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कालका जी मंदिर: महाभारत से जुड़ा दिल्ली का प्राचीन शक्तिपीठ

दिल्ली में स्थित कालका जी मंदिर से जुड़ी विशेष मान्यताएं प्रचलित हैं, जिसका संबंध महाभारत काल भी जुड़ता है। आइए जानते हैं इस मंदिर से जुड़ी खास बातें।

Image of Kalka Ji Mandir

कालका जी मंदिर में देवी प्रतिमा।(Photo Credit: Wikimedia Commons)

चैत्र नवरात्रि का शुभारंभ हो चुका है और इसी के साथ देशभर के देवी मंदिर और तीर्थस्थानों पर भक्तों की बड़ी संख्या में भीड़ उमड़ने लगी है। इन्हीं में दिल्ली में स्थित कालका जी मंदिर का नाम शामिल है, जहां आम दिनों के साथ-साथ नवरात्रि के नौ दिनों में लाखों भक्त देवी काली के दर्शन के लिए देश के अलग-अलग हिस्सों से आते हैं। बता दें कि इस मंदिर का इतिहास पौराणिक काल से भी जोड़ा जाता है, जिस वजह से इस स्थान का महत्व और भी बढ़ जाता है।

कालकाजी मंदिर का इतिहास

इतिहासकार और अलग-अलग स्रोत से मिली जानकारी में यह सामने आता है कि कालका जी मंदिर का निर्माण आज से करीब 3000 साल पुराना है। कहा जाता है कि इस मंदिर की स्थापना मराठों के शासनकाल में हुई थी। मुगल बादशाह शाह आलम के राज में मराठों ने दिल्ली में कालकाजी सहित कई हिंदू मंदिरों का पुनर्निर्माण करवाया था।

 

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इसके साथ कालका जी मंदिर का इतिहास महाभारत काल से भी जुड़ा माना जाता है। कहा जाता है कि पांडवों ने भी इस मंदिर में पूजा-अर्चना की थी। वर्तमान मंदिर का निर्माण 18वीं शताब्दी में हुआ, हालांकि इसके पहले भी यहां देवी का एक छोटा मंदिर था। यह मंदिर कई बार पुनर्निर्मित हुआ और इसमें समय-समय पर बदलाव किए गए।

देवी काली की पौराणिक कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, सतयुग में असुरों का अत्याचार बहुत बढ़ गया था। ये दानव ऋषिय, संत और आम लोगों को परेशान कर रहे थे। तब देवताओं और ऋषियों ने भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश से प्रार्थना की कि वे कोई समाधान निकालें।

 

इसके बाद त्रिदेवों ने माता आदिशक्ति का आह्वान किया। माता ने देवी काली का रूप धारण कर असुरों का संहार किया और भक्तों को उनके आतंक से मुक्त किया। लोकमान्यताओं के अनुसार, माता काली इसी स्थान पर प्रकट हुई थीं और यहां पर उनकी शक्ति अभी भी विद्यमान है। हालांकि, कई लोगों में इस बात को लेकर मतांतर है।

 

एक अन्य कथा के अनुसार, जब देवी सती ने अपने पिता से क्रोधित होकर यज्ञ कुंड में कूदकर आत्मदाह किया था। इसके बाद भगवान शिव ने देवी के निर्जीव शरीर को लेकर तांडव नृत्य किया था। जिससे सृष्टि का संतुलन बिगड़ने लगा। तब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से देवी सती के 51 हिस्सों में विभाजित कर दिया, जो विभिन्न स्थानों पर गिरे। जहां-जहां देवी सती के शरीर के अंग गिरे, वहां शक्तिपीठ स्थापित हुए। कालका जी मंदिर से जुड़ी एक लोकमान्यता यह है कि इस स्थान पर दाहिने पैर के अंग गिरे थे, जिस वजह से यह स्थान शक्तिपीठ के रूप में भी प्रसिद्ध है। हालांकि, कुछ विद्वानों में इसके लिए मतांतर है।

मंदिर की विशेषताएं और वास्तुकला

कालका जी मंदिर की 20वीं शताब्दी के आधार पर बनी हुई है। यह मंदिर काले पत्थरों से बना हुआ है, जो माता काली के रंग का प्रतीक है। मंदिर में मुख्य गर्भगृह में माता काली की प्रतिमा विराजमान है, जिसे स्वयंभू मूर्ति कहा जाता है।

 

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मंदिर के चारों ओर कई छोटे मंदिर और धाम स्थित हैं, जो भक्तों को एक विशेष आध्यात्मिक ऊर्जा प्रदान करते हैं। यहां पर हर रोज हजारों भक्त दर्शन और पूजा के लिए आते हैं, लेकिन नवरात्रि के दौरान विशेष भीड़ होती है।

कालका जी मंदिर से जुड़ी कुछ रोचक बातें

नवरात्रि के दौरान यहां विशेष पूजा और भंडारे का आयोजन किया जाता है। इस दौरान मंदिर को फूलों और रोशनी से सजाया जाता है। कई भक्त यहां काले धागे और नारियल चढ़ाकर मनोकामना मांगते हैं। नवरात्रि के अलावा यहां दीपावली, दुर्गा पूजा और अन्य धार्मिक त्योहारों पर बड़े मेले लगते हैं।

 

Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारी सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं।

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