धनतेरस से दिवाली की शुरूआत हो चुकी है। आज यानी 19 अक्टूबर को छोटी दिवाली या नरक चतुर्दशी मनाई जाएगी। आज के दिन लंबी उम्र के लिए प्रार्थना की जाती है और आयु के भगवान यमराज की पूजा की जाती है। इस दिन भगवान कृष्ण की भी पूजा की जाती है क्योंकि उन्होंने नरकासुर का वध किया था। आइए जानते हैं कौन है नरकासुर जिसकी वजह से मनाई जाती है नरक चतुर्दशी?
नरक चतुर्दशी का पर्व मुख्य रूप से भगवान कृष्ण का राक्षस नरकासुर का वध किए जाने की पौराणिक कथा से जुड़ा है। यह कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है, जिसे छोटी दिवाली और रूप चौदस के नाम से भी जाना जाता है।
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क्या है नरकासुर की कहानी?
पौराणिक कहानी के अनुसार, नरकासुर प्राग्ज्योतिषपुर (वर्तमान असम के आसपास का क्षेत्र) का राजा था। वह पृथ्वी और भगवान विष्णु के वराह अवतार का पुत्र था, इसलिए उसे भौमासुर भी कहा जाता था। नरकासुर ने ब्रह्मा की घोर तपस्या करके यह वरदान प्राप्त कर लिया था कि उसकी मृत्यु केवल उसकी मां के हाथों ही होगी। इस वरदान ने उसे बहुत अहंकारी और निरंकुश बना दिया। ताकत के घमंड में उसने अत्याचार शुरू कर दिया। उसने इंद्र को भी हरा दिया। कहानियों में यह भी है कि उसने 16,000 राजकुमारियों और महिलाओं को बंदी बनाकर उनका शोषण किया।
जब इसके अत्याचार असहनीय हो गए तो इंद्र के साथ सभी देवता ने कृष्ण से मदद की गुहार लगाई। कृष्ण ने उससे लड़ाई करने का फैसला किया। चूंकि उसे वरदान था कि उसे केवल उसकी मां ही मार सकती है इसलिए उन्होंने अपनी पत्नी सत्यभामा को साथ लेकर गए। सत्यभामा भूमि का ही अवतार थी। लड़ाई के बीच में एक बार जब नरकासुर ने कृष्ण पर हमला किया तो उन्होंने बेहोश होने का नाटक किया। यह देख उनकी पत्नी को गुस्सा आया और उन्होंने नरकासुर का वध कर दिया।
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नरक चतुर्दशी का महत्व
नरकासुर का वध कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी के दिन हुआ था। इस के बाद, कृष्ण ने बंदी बनाई गई 16,000 कन्याओं को छुड़ाया और उन्हें समाज में सम्मान दिलाने के लिए उनसे शादी की। इस जीत के खुश होकर लोग चारों और दीप जलाकर खुशियां मनाते हैं। नरकासुर का वध होने के कारण इस दिन को 'नरक चतुर्दशी' कहा जाने लगा।
ऐसा भी कहा जाता है कि इस दिन नरक जाने के डर को दूर करने और अकाल मृत्यु से बचने के लिए भी यमराज की पूजा की जाती है और घर के बाहर दक्षिण दिशा में यम दीपक जलाया जाता है।