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प्रयागराज को कहा जाता है यज्ञों का स्थान, जानिए इस शहर से जुड़ा इतिहास

कुंभ नगरी प्रयागराज का भी अपना एक विशेष महत्व है। आइए जानते हैं क्यों इस क्षेत्र को कहा जाता है यज्ञों की नगरी और इस स्थान का आध्यात्मिक महत्व।

Image of Kumbh Mela Prayagraj

प्रयागराज में कुंभ मेला।(Photo Credit: PTI)

महाकुंभ का शुभारंभ तीर्थराज के नाम से विख्यात प्रयागराज में हो चुका है। 12 वर्षों के अंतराल पर होने वाले इस महा आयोजन को दुनिया के सबसे बड़े आयोजनों में गिना जाता है। महाकुंभ के साथ साथ प्रयागराज का भी अपना एक विशेष महत्व है, जिसका उल्लेख धर्म-ग्रंथों में भी विस्तार से मिलता है। बता दें कि प्रयागराज को भारत की आध्यात्मिक राजधानी भी कहा जाता है, जो प्राचीन काल से धार्मिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व का केंद्र रहा है।

 

प्रयागराज को 'यज्ञों का स्थान' भी कहा जाता है, ऐसा इसलिए क्योंकि यह पवित्र भूमि कई पौराणिक कथाओं, धार्मिक अनुष्ठानों की साक्षी रही है। आइए जानते हैं, गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के त्रिवेणी संगम के किनारे स्थित प्रयागराज का धार्मिक महत्व।

यज्ञों का स्थान क्यों?

प्रयागराज को यज्ञों का स्थान इसलिए कहा जाता है क्योंकि इसी स्थान पर ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना के बाद पहला यज्ञ किया था। ऐसी मान्यता है कि यह प्रयाग की भूमि पर पूजा-पाठ और पवित्र स्नान करने से आज भी उस यज्ञ का फल प्राप्त होता है। 'प्रयाग' शब्द का अर्थ है 'सर्वश्रेष्ठ यज्ञ'। हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार, यह क्षेत्र ऋषि-मुनियों के तप और यज्ञों से पवित्र हुआ है।

 

आध्यात्मिक विद्वान त्रिवेणी संगम की भूमि को यज्ञ के लिए सबसे उत्तम बताते हैं, ऐसा इसलिए क्योंकि यहां गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम होता है। मान्यता है कि इस क्षेत्र में यज्ञ करने से मनुष्य के पापों का नाश होता है और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। यही कारण है कि प्रयागराज में महाकुंभ जैसे भव्य आयोजनों के दौरान लाखों श्रद्धालु यज्ञ और धार्मिक अनुष्ठानों में भाग लेते हैं।

 

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प्रयागराज से जुड़ी पौराणिक मान्यताएं

पौराणिक मान्यता के अनुसार, सृष्टि के निर्माण के बाद ब्रह्माजी ने सर्वप्रथम यज्ञ करने के लिए प्रयागराज को चुना। उन्होंने यहां यज्ञ मंडप की स्थापना की और इसे सबसे पवित्र स्थान घोषित किया। इस यज्ञ के कारण यह स्थान 'प्रयाग' के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

 

यह भी कहा जाता है कि जब देवी गंगा पृथ्वी पर अवतरित हुईं, तो उनका संगम यमुना और सरस्वती से इसी स्थान पर हुआ। इस संगम स्थल को त्रिवेणी कहा गया, जो आत्मा, शरीर और मन के पवित्र मिलन का प्रतीक है।

 

एक कथा यह भी है कि दधीचि ऋषि, जिन्होंने देवताओं की सहायता के लिए अपनी अस्थियों का दान किया, उन्होंने भी इसी क्षेत्र में तपस्या की थी। उनके तप और बलिदान ने इस भूमि को और भी पवित्र बना दिया था।

 

इसके साथ महाभारत में भी प्रयागराज का उल्लेख मिलता है। कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का ज्ञान देने से पहले इस क्षेत्र की पवित्रता का वर्णन किया था। रामायण में भगवान राम के वनवास के समय वह प्रयागराज के पास भारद्वाज ऋषि के आश्रम में भी गए थे।

प्रयागराज से जुड़ी धार्मिक मान्यताएं

प्रयागराज अध्यात्म के मुख्य केंद्रों में से एक है। यह मान्यता है कि संगम में स्नान करने से पापों का नाश होता है और व्यक्ति को मोक्ष प्राप्त होता है। माघ मास में विशेष स्नान का महत्व है, जिसे 'कल्पवास' कहा जाता है। श्रद्धालु संगम के किनारे अस्थायी निवास बनाते हैं, व्रत और तप करते हैं, और पवित्र स्नान के साथ यज्ञ और अनुष्ठान में भाग लेते हैं।

 

इसके साथ प्रयागराज में महाकुंभ मेला, जो हर 12 साल में आयोजित होता है, एक धार्मिक पहचान है। यह आयोजन त्रिवेणी संगम की महिमा को दर्शाता है और इसमें करोड़ों श्रद्धालु आस्था की पवित्र डुबकी लगाने आते हैं।

 

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आधुनिक समय में प्रयागराज का महत्व

पूर्व में प्रयागराज को इलाहाबाद के नाम से जाना जाता था। इसके बाद राज्य सरकार की अनुमति के बाद इस स्थान को इसके प्राचीन नाम प्रयागराज दिया गया, जिससे इस स्थान के धार्मिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व की पहचान होती है। यह शहर भारत की आध्यात्मिक धरोहर का प्रतीक है। यहां के कई प्राचीन मंदिर भी स्थित हैं, जिनका अपना एक विशेष महत्व है। इनमें लेटे हनुमान मंदिर, भारद्वाज आश्रम और अक्षयवट, श्रद्धालुओं को आकर्षित करते हैं।

प्रयागराज का इतिहास

इतिहासकारों के अनुसार, मौर्य साम्राज्य के समय में प्रयागराज एक महत्वपूर्ण प्रशासनिक और धार्मिक केंद्र था। चंद्रगुप्त मौर्य और अशोक जैसे शासकों ने यहां पर कई स्तंभ और शिलालेख बनवाए। अशोक का प्रसिद्ध स्तंभ, जिस पर उनके धर्म संबंधी आदेश लिखे गए हैं, आज भी प्रयागराज के किले में देखा जा सकता है।

 

गुप्त साम्राज्य के दौरान प्रयागराज का और अधिक विकास हुआ। यह शिक्षा, कला, और संस्कृति का प्रमुख केंद्र बन गया। इस समय यहाँ पर संस्कृत और अन्य शास्त्रों का व्यापक अध्ययन होता था।

 

वहीं प्रयागराज का नाम 'इलाहाबाद' मुगल राजा अकबर के शासनकाल में रखा गया। अकबर ने इस शहर को 'इलाहाबास' नाम दिया, जिसका अर्थ है 'ईश्वर का निवास।' उन्होंने यहां एक भव्य किला बनवाया, जिसे आज इलाहाबाद का किला कहा जाता है। यह किला आज भी भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अधीन है।

 

Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारियां सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं। Khabargaon इसकी पुष्टि नहीं करता।

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