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कौन थे खंडोबा, क्यों कहलाते हैं शिव का अवतार, कैसे मिला मल्लू खान नाम?

महाराष्ट्र, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश के कई हिस्सों में खांडोबा को देवता के रूप में पूजते हैं। इन्हें मल्लू खान के नाम से भी जाना जाता है।

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खंडोबा को माना जाता है देवता।(Photo Credit: Wikimedia Commons)

भारतीय लोक परंपरा और भक्ति संस्कृति में खांडोबा एक ऐसे देवता हैं जिन्हें महाराष्ट्र, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश के कई हिस्सों में बड़ी श्रद्धा के साथ पूजा जाता है। उन्हें क्षेत्रीय देवता, कुलदेवता और वीर योद्धा का रूप माना जाता है। खांडोबा को भगवान शिव का अवतार माना गया है, जिनकी पूजा विशेष रूप से ग्रामीण समाज, विशेषकर धनगर (चरवाहा), माली, कुंभी, लोहार, तांबट और दलित वर्गों में बड़े श्रद्धा से की जाती है।

 

उनकी पूजा महाराष्ट्र में विशेषकर जेऊर और महुर के मंदिरों में होती है और सबसे प्रसिद्ध मंदिर मल्हारगड (या मल्हारी मार्तंड का मंदिर) सोलापुर जिले के जेजुरी में स्थित है। यही स्थान खांडोबा की भक्ति और लोक परंपरा का केंद्र है।

खांडोबा कौन थे?

खांडोबा को शिव का ही योद्धा स्वरूप माना जाता है। उन्हें 'मल्हारी मार्तंड', 'मल्लारी', 'खंडेराय', 'मार्तंड भैरव' और कई स्थानों पर 'मल्लू खान' जैसे नामों से जाना जाता है। कहा जाता है कि उन्होंने दुष्ट असुरों का संहार कर जनता की रक्षा की और उन्हें अत्यंत शक्तिशाली व रक्षक देवता के रूप में पूजा जाने लगा।

 

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वह युद्धकला में निपुण, घोड़े पर सवार और तलवार लिए हुए वीर देवता माने जाते हैं। खांडोबा का वाहन सफेद घोड़ा है, और उनका शरीर भस्म से लिपटा होता है, जैसे कि शिव का होता है। वह अक्सर दो पत्नियों के साथ दर्शाए जाते हैं- मणि (या म्हालसा) और बाणाई (या बनाई)।

खांडोबा से जुड़ी प्रचलित कहानियां

मणि-मल्ल की कथा:

सबसे प्रसिद्ध कथा खांडोबा और दो राक्षस भाइयों – मणि और मल्ल से जुड़ी है। ये दोनों राक्षस बहुत शक्तिशाली थे और इन्होंने धरती पर उत्पात मचाना शुरू कर दिया था। ऋषि-मुनि और देवता इनसे परेशान हो गए। तब भगवान शिव ने मार्तंड भैरव के रूप में अवतार लिया और इन राक्षसों को युद्ध के लिए ललकारा।

 

मल्ल ने युद्ध में शिव से क्षमा मांगी और प्रार्थना की कि उसका नाम भी पूजा में लिया जाए। शिव ने उसकी प्रार्थना स्वीकार कर ली और कहा कि मेरे नाम के साथ तेरा भी नाम लिया जाएगा। तभी से

म्हालसा और बाणाई की कथा:

खांडोबा की दो प्रमुख पत्नियों की कहानी भी अत्यंत लोकप्रिय है। उनकी पहली पत्नी म्हालसा (या म्हालाई) एक उच्च कुल की कन्या थीं, जिन्हें विष्णु की अवतार माना जाता है। विवाह संस्कार के अनुसार वह एक ब्राह्मणी थीं। वहीं दूसरी पत्नी बाणाई एक धनगर समुदाय की लड़की थी। वह पशुपालक समाज से आती थीं, जो खांडोबा को अपना कुलदेवता मानते हैं।

