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10 हजार से ज्यादा संत महाकुंभ में बनेंगे नागा साधु, जानें प्रक्रिया

महाकुंभ 2025 में 10,000 से अधिक संतों को नागा साधु बनने की दीक्षा दी जाएगी। आइए जानते हैं क्या है इसकी पूरी प्रक्रिया।

Image of Naga Sadhu in Kumbh Mela

महाकुंभ में नागा साधु।(Photo Credit: PTI)

महाकुंभ 2025 का शुभारंभ हो चुका है। इस महा आयोजन में लाखों की संख्या में साधु-संत हिस्सा बनने के लिए प्रयागराज पहुंचे हैं। जहां एक तरफ कुंभ मेले में नागा साधु आकर्षण का केंद्र होते हैं, वहीं दूसरी तरफ नए संतों को भी महाकुंभ में नागा साधु बनाया जाता है। बता दें कि इस दौरान अखाड़ों में 12,000 नए नागा संन्यासियों को दीक्षा दी जाएगी।

 

ये वे संत हैं जिन्होंने सांसारिक मोह-माया को त्यागकर माता-पिता और स्वयं का पिंडदान कर संन्यास का मार्ग अपनाएंगे। नागा संन्यासियों के निर्माण का यह अनुष्ठान महाकुंभ के दूसरे अमृत (राजसी) स्नान से पहले आरंभ किया जाएगा, हालांकि इसकी तैयारियां काफी समय पहले शुरू हो जाती है।

 

अखाड़ों ने इस प्रक्रिया के लिए विशेष योजनाएं बनाई हैं और 14 जनवरी को पहले शाही स्नान के बाद इसे और तेज कर दिया गया है। बता दें कि मीडिया से हुए संवाद में जूना अखाड़े के अंतर्राष्ट्रीय प्रवक्ता श्रीमहंत नारायण गिरि ने कहा कि जूना अखाड़े में लगभग 5,000 नए नागा संन्यासी बनेंगे। निरंजनी अखाड़े में 4,500, आवाहन अखाड़े में 1,000, महानिर्वाणी अखाड़े में 300, आनंद अखाड़े में 400 और अटल अखाड़े में 200 नए नागा संन्यासियों को दीक्षा दी जाएगी।

 

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नागा साधु बनने की प्रक्रिया

नागा साधुओं का जीवन आम जीवन से बहुत कठिन होता है। बता दें कि आदि गुरु शंकराचार्य ने 9वीं सदी में दशनामी परंपरा की शुरुआत की और अधिकांश नागा सन्यासी इसी संप्रदाय से संबंध रखते हैं। इन्हें जब दीक्षा दी जाती है, तब इन्हें दस नाम- गिरी, भारती, पुरी, अरण्य, वन, पर्वत, सागर, तीर्थ, आश्रम और सरस्वती दिया जाता है। नागा सन्यासियों को कुंभ में या विशेष अवसर पर दीक्षा दी जाती है।

 

नागा साधु बनने की यात्रा में सबसे पहला कदम है ‘मुमुक्षु’ बनना। मुमुक्षु वह व्यक्ति होता है, जो सांसारिक बंधनों से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्ति की आकांक्षा रखता है। मुमुक्षु को अखाड़े में शरण लेनी होती है और गुरु के निर्देशन में रहना पड़ता है। इस दौरान उसे अपने व्यवहार, साधना और आचरण से यह सिद्ध करना होता है कि वह संन्यास के लिए योग्य है। यह प्रक्रिया कुछ महीने या कुछ वर्षों की भी हो सकती है। जब तक गुरु संतुष्ट नहीं हो जाते, तब तक उन्हें दीक्षा नहीं दी जाती है।

 

नागा साधुओं की दीक्षा प्रक्रिया

दीक्षा लेने के लिए पहले अखाड़ों में आवेदन दिया जाता है और अखाड़े के प्रतिनिधि उम्मीदवार के घर जाकर उसकी पूरी पड़ताल करता है। साथ ही परिवार के सदस्यों को बताया जाता है कि उनका बेटा नागा साधु बनना चाहता है। साथ ही उम्मीदवार पर कोई आपराधिक मामला है या नहीं यह भी जांचा जाता है। जब परिवार से अनुमति मिल जाती है तब उस उम्मीदवार को एक गुरु बनाना होता है। अखाड़े में व्यक्ति गुरु की सेवा में रहते हैं और साधना व शास्त्रों का अध्ययन करते हैं।

