मां चिल्ठा देवी का मंदिर उत्तराखंड के बागेश्वर जिले के कपकोट क्षेत्र में स्थित एक प्राचीन और पवित्र स्थल है। यह मंदिर समुद्र तल से लगभग 2500 मीटर की ऊंचाई पर सुपी गांव के पास एक ऊंची पहाड़ी पर स्थित है। मां चिल्ठा देवी को 'छठ की भगवती' के रूप में पूजा जाता है और यह स्थान कुमाऊं क्षेत्र के प्रमुख शक्तिपीठों में से एक माना जाता है।
स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, मां चिल्ठा देवी का संबंध मां नंदा देवी से है, जो उत्तराखंड की कुलदेवी हैं। कहा जाता है कि यहां मां नंदा भगवती ने एक गुफा में तपस्या की थी और उनकी शक्ति से इस स्थान की रक्षा होती है। कुछ पौराणिक कथाओं में यह भी उल्लेख मिलता है कि यह स्थान देवी सती के 52 शक्तिपीठों में से एक हो सकता है, हालांकि इसकी पुष्टि के लिए कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं है।
मंदिर की विशेषताएं
मंदिर का वातावरण अत्यंत शांत और आध्यात्मिक है। यहां से हिमालय की विशाल श्रृंखलाएं, पिंडारी ग्लेशियर, पंचाचूली चोटी, नंदा देवी और नंदा कोट जैसे प्रसिद्ध पर्वत दिखाई देते हैं। मंदिर के आसपास बुरांस (रोडोडेंड्रन) के घने जंगल हैं, जो इसकी प्राकृतिक सुंदरता को और बढ़ाते हैं।
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मान्यता है कि यहां आने वाले भक्तों की सच्ची भक्ति और दृढ़ विश्वास से मां चिल्ठा देवी उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी करती हैं। विशेष रूप से नवरात्रि के समय यहां भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है और विशेष पूजा-अनुष्ठान किए जाते हैं।
कैसे पहुंचें?
- बागेश्वर से सुपी गांव तक: मंदिर तक पहुंचने के लिए सबसे पहले बागेश्वर शहर से सुपी गांव तक 35 किलोमीटर की सड़क यात्रा करनी होती है। यहां तक जीप या निजी वाहन से पहुंचा जा सकता है।
- ट्रेक का सफर: सुपी गांव से मंदिर तक पहुंचने के लिए लगभग 8 किलोमीटर की खड़ी पहाड़ी चढ़नी पड़ती है। यह ट्रेक 4 से 6 घंटे का हो सकता है और रास्ते में प्राकृतिक सौंदर्य के दृश्य मन को मोह लेते हैं।
- नजदीकी रेलवे स्टेशन और हवाई अड्डा: निकटतम रेलवे स्टेशन काठगोदाम (लगभग 180 किमी) और हवाई अड्डा पंतनगर (लगभग 220 किमी) है। वहां से बस या टैक्सी द्वारा बागेश्वर पहुंचा जा सकता है।
धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व
मां चिल्ठा देवी मंदिर न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि यह उत्तराखंड की सांस्कृतिक विरासत का भी प्रतीक है। स्थानीय लोगों का मानना है कि यहां की दिव्य ऊर्जा भक्तों के मन से नकारात्मक विचारों को दूर कर देती है। मंदिर के आसपास के क्षेत्र को 'देवभूमि' कहा जाता है, जहां प्रकृति और आध्यात्म का अद्भुत संगम देखने को मिलता है।