 

 

बाणाई के साथ खांडोबा का विवाह पारंपरिक विधि से नहीं हुआ था, बल्कि वह प्रेम का प्रतीक था। इसे लोक समाज में प्रेम, समर्पण और सामाजिक एकता की मिसाल माना जाता है।

जेजुरी के मंदिर की कथा:

खांडोबा का सबसे प्रसिद्ध मंदिर जेजुरी में स्थित है, जिसे 'सोन्याचा मळा' (सोने की भूमि) कहा जाता है। भक्त यहां जाकर 'बेसन की हल्दी' (बानासुर की प्रतीक रूपी हल्दी) अर्पित करते हैं और पूरे परिसर को पीला रंग देते हैं। यहां विशेष रूप से चंपाषष्ठी नामक पर्व पर खांडोबा की बारात निकाली जाती है। इसे शिव और बुराई के बीच विजय का उत्सव माना जाता है।

 

इस उत्सव में हजारों श्रद्धालु शामिल होते हैं और ढोल-ताशों के साथ नृत्य करते हुए खांडोबा का स्वागत करते हैं।

 

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उन्हें मल्लू खान क्यों कहा जाता है?

खंडोबा मंदिर से जुड़ी एक बहुत प्रसिद्ध कथा है, जो बताती है कि उन्हें मल्लू खान क्यों कहा जाता है। यह घटना औरंगजेब के समय की है। जब छत्रपति शिवाजी महाराज का निधन हो गया, तब मुगल सम्राट औरंगजेब ने मराठों को कमजोर समझते हुए महाराष्ट्र पर हमला कर दिया। उसने जेजुरी किले पर भी कब्जा कर लिया और खंडोबा मंदिर को नष्ट करने का आदेश दिया। मंदिर के पुजारी ने उसे समझाया कि खंडोबा कोई सामान्य देवता नहीं हैं, वह बहुत शक्तिशाली हैं और उनका अपमान भारी पड़ सकता है। हालांकि, औरंगजेब ने उनकी बात नहीं मानी।

 

जैसे ही मुगल सैनिक मंदिर को विस्फोट से उड़ाने की तैयारी कर रहे थे, अचानक मंदिर के दरवाजे के पास एक छेद से हजारों काले भंवरे निकल आए और उन्होंने सैनिकों पर हमला कर दिया। सैनिक भाग खड़े हुए। औरंगजेब यह चमत्कार देखकर डर गया और पुजारी से समाधान पूछा। पुजारी ने कहा कि खंडोबा से क्षमा माँगें और एक सोने का भंवरे का प्रतीक मंदिर में अर्पित करें।

 

औरंगजेब एक मुसलमान था और किसी हिंदू देवता को पूजना उसे उचित नहीं लगा, इसलिए उसने खंडोबा का नाम बदलकर मल्लू खान रख दिया और भेंट चढ़ाई। तभी से कुछ लोग खंडोबा को मल्लू खान के नाम से भी जानने लगे। साथ ही कुछ मुस्लिम अनुयायी भी अब उन्हें इसी नाम से पूजते हैं।

खांडोबा की पूजा और लोक परंपरा

खांडोबा की पूजा बहुत ही जीवंत और लोकभावना से जुड़ी होती है। उन्हें हल्दी, नींबू, नारियल, बकरी और घोड़े चढ़ाए जाते हैं। हल्दी का विशेष महत्व है, क्योंकि इसे युद्ध में बहाए गए खून का प्रतीक माना जाता है। भक्त खांडोबा के चरणों में हल्दी चढ़ाकर अपनी मन्नतें मांगते हैं।

 

धनगर समाज में खांडोबा को ‘गोधन के रक्षक’ और कुलदेवता के रूप में पूजा जाता है। बकरी की बलि भी कुछ क्षेत्रों में दी जाती है, हालांकि अब यह परंपरा धीरे-धीरे कम हो रही है।

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