 

इस अवधि में जो अच्छा प्रदर्शन करता है, उन्हें एक बार फिर घर लौट जाने की सलाह दी जाती है। जो नहीं लौटते हैं उन्हें महापुरुष की उपाधि प्राप्त होती है और उनका पंच संस्कार किया जाता है। इसके बाद अवधूत बनाने की प्रक्रिया शुरू होती है, जिसमें गुरु अपने शिष्यों को ब्रह्म मुहूर्त में उठा देते हैं। इसके बाद सन्यासी को अपने शरीर के सभी बालों को कटवा दिया जाता है। इसके बाद उन्हें स्नान कराया जाता है। इसके बाद उन्हें नई लंगोटी दी जाती है और गुरु उन्हें जनेऊ, दंड, कमंडल और भस्म प्रदान करते हैं।

 

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महापुरुषों को तीन दिन तक उपवास का पालन करना होता है और वह अपना श्राद्ध भी करते हैं। इसके साथ, सभी पहापुरुष अपने साथ-साथ अपने पूर्वजों का पिंडदान करते हैं। इस पूरी प्रक्रिया में आधी रात को अनुष्ठान शुरू होता है और इसी दौरान अंतिम बार गुरु अपने शिष्यों से कहते हैं कि वह अपने सांसारिक जीवन में लौट सकते हैं। जब वह नहीं लौटते तब महामंडलेश्वर, आचार्य गुरु मंत्र देते हैं और उन्हें धर्म ध्वजा के नीचे बैठकर मंत्र ‘ॐ नमः शिवाय’ का जाप करना होता है।

 

फिर महापुरुषों को नदी के तट पर ले जाया जाता है और वहां वह 108 डुबकियां लगवाई जाती है। इसके बाद दंड और कमंडल त्याग दिया जाता है। इसके पश्चात 24 घंटे का उपवास रखना पड़ता है, जिसे तप और साधना का प्रतीक माना जाता है और तब वह अवधूत बनते हैं। अवधूत बनने के बाद शाही स्नान से पहले तनतोड़ संस्कार किया जाता है। इसके बाद सभी शाही स्नान करते हैं और डुबकी लगाते ही वह नागा साधु बन जाते हैं।

आम लोगों की दीक्षा प्रक्रिया

नागा साधुओं की तरह ही आम लोग भी गुरु से दीक्षा ले सकते हैं। हालांकि, यह प्रक्रिया अखाड़ों की प्रक्रिया से बहुत अलग और सरल होती है। इसमें दीक्षा से पहले साधक को एक योग्य गुरु का चयन करना आवश्यक है। बता दें कि गुरु वह होता है जो साधक को सही मार्ग दिखाए और उसके आध्यात्मिक विकास में सहायता करे।

 

दीक्षा लेने के लिए साधक के भीतर गुरु और ईश्वर के प्रति पूर्ण श्रद्धा और समर्पण होना चाहिए। आधे मन से दीक्षा लेने का कोई लाभ नहीं होता। साधक को अपने जीवन में संयम और साधना का पालन करना चाहिए। दीक्षा के बाद, उसे बुरी आदतों, जैसे झूठ बोलना, नशा करना, और हिंसा आदि का त्याग करना होता है। 

 

इसके बाद गुरु द्वारा दिए गए मंत्र का नियमित रूप से जाप करना और साधना करना दीक्षा का प्रमुख नियम है। यह साधक की आत्मा को शुद्ध करता है। दीक्षा के बाद साधक को संयमित और सादगीपूर्ण जीवन जीना चाहिए। उसमें अहंकार, क्रोध, और लोभ जैसी भावनाओं पर नियंत्रण रखने की क्षमता विकसित करनी होती है।

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