कई तीर्थ स्थानों की यात्रा की और कठिन तपस्या की। अंत में काशी (वर्तमान वाराणसी) में उन्हें इस पाप से मुक्ति मिली। यही कारण है कि वाराणसी को 'मोक्ष नगरी' और भगवान काल भैरव को 'काशी के कोतवाल' के रूप में जाना जाता है। काशी में भगवान काल भैरव का प्रमुख मंदिर है, जहां भक्त उन्हें अपना रक्षक मानते हैं।

कालाष्टमी व्रत का संबंध

कालाष्टमी भगवान काल भैरव को समर्पित दिन है। हर महीने की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को यह व्रत किया जाता है। इस दिन भक्त भगवान काल भैरव की पूजा करके उनसे अपने पापों की मुक्ति, भय का नाश और सुख-समृद्धि की कामना करते हैं। भगवान काल भैरव न्याय के देवता हैं, इसलिए जो व्यक्ति व्रत, ध्यान और सद्कर्म में लीन रहता है उन्हें सुख-समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

 

Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारी सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं। Khabargaon इसकी पुष्टि नहीं करता।

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