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जब कुंभ पर हुए थे मुगल और अंग्रेजों के आक्रमण, पढ़ें इस मेले का इतिहास

हिंदू धर्म में कुंभ मेला सबसे बड़े धार्मिक आयोजनों में से एक है लेकिन कुंभ मेले पर मुगलों और अंग्रेजों का आक्रमण। जानते हैं इतिहास।

Image of Sadhu in Kumbh Mela

कुंभ मेला का दृश्य।(Photo Credit: PTI)

हिन्दू धर्म में कुंभ मेले का धार्मिक और सांस्कृतिक दोनों ही विशेष महत्व है। वर्तमान समय में 144 वर्षों के बाद प्रयागराज में महाकुंभ मेले का आयोजन हो रहा है। जिसमें लाखों की संख्या में श्रद्धालु पवित्र स्नान के लिए तीर्थराज में आ रहे हैं। हालांकि, आस्था के मुख्य केंद्र कुंभ ने कई बार विदेशी आक्रमणों का सामना भी किया है। विशेष रूप से मुगल और अंग्रेजों ने अलग-अलग समय पर कुंभ पर हमले किए गए। इन आक्रमणों के पीछे कई कारण थे।

मुगल काल में कुंभ पर आक्रमण

मुगल काल के दौरान, भारत के विभिन्न धार्मिक स्थलों को निशाना बनाया गया। इनमें कुंभ मेला भी शामिल था, जो अपनी विशालता और श्रद्धालुओं की भारी भीड़ के कारण विशेष रूप से मुगलों के लिए आकर्षण का केंद्र बना।

औरंगजब का आक्रमण

मुगल शासक औरंगजेब ने अपने शासनकाल में कई हिंदू धार्मिक स्थलों पर हमले किए। कुंभ मेला, जो हरिद्वार और प्रयागराज जैसे स्थानों पर आयोजित होता था, औरंगजेब के धार्मिक नीतियों के चलते प्रभावित हुआ। इतिहासकार बताते हैं कि उसने कुंभ मेले के दौरान होने वाली हिंदू पूजा-पद्धतियों को रोकने के लिए सैन्य कार्रवाई की। औरंगजेब की नीति हिंदू रीति-रिवाजों को दबाने की थी और कुंभ जैसे बड़े धार्मिक आयोजनों को समाप्त करना उसकी रणनीति का हिस्सा था। कुंभ मेले में आने वाले तीर्थयात्रियों को लूटना और साधु व श्रद्धालुओं की हत्या करना शामिल था।

 

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अंग्रेजों द्वारा कुंभ पर आक्रमण

मुगलों के बाद, अंग्रेजों ने भारत में अपनी सत्ता स्थापित की। ब्रिटिश शासन के दौरान कुंभ मेला एक अलग प्रकार के संकट का सामना करता था। अंग्रेजों का उद्देश्य धार्मिक आयोजन को रोकना नहीं, बल्कि उससे अपने तिजोरी को भरना था।

1858 का कुंभ और अंग्रेजी हस्तक्षेप

1857 की क्रांति के बाद, अंग्रेजों ने पूरे भारत पर अपना पूर्ण नियंत्रण स्थापित किया। कुंभ मेले जैसे बड़े धार्मिक आयोजनों पर उनकी नजर इसलिए थी क्योंकि इस आयोजन में लाखों लोग एक साथ आते थे। अंग्रेज इस बात को लेकर चिंतित रहते थे कि इतनी बड़ी भीड़ कहीं विद्रोह का रूप न ले ले। 1858 के कुंभ मेले में, अंग्रेजों ने सुरक्षा के नाम पर तीर्थयात्रियों पर कड़ी निगरानी रखी जाती थी।

1867 का हरिद्वार कुंभ

हरिद्वार कुंभ मेले में 1867 में अंग्रेजों ने पहली बार बड़े स्तर पर प्रशासनिक हस्तक्षेप किया। उनका मुख्य उद्देश्य भीड़ को नियंत्रित करना और राजस्व एकत्र करना था। अंग्रेजों ने मेला क्षेत्र में टैक्स लगाना शुरू कर दिया और स्थानीय पुजारियों व संतों पर नियम लागू किए। इससे धार्मिक संगठनों और अंग्रेजी प्रशासन के बीच संघर्ष की स्थिति बनी।

1911 का प्रयागराज कुंभ

1911 में प्रयागराज में आयोजित कुंभ मेले के दौरान, अंग्रेजों ने मेले को पूरी तरह अपने नियंत्रण में ले लिया। इस दौरान उन्होंने धार्मिक स्थलों के आसपास पुलिस चौकियां स्थापित की और तीर्थयात्रियों के प्रवेश पर सख्त नियम लागू किए। उनका उद्देश्य था कि मेले के दौरान किसी भी प्रकार का विरोध प्रदर्शन या स्वतंत्रता आंदोलन न हो सके।

 

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अंग्रेजों द्वारा हिंसा और दमन

कई बार अंग्रेजों की सख्ती इतनी बढ़ जाती थी कि तीर्थयात्रियों को हिंसा का भी सामना करना पड़ता था। बड़े पैमाने पर लाठीचार्ज और गिरफ्तारी जैसी घटनाएं कुंभ मेले के दौरान होती थीं। हालांकि, अंग्रेज इस बात का भी ध्यान रखते थे कि उनकी सख्ती का धार्मिक भावनाओं पर सीधा असर न पड़े, क्योंकि इससे उनकी सत्ता के खिलाफ विद्रोह भड़क सकता था।

 

मुगल और अंग्रेजों के आक्रमणों का कुंभ मेले पर गहरा प्रभाव पड़ा। मुगलों के दौरान जहां धार्मिक गतिविधियां बाधित हुईं, वहीं अंग्रेजों के शासन में प्रशासनिक नियंत्रण ने मेले की स्वायत्तता को प्रभावित किया। हालांकि, इन आक्रमणों और हस्तक्षेप के बावजूद कुंभ मेला अपनी धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान बनाए रखने में सफल रहा।

 

आज, कुंभ मेला भारत के गौरवशाली धार्मिक आयोजनों में से एक है, जो सदियों से लोगों की आस्था और श्रद्धा का प्रतीक है। वर्तमान समय में चल रहे प्रयागराज में महाकुंभ मेले में इतिहास में मुगलों और अंग्रेजों द्वारा किए गए हस्तक्षेप इस मेले की महत्वता और उसके प्रति लोगों की दृढ़ता को और उजागर करते हैं।

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