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महाकुंभ: विशेष स्नान में पहला नंबर साधुओं का क्यों होता है? वजह जानिए

महाकुंभ में शाही स्नान आकर्षण का मुख्य केंद्र होता है, जिसे सबसे पहले साधु-संतों द्वारा किया जाता है। आइए जानते हैं क्या है इससे जुड़ी प्रमुख मान्यताएं।

Image of Shahi Snan in Kumbh Mela

महाकुंभ में शाही स्नान।(Photo Credit: PTI)

महाकुंभ मेले भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म का सबसे बड़ा आध्यात्मिक आयोजन कहा जाता है। यह आयोजन हर 12 साल में एक बार चार पवित्र स्थान- प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में आयोजित होता है। वर्तमान समय में प्रयागराज में महाकुंभ मेले का आयोजन हो रहा है, जिसका अपना एक विशेष महत्व है।

 

कुंभ मेले का मुख्य आकर्षण अमृत स्नान है, जिसे शाही या राजसी स्नान भी कहा जाता है। अमृत स्नान सबसे पहले साधु-संतों द्वारा किया जाता है। इसे सबसे पवित्र और शुभ माना जाता है। अमृत स्नान केवल साधु-संत और अखाड़ों के प्रमुख ही करते हैं। उनके स्नान के बाद ही आम श्रद्धालुओं को गंगा, यमुना और सरस्वती जैसे पवित्र नदियों में स्नान करने का अवसर मिलता है। अमृत स्नान के पीछे धार्मिक और पौराणिक महत्व जुड़ा हुआ है।

 

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अमृत स्नान की पौराणिक मान्यता

अमृत स्नान की समुद्र मंथन की कथा से संबंध है। पौराणिक कथा के अनुसार, जब देवताओं और असुरों ने अमृत पाने के लिए समुद्र मंथन किया, तो उसमें अमृत कलश निकला। इस कलश को लेकर भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण कर असुरों को भ्रमित किया। इस बीच देवताओं और दैत्यों के बीच हुए संघर्ष में अमृत की कुछ बूंदें धरती पर चार स्थानों पर गिर गईं। इन स्थानों में प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक शामिल हैं। इन स्थानों पर अमृत का प्रभाव हमेशा बना रहता है।

 

कुंभ मेले का आयोजन इन्हीं चार स्थानों पर होता है और अमृत स्नान को इस अमृत के पवित्र प्रभाव का प्रतीक माना जाता है। महाकुंभ में अमृत स्नान सबसे पहले अमृत स्नान का अधिकार साधु-सन्यासियों को दिया जाता है।

क्यों साधु-संत पहले करते हैं अमृत स्नान?

भारतीय संस्कृति में साधु-सन्यासी धर्म और तपस्या के प्रतीक माने जाते हैं। वे सांसारिक मोह-माया से दूर रहकर अपने जीवन को भगवान के लिए समर्पित करते हैं। महाकुंभ जैसे पवित्र आयोजन में उन्हें सबसे पहले अमृत स्नान का अधिकार देने का मुख्य उद्देश्य उनके त्याग और तपस्या का सम्मान करना होता है। माना जाता है कि उनकी तपस्या और पवित्रता से स्नान स्थल शुद्ध हो जाता है और इसके बाद आम लोगों के लिए स्नान अधिक फलदाई हो जाता है।

 

शास्त्रों में अमृत स्नान धार्मिक क्रिया के साथ-साथ आत्मा की शुद्धि और मोक्ष प्राप्ति का साधन बताया गया है। साथ ही साधु-सन्यासियों के पहले स्नान करने से इस पवित्र कर्म का शुभारंभ होता है। उनके द्वारा स्नान के बाद यह स्थान और भी अधिक पवित्र माना जाता है। अमृत स्नान में अखाड़ों के संत, महंत और नागा साधु बड़ी श्रद्धा और अनुशासन के साथ भाग लेते हैं।

 

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अमृत स्नान के नियम

सबसे पहले अमृत स्नान अखाड़ों के प्रमुख साधु-संतों द्वारा किया जाता है। इसमें 13 प्रमुख अखाड़े भाग लेते हैं। प्रत्येक अखाड़े का अपना समय और परंपरा होती है। अखाड़ों के साधु-संत गंगा, यमुना या सरस्वती जैसी पवित्र नदियों में डुबकी लगाने से पहले ध्यान और मंत्रोच्चार करते हैं।

 

स्नान से पहले जुलूस के रूप में साधु-संत अपनी परंपरागत वेशभूषा और ध्वजों के साथ नदी किनारे पहुंचते हैं। जुलूस में नागा साधु, महामंडलेश्वर और अन्य संन्यासी अपनी धार्मिक रीति-रिवाजों का पालन करते हैं। मान्यता है कि स्नान के दौरान पूरा क्षेत्र हो जाता है। इसलिए इस दौरान आए श्रद्धालुओं को अनुशासन का पालन करना चाहिए और किसी भी प्रकार की अशुद्ध या अनुचित व्यवहार नहीं करना चाहिए।

 

Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारी सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं। Khabargaon इसकी पुष्टि नहीं करता।

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