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केसरिया: वह स्तूप, जहां बुद्ध ने दिया था लिच्छवी राजवंश को अंतिम उपदेश

बिहार के पूर्वी चंपारण में स्थित केसरिया स्तूप दुनिया का सबसे ऊंचा बौद्ध स्तूप माना जाता है। केसरिया स्तूप की ऊंचाई लगभग 104 फीट है, यह स्थान बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए बहुत खास माना जाता है।

Kesariya Buddha Stupa

केसरिया स्तूप: Photo Credit: X handle/ Shivam

बिहार के पूर्वी चंपारण जिले में स्थित केसरिया स्तूप, न सिर्फ भारत का बल्कि दुनिया का सबसे ऊंचा बौद्ध स्तूप माना जाता है। इतिहास और आस्था से जुड़े इस स्थल का संबंध स्वयं भगवान गौतम बुद्ध से है। कहा जाता है कि बुद्ध ने अपने महापरिनिर्वाण से पहले यहीं पर अपने अनुयायियों को अंतिम उपदेश दिया था और उन्हें अपना भिक्षापात्र सौंपा था। यही वजह है कि यह स्थल आज भी श्रद्धा और भक्ति का केंद्र बना हुआ है।

 

भारत के प्राचीन गौरव की पहचान माने जाने वाला यह स्तूप लगभग 104 फीट ऊंचा है और इसकी छह परतों वाली संरचना में बुद्ध के जीवन दर्शन को उकेरा गया है। ईंटों और मिट्टी से बना यह भव्य स्तूप मौर्य और गुप्त कालीन वास्तुकला का एक जीवंत उदाहरण माना जाता है। हर साल हजारों की संख्या में श्रद्धालु और पर्यटक यहां पहुंचते हैं, खासकर बुद्ध पूर्णिमा और धम्म चक्र प्रवर्तन दिवस के अवसर पर यहां पर श्रद्धालुओं की भीड़ होती है।

 

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केसरिया स्तूप कहां है?

केसरिया स्तूप बिहार के पूर्वी चंपारण जिले के केसरिया नगर में स्थित है, जो पटना से लगभग 110 किलोमीटर उत्तर-पश्चिम और वैशाली से करीब 40 किलोमीटर दूर है। यह स्तूप भारत ही नहीं, बल्कि दक्षिण एशिया के सबसे ऊंचे बौद्ध स्तूपों में से एक है। इस स्तूप की ऊंचाई लगभग 104 फीट (32 मीटर) है, जो नेपाल के लुंबिनी और सारनाथ के बाद सबसे महत्वपूर्ण बौद्ध तीर्थों में गिना जाता है।

केसरिया स्तूप का इतिहास और बौद्ध धर्म से जुड़ी मान्यता

केसरिया स्तूप का संबंध सीधे तौर पर भगवान गौतम बुद्ध से है। कहा जाता है कि जब बुद्ध जी ने वैशाली से कुशीनगर की अपनी अंतिम यात्रा (महापरिनिर्वाण से पहले) शुरू की थी, तब वह केसरिया में कुछ समय रुके थे। वहां उन्होंने स्थानीय लिच्छवी शासकों और अपने अनुयायियों को अंतिम बार धर्म उपदेश (धम्मदेशना) दिया था।

 

किंवदंती के अनुसार, बुद्ध ने अपने अनुयायियों को यहां एक 'भिक्षापात्र' देकर विदा लिया था और यही स्थान 'भिक्षापात्र दान स्थल' के रूप में प्रसिद्ध हुआ। गौतम बुद्ध निर्वाण के बाद, उनके अनुयायियों ने उनकी याद में यह विशाल स्तूप बनवाया, जो कालांतर में कई बार पुनर्निर्मित हुआ।

 

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धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व

  • हर साल बौद्ध पूर्णिमा और धम्म चक्र प्रवर्तन दिवस पर यहां हजारों श्रद्धालु आते हैं।
  • यहां सूर्योदय और सूर्यास्त के दृश्य बहुत आकर्षक माने जाते हैं, माना जाता है कि यहां ध्यान करने से मन की शांति और आध्यात्मिक ऊर्जा प्राप्त होती है।
  • भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने इस स्तूप को राष्ट्रीय संरक्षित स्मारक घोषित किया है।

स्तूप की विशेषता और स्थापत्य कला

  • केसरिया स्तूप मौर्यकालीन और गुप्तकालीन वास्तुकला का अद्भुत संगम है।
  • इसमें छह मंजिलनुमा परतें हैं, जो ऊपर जाते-जाते आकार में छोटी होती जाती हैं।
  • हर स्तर पर बुद्ध की मूर्तियां, ध्यानमुद्रा और धर्मचक्र प्रतीक बने हुए हैं।
  • स्तूप के चारों दिशाओं में बुद्ध के चार अलग-अलग रूप (ध्यान, प्रवचन, भिक्षा, और निर्वाण) को दर्शाने वाली प्रतिमाएं मौजूद हैं।
  • स्तूप का निचला हिस्सा ईंट और मिट्टी को मिलाकर बनाया गया है, जो 2000 साल से ज्यादा पुराना माना जाता है।

यहां कैसे पहुंचा जा सकता है

नजदीकी रेलवे स्टेशन: यहां का नजदीकी रेलवे स्टेशन छपरा, मोतिहारी, और वैशाली हैं। इनमें से मोतिहारी स्टेशन (लगभग 40 किमी दूर) सबसे नजदीक है।

सड़क मार्ग से: पटना, वैशाली या मोतिहारी से सीधा सड़क मार्ग उपलब्ध है। NH-28 के जरिए आसानी से यहां पहुंचा जा सकता है।

नजदीकी एयरपोर्ट: यहां का नजदीकी एयरपोर्ट जयप्रकाश नारायण अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा है, जो पटना में स्थित है, यह एयरपोर्ट यहां से लगभग 125 किमी दूर है। 

 

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