हिमाचल प्रदेश की लाहौल घाटी में आस्था और परंपरा का प्रतीक माने जाने वाले राजा घेपन आज भी स्थानीय लोगों के रक्षक देवता माने जाते हैं। सिस्सू गांव स्थित उनके मंदिर में मूर्तियों की जगह लकड़ी का ऊंचा स्तंभ और रंग-बिरंगे कपड़े उनके दिव्य अस्तित्व का प्रतीक माना जाता हैं। मान्यता है कि प्राचीन काल में राजा घेपन ने घाटी में उत्पात मचाने वाले दानवों का वध करके यहां के लोगों की रक्षा की थी। तभी से उन्हें लाहौल का अधिपति और शक्तिशाली देवता माना जाता है।
राजा घेपन से जुड़ी सबसे अनोखी परंपरा उनकी रथ यात्रा है, जो तीन साल में केवल एक बार होती है। इस यात्रा में राजा घेपन का रथ पूरे लाहौल की परिक्रमा करता है और हिमाचल के विभिन्न स्थानीय देवी-देवताओं के रथ भी इसमें शामिल होते हैं। यह संगम गुंचलिंग मेले में संपन्न होता है, जहां लोग भविष्यवाणियां सुनते हैं और आने वाले वर्षों की समृद्धि की कामना करते हैं। स्थानीय आस्था है कि इस यात्रा से पूरी घाटी देवी-देवताओं की शक्ति से संरक्षित होती है और आने वाले समय में सुख-शांति बनी रहती है।
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राजा घेपन से जुड़ी मान्यता और पौराणिक कथा
स्थानीय लोककथाओं के अनुसार राजा घेपन ने प्राचीन काल में उन दानवों का वध किया था, जो लाहौल घाटी में आतंक मचा रहे थे। उन्हें इस भूमि का रक्षक और सबसे शक्तिशाली देवता माना जाता है। लोग उन्हें सुख-समृद्धि और सुरक्षा का प्रतीक मानते हैं। सिस्सू गांव में राजा घेपन मंदिर है, जहां लकड़ी का ऊंचा स्तंभ और रंग-बिरंगे कपड़े उनकी उपस्थिति का प्रतीक माने जाते हैं। मंदिर में पारंपरिक मूर्तियां नहीं हैं, बल्कि श्रद्धालु इन प्रतीकों को देवत्व का रूप मानकर पूजा करते हैं।

यात्रा और तीन साल का नियम
राजा घेपन की विशेष रथ यात्रा होती है, जिसमें उनका रथ पूरे लाहौल की परिक्रमा करता है। यह यात्रा तीन साल में केवल एक बार होती है। मान्यता है कि इस अवधि में राजा घेपन की शक्ति और आशीर्वाद पूरी घाटी में स्थिर रहते हैं। स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, जब यह शक्ति दोबारा जाग्रत करने की आवश्यकता होती है, तभी रथ यात्रा निकाली जाती है। यात्रा कई महीनों तक चलती है और इसमें आसपास के अन्य देवी-देवताओं के रथ भी शामिल होते हैं। यह देवसमागम सामाजिक एकता, समृद्धि और भविष्यवाणियों का भी अवसर माना जाता है।
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यात्रा से जुड़ी धार्मिक मान्यता और विशेषता
राजा घेपन के सम्मान में निकली यात्रा में रंग-बिरंगे ध्वज (झंडा), रथ और पारंपरिक वाद्य (डोल-नगाढ़े) बजते हैं। इस दौरान देवी-देवताओं का संगम 'गुंचलिंग' मेले में होता है। स्थानीय लोग मानते हैं कि इस परिक्रमा से पूरी घाटी दैवीय शक्ति से संरक्षित हो जाती है और आने वाले समय के लिए आशीर्वाद प्राप्त होता है।
स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, जब तक घाटी में राजा घेपन की रथ यात्रा चलती है तब तक बर्फ नही पड़ती है, यात्रा के बाद जब राजा घेपन को मंदिर में स्थापित कर दिया जाता है, उसके बाद ही बर्फबारी शुरू होती है।
इस परिक्रमा में कई स्थानीय देवता शामिल होते हैं, जैसे देवी बोटी, मोगर, ड्राबला, लुंगखोरबल, शलवर, मेलंग तेते, नागराजा आदि। मान्यता के अनुसार, गुंचलिंग मेले में सभी देवी-देवताओं का मिलन होता हैं।

यह यात्रा सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व से जोड़ी जाती है, जिसमें भविष्यवाणियां की जाती हैं और देवताओं का सम्मान स्थानीय समाज जुड़ाव का अवसर बनता है।
मंदिर तक पहुंचने का रास्ता
- राजा घेपन का मंदिर लाहौल के सिस्सू गांव में है।
- मनाली से अटल टनल रोहतांग पार करने के बाद सड़क मार्ग से सिस्सू पहुंचा जा सकता है।
- यहां से मंदिर तक आसानी से पैदल या टैक्सी से पहुंचा जा सकता है।
- मंदिर साधारण दिखता है लेकिन आस्था और श्रद्धा के लिए इसे सबसे प्रमुख स्थल माना जाता है।